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चंद्रयान और सूर्ययान के बाद अब भारत का अगला मिशन समुद्रयान मत्स्य 6000
चंद्रयान और सूर्ययान के बाद अब भारत का अगला मिशन समुद्रयान
सीएन, नईदिल्ली। भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग कराकर इतिहास रच दिया है। इसके एक सप्ताह बाद ही भारत ने सूर्य के अध्ययन के लिए मिशन लॉन्च किया है। भारत का यह पहला सूर्य मिशन है। इसके बाद अब भारत समुद्र की गहराई नापेगा और समुद्र के अंदर छिपे रहस्यों को जानने की कोशिश करेगा। भारत जल्द ही अपने समुद्रयान मिशन का ट्रायल शुरू करने जा रहा है। मिशन समुद्रयान में तीन लोगों को एक स्वदेशी सबमर्सिबल में बैठाकर 6 किलोमीटर की गहराई तक भेजा जाएगा। ताकि वहां के स्रोतों और जैव.विविधता का अध्ययन किया जा सके। इस समुद्रयान का नाम मत्स्य 6000 है।बता दें कि समुद्रयान प्रोजेक्ट पूरी तरह से स्वदेशी है। मत्स्य 6000 को बनाने के लिए टाइटेनियम एलॉय का इस्तेमाल किया गया है। इसका ब्यास 2ण्1 मीटर है। यह 12 घंटों के लिए तीन इंसानों को समुद्र की गहराई में ले जाएगा। इसके सभी हिस्से अभी बनाए जा रहे हैं। उम्मीद है कि 2026 तक इसकी लॉन्चिंग होगी। इसके जरिए समुद्र तल से करीब 6 किलोमीटर नीचे कोबाल्ट, निकल और मैंगनीज जैसी बहुमूल्य धातुओं की खोज की जाएगी। केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू ने जानकारी दी कि अगला मिशन समुद्रयान है। मत्स्य 6000 का निर्माण करीब दो साल में किया गया है। अगले साल यानी 2024 की शुरुआत में टेस्टिंग के लिए चेन्नई तट से इसे बंगाल की खाड़ी में छोड़ा जाएगा। समुद्र में 6 किलोमीटर की गहराई तक जाना चुनौतियों से भरा हुआ है। भारतीय वैज्ञानिकों को इसी साल जून में घटी टाइटन दुर्घटना का भी ध्यान है। समुद्र में टाइटैनिक के मलबे तक पर्यटकों को ले जाने वाले इस सबमर्सिबल में धमाका हो गया था। इसको देखते हुए भारतीय वैज्ञानिक मत्स्य 6000 के डिजाइन को बार.बार जांच रहे हैं। समुद्रयान पूरी तरह से एक स्वदेशी परियोजना है। मत्स्य 6000 एक सबमर्सिबल है जिसे बनाने के लिए टाइटेनियम एलॉय का इस्तेमाल किया गया है। यह 6000 मीटर की गहराई पर समुद्र तल के दबाव से 600 गुना अधिक यानी 600 बार दबाव मापने की इकाई प्रेशर झेल सकती है। सबमर्सिबल का व्यास 2.1 मीटर है। इसके जरिए तीन लोगों को 6000 मीटर की समुद्री गहराई में 12 घंटे के लिए भेजा जाएगा। इसके अंदर 96 घंटे की इमरजेंसी इंड्यूरेंस है। उम्मीद है कि इस मिशन को 2026 में लाॅन्च किया जाएगा। अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन के बाद मानवयुक्त सबमर्सिबल बनाने वाला भारत छठा देश है। समुद्रयान समुद्र की गहराई में खोज करेगा। इसके साथ ही इसका उद्देश्य समुद्र की गहराई में दुर्लभ खनिजों के खनन के लिए पनडुब्बी से इंसानों को भेजना है। इस परियोजना की लागत करीब 4100 करोड़ रुपए हैं। समुद्र की गहराई में गैस हाइड्रेट्स, पॉलिमैटेलिक मैन्गनीज नॉड्यूल, हाइड्रो.थर्मल सल्फाइड और कोबाल्ट क्र्स्ट जैसे संसाधनों की खोज के लिए समुद्रयान को भेजा जाएगा। 1000 से 5500 मीटर तक की गहराई में यह वस्तुएं मिलती हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने जून 2021 में इस मिशन की शुरुआत की थी। इसका मकसद समुद्रीय संसाधनों के बारे में जानना है। समुद्री संसाधनों के इस्तेमाल के लिए गहरे समुद्र में तकनीक भेजना। इसका मकसद भारत सरकार की ब्लू इकोनॉमी में सहायता करना है। समुद्रयान इसी का हिस्सा है। किरेन रिजिजू ने एक्स करते हुए लिखा, अगला है सुमद्रयान। यह चेन्नई स्थित राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान में निर्माणाधीन मत्स्य 6000 सबमर्सिबल है। भारत के पहले मानवयुक्त गहरे महासागर मिशन समुद्रयान में गहरे समुद्र के संसाधनों और जैव विविधता मूल्यांकन का अध्ययन करने के लिए एक पनडुब्बी में 6 किलोमीटर समुद्र की गहराई में 3 मनुष्यों को भेजने की योजना है। यह परियोजना समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को परेशान नहीं करेगी। डीप ओशन मिशन प्रधानमंत्री के ब्लू इकोनॉमी दृष्टिकोण का समर्थन करता है। नरेंद्र मोदी जी और देश की आर्थिक वृद्धि आजीविका और नौकरियों में सुधार और महासागर पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करने के लिए समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग की परिकल्पना करता है।
स्रोत : केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय।
