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मुजफ्फरनगर स्कूल मामले में यूपी पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की लगी फटकार

मुजफ्फरनगर स्कूल मामले में यूपी पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की लगी फटकार
सीएन, नइदिल्ली।
मुजफ्फरनगर में टीचर द्वारा एक स्कूली स्टूडेंट को दूसरे छात्रों से चाटे मारने के लिए कहने के मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस के रवैये पर नाखुशी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मामला बेहद गंभीर है। कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि मामले की छानबीन के लिए सीनियर आईपीएस की नियुक्ति करे। अदालत ने कहा कि जो आरोप लगाया गया हैए अगर वह सही है तो यह चेतना को स्तब्ध करने वाला है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए एस ओका की अगुवाई वाली बेंच ने पुलिस अधिकारी से कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट फाइल करें। बेंच ने यूपी सरकार से कहा है कि वह विक्टिम और इस घटना में शामिल दूसरे स्टूडेंट्स की पेशेवर काउंसलर से काउंसलिंग कराएं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए एस ओका की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है कि पहली नजर में दिखता है कि यूपी सरकार राइट टु एजुकेशन एक्ट के प्रावधान लागू कराने में विफल रही है। इस मामले में यूपी पुलिस ने जिस तरह काम किया हैए उस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाखुशी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस से कई सवाल किए। सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी पर सवाल किया। कोर्ट ने कहा कि मामले की छानबीन सीनियर रैंक के आईपीएस अफसर करें। कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की है कि पहली नजर में लगता है कि राज्य सरकार आरटीई पालन करने में विफल रही है। राइट टु एजुकेशन एक्ट में बच्चे की किसी भी तरह की फिजिकल प्रताड़ना की मनाही है। राइट टु एजुकेशन एक्ट कहता है कि 14 साल तक के बच्चों को बिना जाति, धर्म, नस्ल और लिंग का भेद किए फ्री एजुकेशन दिया जाएगा। अदालत ने कहा कि बच्चे के पिता ने जो शिकायत की थीए वह संज्ञेय अपराध का मामला है लेकिन मामले में एफआईआर में देरी की गई और तुरंत एफआईआर नहीं हुई बल्कि एक एनसीआर नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट दर्ज की गई। घटना के दो हफ्ते बाद 6 सितंबर को एफआईआर दर्ज हुई। याचिकाकर्ता तुषार गांधी की ओर से पेश वकील ने कहा कि मामले में राज्य पुलिस का रवैया सही नहीं रहा है। विक्टिम के पिता ने समुदायिक टिप्पणी की शिकायत की थी लेकिन एफआईआर में वह बात नहीं लिखी गई। जस्टिस ओका ने कहा कि जिस तरह से एफआईआर लिखी गई उस पर हमारा सख्त ऐतराज है। पिता ने शिकायत की थी कि धर्म को लेकर उनके बेटे के खिलाफ टीचर ने आपत्तिजनक टिप्पणी की थी लेकिन एफआईआर में वह शिकायत का कंटेंट नहीं है। इस मामले में जो विडियो है, उसका ट्रांसक्रिप्ट भी एफआईआर में नहीं है।
जस्टिस ओका ने कहा कि जो आरोप लगाया गया हैए अगर वह सही है तो यह चेतना को स्तब्ध करने वाला है। आरोप बेहद गंभीर हैं। जस्टिस ओका ने कहा कि आरोप के मुताबिक टीचर ने एक स्टूडेंट को अन्य स्टूडेंट्स द्वारा मारने को कहा। जिसे पिटवाया गया वह अन्य धर्म का था, क्या यह क्वॉलिटी एजुकेशन हैघ् राज्य को निश्चित तौर पर बच्चों की शिक्षा का जिम्मा लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आरोप सही है तो यह बेहद निचले स्तर का फिजिकल पनिशमेंट है जिसमें टीचर ने अन्य स्टूडेंट्स से एक स्टूडेंट को चांटे मरवाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से इस मामले को देखा गया है और पुलिस ने जिस तरह से एक्शन लिया है, उसके मद्देनजर मामले की छानबीन सीनियर आईपीएस अधिकारी से कराई जाए। राज्य सरकार इसके लिए एक हफ्ते के भीतर अधिकारी नियुक्त करे। अधिकारी जो भी छानबीन करें, वह इस बात को भी देखें कि क्या मामले में जेजे एक्ट की धारा-75 और आईपीसी की धारा-153 ए भी बनती है। इससे पहले याची की ओर से पेश वकील सादन फरासत ने कहा कि मामले में आईपीसी की धारा 153 ए धर्म के नाम पर नफरत फैलाने की कोशिश और जेजे एक्ट की धारा-75 बनती है। बेंच ने अपने आदेश में आरटीई एक्ट को भी रेफर कियाए जिसमें कहा गया है कि किसी भी बच्चे को मेंटल या फिजिकल प्रताड़ना नहीं होगी और कोई भी भेदभाव नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी समुदाय विशेष का होने से किसी स्टूडेंट को प्रताड़ित किया जाता है या सजा दी जाती है तो क्वॉलिटी एजुकेशन नहीं हो सकता है। यहां पहली नजर में यह देखने को मिलता है कि राज्य सरकार आरटीई एक्ट पर अमल कराने में विफल रही है। कोर्ट ने कहा कि राज्य में आरटीई एक्ट लागू है और स्थानीय अथॉरिटी को सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी बच्चे को जाति, क्लास, धर्म और जेंडर के नाम पर प्रताड़ित न किया जाए या उससे भेदभाव न किया जाए। स्कूल में किसी भी तरह से धार्मिक भेदभाव नहीं हो सकता है। सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि राज्य सरकार किसी को बचा नहीं रही है, बल्कि हर एंगल को देख रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं हुआ है। जस्टिस ओका ने कहा कि इस मामले को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। अगर यह घटना सही है और टीचर ने यह कहा है कि अमुक स्टूडेंट अमुक कम्युनिटी से है और फिर उसे मारने के लिए कहा गया तो यह किस किस्म का एजुकेशन है राज्य सरकार को इन बातों का जवाब देना होगा कि विक्टिम को आरटीई एक्ट के तहत किस तरह की फैसिलिटी देगी ताकि उसका क्वॉलिटी एजुकेशन हो सके। राज्य सरकार अब यह नहीं सोच सकती है कि वह बच्चा उसी स्कूल में आगे पढ़े। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के एजुकेशन विभाग के सेक्रेटरी को भी पक्षकार बनाया है और उन्हें निर्देश दिया है कि वह काउंसलिंग और विक्टिम को बेहतर शिक्षा देने के मामले में अमल रिपोर्ट पेश करें। मामले की अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने 30 अक्टूबर की तारीख तय कर दी है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस से छानबीन की स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा था, साथ ही विक्टिम के प्रोटेक्शन के बारे में भी जानकारी मांगी थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान नोटिस जारी किया था और यूपी पुलिस से छानबीन की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने को कहा था। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी की ओर से इस मामले में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट शदन फरासत ने दलील दी कि मामले में गाइडलाइंस भी जारी की जानी चाहिए और स्कूल में प्रिवेंटिव और उपचार वाले कदम उठाए जाने चाहिए ताकि बच्चों के साथ किसी तरह की हिंसा न हो। ऐसे बच्चे जो अल्पसंख्यक समुदाय से हैं, उनके साथ भी किसी तरह की हिंसा रोकने के लिए प्रिवेंटिव और उपचारात्मक कार्रवाई के लिए गाइडलाइंस होनी चाहिए। विडियो का हवाला देते हुए याची के वकील ने कहा है कि टीचर विडियो में अन्य स्टूडेंट्स से कह रही हैं कि वे जोर से चाटे मारें।

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