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चंद्रयान-3 : चांद बस कुछ दूर ही बचा, अब होगी सॉफ्ट लैंडिंग? सूर्योदय का इंतजार

चंद्रयान-3 : चांद बस कुछ दूर ही बचा, अब होगी सॉफ्ट लैंडिंग? सूर्योदय का इंतजार
सीएन, बंगलुरू।
भारत का चंद्रयान-3 मिशन से जुडी एक लेटेस्ट जानकारी आई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार, 21 अगस्त को विक्रम लैंडर की ताजा तस्वीरें जारी कीं। ये तस्वीरें उस कैमरे से भेजी गई हैं, जो लैंडिंग वाली जगह का चयन करने में निर्णायक भूमिका निभाता है। इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “ये चांद के फार साइड एरिया यानी सुदूर स्थित हिस्से की तस्वीरें हैं। जो लैंडर हैजर्ड डिटेक्शन एंड अवॉइडेंस कैमरा (एलएचडीएसी) ने ली हैं। ये कैमरा चांद की सतह पर उतरते समय सुरक्षित लैंडिंग क्षेत्र का पता लगाने में मदद करता है, यानी ऐसी जगहों का पता लगाता है जहां चट्टानें या गहरी खाइयां न हों।”चांद पर पहुंचने की रेस में भारत ने रूस को पीछे छोड़ दिया है। रूस का लूना-25 चंद्रमा पर क्रैश कर चुका है। बता दें कि लूना-25 भारत के मून मिशन चंद्रयान-3 की लैंडिंग से दो दिन पहले चांद की सतह पर उतरने वाला था। हालांकि रविवार को यह चांद से टकराकर क्रैश हो गया। अब पूरी दुनिया की नजर भारत के चंद्रयान-3 की लैंडिंग पर टिकी हुई है। चंद्रयान-3 इस समय चांद से 25 किमी की दूरी पर चक्कर लगा रहा है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो यह 23 अगस्त की शाम को 6 बजकर 4 मिनट पर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने कहा कि लैंडर माड्यूल सॉफ्ट लैंडिंग से पहले अंदरूनी जांच की प्रक्रिया से गुजरेगा। इसके बाद यह लैंडिंग साइट पर सूरज के निकलने का इंतजार करेगा। लैंडर मॉड्यूल में लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान हैं. रोवर प्रज्ञान लैंडर विक्रम की गोद में बैठकर चांद की करीबी कक्षा में चक्कर लगा रहा है। 17 अगस्त को चंद्रयान के प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद लैंडर मॉड्यूल विक्रम खुद ही आगे बढ़ रहा है। अब चांद से इसकी दूरी महज 25 किमी रह गई है। बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर को चांद की सतह पर पहले 23 अगस्त को 5 बजकर 47 मिनट पर उतरने की उम्मीद थी लेकिन अब समय में बदलाव किया है। लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान से युक्त लैंडर मॉड्यूल के 23 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद की सतह पर लैंड करने की उम्मीद की जा रही है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 23 अगस्त से मून पर लूनर डे की शुरुआत होगी। चांद पर एक लूनर दिन धरती के 14 दिनों के बराबर होता है। इन 14 दिनों तक चांद पर लगातार सूरज की रोशनी रहती है। चंद्रयान-3 में जो उपकरण लगे हैं उनकी लाइफ एक लूनर दिन की है। क्योंकि ये सौर्य उर्जा से संचालित होते हैं। इसलिए इन्हें संचालित करने में सूरज की रोशनी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।
सीधा प्रसारण का लिंक भी किया शेयर
इसरो ने लैंडिंग के सीधा प्रसारण का लिंक भी शेयर किया है। लिंक https://www.youtube.com/watch?v=DLA_64yz8Ss पर जाकर आप चांद पर भारत के पहुंचने की ऐतिहासिक घटना के साक्षी बन सकते हैं। इसरो ने बताया है कि जिस पल का देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है, उसका लाइव प्रसारण 23 अगस्त 2023 को शाम 5.27 बजे से किया जाएगा। इसे इसरो की वेबसाइट, यूट्यूब, फेसबुक पेज और डीडी नेशनल चैनल सहित विभिन्न प्लेटफॉर्म पर देखा जा सकेगा। इसरो ने कहा है कि चांद पर उतरना एक ऐसा क्षण होगा जो न केवल जिज्ञासा को बढ़ाएगा बल्कि हमारे युवाओं के मन में अन्वेषण (खोज) के लिए जुनून और उत्साह भी जगाएगा। इसरो ने देशभर के सभी स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों को इस ऐतिहासिक घटना के समय सक्रिय भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया है। संस्थानों को इस इवेंट के बारे में छात्रों, अध्यापकों को बताने के साथ-साथ अपने परिसर में चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग की लाइव स्ट्रीमिंग दिखाने को कहा गया है।
चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिन के होता है बराबर
चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है। यही वजह है कि चंद्रयान 3 मिशन 14 दिनों तक चांद की सतह पर रिसर्च करेगा। 23 अगस्त को चांद की सतह पर लैंडिंग के साथ ही लैंडर विक्रम अपना काम शुरू कर देगा।
दक्षिणी ध्रुव पर होगी सॉफ्ट लैंडिंग
लैंडर विक्रम इस समय चांद के ऐसे ऑर्बिट में है, जहां चंद्रमा का निकटतम बिंदु 25 किमी और सबसे दूर 134 किमी है। इसी कक्षा से यह बुधवार (23 अगस्त) को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा। अभी तक दक्षिणी ध्रुव पर कोई मिशन नहीं पहुंचा है। यही वजह है कि इसरो ने चंद्रयान को यहां पर भेजा है। लैंडर विक्रम स्वचालित मोड में चंद्रमा की कक्षा में उतर रहा है। दरअसर यह स्वयं फैसला ले रहा है कि इसे आगे की प्रक्रिया को किस तरह से करना है। चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग के बाद भारत इस सफलता को हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अभी तक अमेरिका, सोवियत संघ (वर्तमान रूस) और चीन ही ऐसा कर सके हैं।

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