विधि
सुप्रीम फैसला: एससी-एसटी श्रेणियों को सब-कैटेगरी में दिया जा सकता है आरक्षण
सुप्रीम फैसला: एससी-एसटी श्रेणियों को सब-कैटेगरी में दिया जा सकता है आरक्षण
सीएन, नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस मुद्दे पर फैसला सुनाना शुरू किया कि क्या राज्यों को नौकरियों और दाखिलों में आरक्षण के लिए एससी, एसटी में सब-कैटेगरी करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण नियमों को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संवैधानिक बेंच ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति में उपजातियों के वर्गीकरण यानी कोटे के अंदर कोटा तय करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया है। बेंच ने अपने से छोटी संवैधानिक बेंच का 20 साल पुराना फैसला पलटते हुए कहा है कि इससे मूल और जरूरतमंद कैटेगरी को आरक्षण का ज्यादा फायदा मिलेगा और कोटे में कोटा लागू करना किसी भी तरह असमानता के खिलाफ नहीं है। यह फैसला सात में से 6 जजों के बहुमत से किया गया है। बेंच में मौजूद इकलौती महिला जज ने इस फैसले से असहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने ईवी चिन्नैया मामले में 2004 के फैसले को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि सब.कैटेगरी की अनुमति नहीं है क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति सजातीय वर्ग बनाते हैं। न्यायमूर्ति बीआर गवई ने अलग दिए फैसले में कहा कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए। सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले में 6 ने सहमति जताई हैं। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई है। सीजेआई ने कहा कि हममें से अधिकांश ने ईवी चिन्नैया के फैसले को खारिज कर दिया है। हम मानते हैं कि सब.कैटेगरी की अनुमति है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने कहा कि अनुसूचित जातियों व जनजातियों में सभी समूह एक जैसे नहीं हैं। ऐसे में सरकार ज्यादा पीड़ित लोगों को चिह्नित कर उन्हें 15 प्रतिशत आरक्षण सीमा के अंदर ज्यादा अहमियत देने के लिए सब कैटेगरी बना सकती है। इस बेंच में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं।