स्वास्थ्य
उत्तराखंड : स्वास्थ्य सेवाओं की जड़ में लापरवाही, डीजी हेल्थ के पास नहीं है डाक्टरों की डिग्री व पंजीकरण का रिकॉर्ड
आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर जोशी ने खोली स्वास्थ्य महकमे की पोल
सीएन, अल्मोड़ा। उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था एक बार फिर कटघरे में है। भीमताल निवासी और आरटीआई कार्यकर्ता श्री चंद्रशेखर जोशी द्वारा उजागर की गई जानकारी से पता चला है कि राज्य के सबसे बड़े स्वास्थ्य प्राधिकरण के पास ही नियुक्त चिकित्सकों की डिग्री और मेडिकल काउंसिल पंजीकरण से संबंधित कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। यह जानकारी सूचना का अधिकार के तहत मांगी गई थी, जिसके जवाब में स्वास्थ्य विभाग ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि उनके पास न तो चिकित्सकों के शैक्षणिक दस्तावेज हैं और न ही उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल में पंजीकरण का विवरण। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बागेश्वर, थैलीसैण, पुरोला, बड़कोट, थराली में ईएनटी सर्जन का पद स्वीकृत नहीं होने पर भी ईएनटी सर्जन तैनात है। दूसरी ओर अल्मोड़ा जिले के बेस चिकित्सालय, जिला अस्पताल और उप-जिला अस्पतालों में ईएनटी विशेषज्ञ के स्वीकृत पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं। जो पद स्वीकृत ही नहीं, वहां सर्जन किस आधार पर तैनात हैं और जिन अस्पतालों में पद स्वीकृत हैं वहां वर्षों से डॉक्टर क्यों नहीं, क्या यह सत्ता संरक्षित मनमानी नहीं है। एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि उत्तराखंड चिकित्सा विभाग में कार्यरत किसी भी अधिकारी या चिकित्सक का जॉब चार्ट तक निर्धारित नहीं है। अर्थात विभाग को यह तक नहीं पता कि कौन अधिकारी किस कार्य का उत्तरदायी है। जब कर्तव्य तय नहीं, तो लापरवाही के लिए जवाबदेही कैसे तय होगी, यह न केवल प्रशासनिक विफलता है, बल्कि जनता की जान से सीधा खिलवाड़ है। मरीजों को कब, कहां और कौन.से विशेषज्ञ मिलेंगे यह सरकार भी तय नहीं कर पा रही। चंद्रशेखर जोशी ने इस पूरे प्रकरण को मेडिकल माफिया और प्रशासनिक मिलीभगत का उदाहरण बताते हुए कहा कि राज्य में डॉक्टरों की तैनाती और तबादलों में पारदर्शिता का पूर्ण अभाव है। उन्होंने यह मांग उठाई है कि सभी नियुक्त चिकित्सकों का पंजीकरण, डिग्री और नियुक्ति विवरण सार्वजनिक किया जाए। जहां पद स्वीकृत नहीं हैं, वहां की नियुक्तियों की जांच की जाए।.सभी अधिकारियों और चिकित्सकों का स्पष्ट जॉब चार्ट जारी हो।स्वास्थ्य विभाग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र ऑडिट टीम नियुक्त की जाए। चंद्रशेखर जोशी का आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त अराजकता के बावजूद शासन स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही। यह चूक नहीं, अपराध है और इसकी कीमत आम जनता अपने स्वास्थ्य और जीवन से चुका रही है। अगर अब भी शासन नहीं जागा, तो यह आंदोलन जन आंदोलन बनेगा। उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था सिर्फ संसाधनों की कमी से नहीं, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी से चरमरा रही है।
