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भारत में अरबों टन कोयला, फिर बिजली संकट क्यों

भारत सरकार के मुताबिक भारत में कुल 319 अरब टन का भंडार
सीएन, नईदिल्ली।
भारत में पिछले कुछ दिनों से बिजली संकट गहरा गया है, जिसका कारण कोयले की कमी बताया जा रहा है। भारत सरकार का कहना है कि पिछले कुछ सालों से बिजली की मांग देश मैं तेजी से बढ़ी है जिस कारण कोयला रिजर्व में कमी आई है। आज कोयला बड़ी जरूरत बन गया है। भारत में 75 फ़ीसदी बिजली कोयले से बनती है। भारत सरकार के मुताबिक भारत में कुल 319 अरब टन भंडार है। इसमें भारत से ऊपर अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया और चाइना जैसे देश हैं। भारत में कोयले के इतिहास पर नजर डालते हैं। हमारे देश में 250 साल पहले कोयले का खनन शुरू हुआ। 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली बार पश्चिम बंगाल के रानीगंज नामक स्थान से किया। 1853 में भाप इंजन का आविष्कार किया गया। इसमें भारत में कोयले के उत्पादन और मांग को बढ़ा दिया। 1920 तक भारत में कोयले का उत्पादन सालाना 1.8 करोड़ टन पहुंच गया। समय के साथ जैसे ही भारत में कोयले की निर्भरता बढ़ना शुरू हुई। सरकार ने 70 के दशक में सभी खदानों को राष्ट्रीयकरण कर दिया। आज 85 फीसदी कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है। 2021-22 में देश के भीतर 77.76 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ। दुनिया में चीन के बाद भारत ही कोयले का खपत में दूसरा नंबर है। भारत में 319 अरब टन कोयले का भंडार है। इनमें झारखंड के पास सबसे बड़ा कोयले का भंडार है। इसके बाद उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं। कोयले के संकट के बीच सिर्फ डिमांड और सप्लाई का खेल है। पिछले कुछ सालों में देश में बिजली की डिमांड बढ़ी है। सरकार की तरफ से संकट को देखते हुए 650 पैसेंजर ट्रेन को रद्द कर दिया गया ताकि जल्द से जल्द पावर प्लांट में कोयला पहुंचाया जा सके। बिजली बनाने से पहले थर्मल पावर प्लांट में तकरीबन 26 दिन का कोल स्टोरेज होनी चाहिए। लेकिन कमी के कारण सभी प्लांट में दो-तीन दिन का कोयला बचा है। भारत में 400000 मेगावाट बिजली बनती है। इसमें अधिकतर हिस्सा कोयले से बनती है। तो देखना यह है कि यह संकट सरकार और कितने समय में दूर करती है।

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