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भारत के वैज्ञानिकों ने ढूंढ निकाला मंकीपॉक्स का जिंदा वायरस

जांच किट, उपचार व वैक्सीन बनने की राह होगी आसान, किया जाएगा अध्ययन
सीएन, नईदिल्ली।
मंकीपॉक्स वायरस को जिंदा निकालने के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम का गठन किया गया था, जो 14 जुलाई से इस वायरस को ढूंढने में लगी हुई थी। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) की इस टीम ने मंकीपॉक्स वायरस को एक मरीज के सैंपल से जिंदा आइसोलेट करने में कामयाब रही है, जिससे जांच किट, उपचार व वैक्सीन बनने की राह आसान हो सकती है। कोरोना महामारी के बाद अब मंकीपॉक्स दुनिया भर में पैर पसार रहा है, जिसके कारण दुनिया भर के वैज्ञानिकों के साथ भारतीय वैज्ञानिक भी इसके लिए जांच किट, उपचार व वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश में भारत के वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। दरअसल पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की एक टीम ने एक मरीज के शरीर से सैंपल लेते हुए जिंदा मंकीपॉक्स वायरस को आइसोलेट करने में सफल रही है। इसके बाद अब वैज्ञानिक मंकीपॉक्स के जिंदा वायरस से इस बीमारी के बारे में ज्यादा अच्छे से रिसर्च कर पाएंगे, जिससे मंकीपॉक्स के लिए जांच किट, उपचार व वैक्सीन बनने की राह आसान होगी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मंकीपॉक्स के जिंदा वायरस को पकड़ने के लिए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के वैज्ञानिकों की एक टीम का गठन किया गया था, जो 14 जुलाई से इस वायरस को जिंदा पकड़ने में लगी हुई थी। अब वैज्ञानिकों की टीम ने इस बात की आधिकारिक पुष्टि कर दी है कि उन्हें एक मरीज के सैंपल से मंकीपॉक्स के जिंदा वायरस को आइसोलेट करने में कामयाबी मिली है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा यादव ने इसे भारत के लिए बड़ी उपलब्धि बताया है। उन्होंने कहा कि हमने साल 2020 में जब कोरोना महामारी की शुरूआत में ही कोरोना वायरस को आइसोलेट कर लिया था, जिसके बाद जांच किट बनाई और फिर बाद में वैक्सीन की खोज की। इस बार भी हमने मंकीपॉक्स वायरस को आइसोलेट कर लिया है, जल्द ही इसकी जांच के लिए किट, उपचार व वैक्सीन के बारे में हमारे द्वारा अध्ययन किया जाएगा।
मंकीपॉक्स वायरस क्या है? मंकीपॉक्स वायरस कैसे फैलता है?
दुनिया में कोरोना वायरस का कहर छाया हुआ है। वैज्ञानिक कोरोना वायरस से निजात पाने की लिए अभी प्रयास ही कर रहे थे कि एक नया वायरस ने जन्म ले लिया जिसका नाम है मंकीपॉक्स वायरस। विशेषज्ञों के अनुसार मंकीपॉक्स वायरस दो प्रजातियों से मिलकर बनी है पश्चिम अफ्रीकी तथा मध्य अफ्रीकी। उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के पास, मध्य और पश्चिम अफ्रीकी देशों के कुछ हिस्सों में यह वायरस ज्यादातर फैला हुआ है। स्माॅलपॉक्स वायरस की तरह अधिकांश करके मंकीपॉक्स वायरस भी है। मंकीपॉक्स वायरस पीड़ित व्यक्ति के केवल छींक के संपर्क में आने से आप भी इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1970 में मंकीपॉक्स के मामले पहली बार इंसानों में सामने आए थे और 1958 में मंकीपाक्स के शुरुआती मामले आने शुरू हो गए थे लेकिन 1970 कांगो अफ्रीका में इंसानों में मंकीपॉक्स का पहला केस आया गया था। चेचक फैमिली से रिलेटेड मंकी वायरस भी एक पाक्स जैसी बीमारी है। किसी संक्रमित जानवर या पशु उत्पादों के संपर्क में आने से या शरीर के तरल पदार्थ के संपर्क से या सांसों के माध्यम से मंकीपॉक्स वायरस शरीर के अंदर फैल जाता है। यह वायरस अधिकांश करके बंदरों से फैली हुई है तभी उसका नाम मंकीपॉक्स वायरस रखा गया। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति को छूने या उसकी छींक, खांसी के संपर्क में आने से यह बीमारी बहुत आसानी से दूसरे इंसान में प्रवेश कर जाती है |
मंकीपॉक्स वायरस कैसे फैलता है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कहा गया है कि एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के बीच संक्रमण काफी कम होता है लेकिन एक वायरस संक्रमित व्यक्ति जब खांसता है, छींकता है तो उस संक्रमित व्यक्ति के मुंह से वायरस निकल कर सामने वाले व्यक्ति में प्रवेश कर जाते हैं और धीरे-धीरे वह स्वस्थ व्यक्ति भी वायरस की चपेट में आ जाता है। इसके अलावा संक्रमित जानवरों के शरीरिक तरल पदार्थ या खून या स्किन के संपर्क में आने के कारण भी वायरस बड़ी आसानी से इंसानों में फैल जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस वायरस से संक्रमण की संभावना काफी कम है और इस वायरस से मरने वाले लोगों की मृत्युदर 11% तक जा सकती है। स्लाॅमपाॅक्स से बचाने वाली वैक्सीन मंकीपॉक्स वायरस के खिलाफ भी असरकारक है।

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