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स्वास्थ्य

गेवाड़ घाटी में उपजिला अस्पताल के लिए आंदोलन ने पकड़ा जोर, क्षेत्र में बड़े जनांदोलन की तैयारी, पूर्व सैनिक की जलांदोलन से हड़कंप

सीएन, चौखुटिया (अल्मोड़ा)। गेवाड़ घाटी में स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग को लेकर शुरू हुआ “ऑपरेशन स्वास्थ्य” आंदोलन अब आठवें दिन में पहुंच गया है। 2 अक्टूबर से तहसील मुख्यालय में चल रहे इस आमरण अनशन ने धीरे-धीरे व्यापक जनआंदोलन का रूप ले लिया है। पूर्व सैनिक भुवन कठायत और बुजुर्ग बचेसिंह कठायत के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन को स्थानीय जनता, सामाजिक संगठनों और प्रवासी उत्तराखंडियों का भी व्यापक समर्थन मिल रहा है। गेवाड़ घाटी का यह आंदोलन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चौखुटिया को उप जिला चिकित्सालय का दर्जा देने की मांग को लेकर चलाया जा रहा है। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि चौखुटिया और आसपास के स्याल्दे ब्लॉक के गांवों के लिए यह स्वास्थ्य केंद्र ही एकमात्र सुविधा है, लेकिन यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी, उपकरणों की खराब स्थिति और रेफरल पर निर्भरता ने जनजीवन को कठिन बना दिया है। सूचना के अधिकार से सामने आई जानकारी के अनुसार, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हर वर्ष लगभग सवा सात करोड़ रुपये का खर्च वेतन और अन्य मदों में होता है, लेकिन फिर भी स्वास्थ्य सेवाएं संतोषजनक नहीं हैं। लोगों का आरोप है कि करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद अस्पताल “रेफर सेंटर” बनकर रह गया है। आंदोलन की शुरुआत पूर्व सैनिक भुवन कठायत के आमरण अनशन से हुई, जिसमें बाद में 85 वर्षीय बचेसिंह कठायत भी शामिल हो गए। दोनों के साहस और समर्पण से प्रेरित होकर कई लोग क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। महिलाओं ने भी आंदोलन में भागीदारी दर्ज कराई है, जबकि कुछ लोगों ने जल सत्याग्रह शुरू कर दिया है। रामगंगा नदी में जल सत्याग्रह कर रहे पूर्व सैनिक हीरा सिंह पटवाल को पुलिस ने समझाने का प्रयास किया, जिसके बाद वे नदी किनारे आ गए, लेकिन अब भी पानी से बाहर नहीं निकले हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे दोबारा नदी में उतरेंगे। आंदोलन के बढ़ते दबाव को देखते हुए प्रशासन हरकत में आया है। डिप्टी सीएमओ और बाद में स्वास्थ्य निदेशक डॉक्टर केएन पांडे अनशन स्थल पर पहुंचे और आंदोलनकारियों से वार्ता की। हालांकि वार्ता से कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। आंदोलनकारियों का कहना है कि केवल आश्वासन नहीं, सरकार से लिखित और समयबद्ध कार्रवाई की अपेक्षा है।गेवाड़ विकास समिति, किसान मंच, पूर्व सैनिक संगठन और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने आंदोलन को पूर्ण समर्थन देने का ऐलान किया है। समिति के अध्यक्ष गजेंद्र नेगी ने चेतावनी दी कि यदि 28 अक्टूबर तक मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर अमल नहीं हुआ, तो समिति के सभी सदस्य भी अनशन में शामिल होंगे। आंदोलन का असर अब खनसर घाटी और गैरसैण क्षेत्र तक फैल गया है। प्रवासी उत्तराखंडी भी सोशल मीडिया के माध्यम से अपने क्षेत्र के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं। भुवन कठायत की पत्नी गीता देवी ने भी अन्न त्यागने की घोषणा की है। उनके इस फैसले से आंदोलन भावनात्मक मोड़ ले चुका है। देर रात प्रशासन ने 85 वर्षीय बचेसिंह कठायत को बिगड़ते स्वास्थ्य के चलते रानीखेत अस्पताल में भर्ती कराया, जहां से उन्हें उपचार के बाद उनके गांव कोट्यूडा पहुंचाया गया। आंदोलनकारियों ने साफ किया है कि यह आंदोलन अहिंसक और जनहित केंद्रित रहेगा। आयोजकों ने नेताओं से मंच पर आरोप-प्रत्यारोप से बचने और केवल स्वास्थ्य मुद्दे पर केंद्रित रहने की अपील की है। रामगंगा घाट पर दिन-रात जनवादी गीतों और नारों की गूंज है। चौखुटिया की जनता अब अपनी मांगों को लेकर पहले से कहीं अधिक संगठित दिख रही है। आंदोलन की यह एकजुटता संकेत देती है कि क्षेत्र के लोग अब अपनी उपेक्षा बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं।

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