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अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से देहरादून आया था विश्व प्रसिद्ध खुशबू से भरपूर बासमती चावल

अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से देहरादून आया था विश्व प्रसिद्ध खुशबू से भरपूर बासमती चावल
सीएन, देहरादून।
उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून न सिर्फ अपनी खूबसूरती और सुंदर-सुंदर वादियों, घाटियों के लिए जानी जाती है बल्कि यह विश्व भर में स्वाद और मनमोहक खुशबू से भरपूर बासमती चावलों की पैदावार के लिए भी जानी जाती है। शिक्षा नगरी और द्रोणनगरी देहरादून में ऐसे बासमती चावल पाए जाते हैं जो कि विश्व के किसी भी कोने में नहीं पाए जाते हैं। उत्तराखंड के देहरादून में पाए जाने वाले बासमती चावल अपने सुगंध और स्वाद के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इनकी महक इतनी मनमोहक और तेज होती है कि अगर यह किसी घर में पक रहे होंगे तो पूरे गांव में इसकी महक फैल जाती है साथ ही यह खाने में लजीज होती है। यही नहीं अगर यह किसी खेतों में भी लगाई जा रही है तो पूरा खेत बासमती धान की महक से भर जाता है। इसलिए विश्व भर में इन्हें पसंद किया जाता है और देहरादून में आते लोग सबसे पहले यहां के बासमती चावल लेजाने को तत्पर रहते हैं। सर्वप्रथम देहरादून में इन चावलों को लाने का श्रेय अंग्रेजों और अफगानियों को जाता है। देहरादून में यह चावल 19 वीं सदी में अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से भारत आया था। इसे वहां से भारत लाने वाले अफगानिस्तान के शासक दोस्त मोहम्मद खान बरकजई को जाता थे। दरअसल इसके पीछे कहानी यू है की साल 1839 से 1942 तक ब्रिटिश और अफ़गानों में भयंकर युद्ध चला था। इस युद्ध में अफगान के शासक दोस्त मोहम्मद खान की हार हुई थी और अंग्रेजों ने उसके पूरे परिवार का देश निकाला कर दिया। तब दोस्त मोहम्मद खान अपने निर्वासित जीवन बिताने के लिए परिवार समेत उत्तराखंड के मसूरी यानी कि देहरादून आए थे। धीरे.धीरे उनको यहां की भूमि पसंद तो आने लगी लेकिन बासमती पुलाव के शौकीन मोहम्मद खान को यहां के चावल रास नहीं आए। जिसके कारण उन्होंने अफगानिस्तान से बासमती धान के बीच मंगाए और उन्हें देहरादून के इन पहाड़ियों में बो दिए। कहा जाता है कि इस धान को न केवल यहां की मिट्टी रास आई बल्कि जो पैदावार हुई वह अफगानिस्तान से भी उम्दा किस्म की और अच्छी गुणवत्ता वाली हुई। इसकी मनमोहन खुशबू इतनी तेज और यह खाने में इतनी लजीज थी कि हर कोई इसका दीवाना हो जाता था। और जिस घर में भी यह पकता था द्वारा इसके स्वाद के बिना रह नहीं पता था। इतनी तीव्र थी कि अगर एक बार या किसी घर में बन गया तो पूरे गांव में इसकी खुशबू फैल जाती थी। कारण है कि यह धीरे.धीरे चर्चा में आने लगी और इसकी चर्चा न सिर्फ उत्तराखंड भारत बल्कि पूरे विश्व में होने लगी। और एक समय ऐसा भी आया कि और लोगों में इनकी डिमांड इतनी होने लगी की व्यापारी सीधा खेत से ही बासमती चावलों को ले जाने लगे। समय के साथ देहरादून में उगने वाली बासमती जो कि पहले कई एकड़ भूमि पर उगाई जाती है आज सिर्फ सिमट कर रह गई है जिनमें कभी बासमती चावल लगाए जाते थे आज वह कंक्रीट और जंगल बनते जा रहे हैं लेकिन फिर भी सरकार द्वारा भरपूर प्रयास किया जा रहा है बासमती को बचाने के लिए। और वर्तमान में इसकी खेती देहरादून के अलावा हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल में भी बेशुमार होती है। इन जगहों पर इसे अभी भी देहरादून के बासमती चावल के ही नाम से जाना जाता है। देहरादून में वर्तमान में इसकी खेती की बात करें देहरादून के इन जगहों सेवला, माजरा और मथुरा वाला इलाकों में बासमती की खेती होती है। देहरादून की बासमती की खास बात यह है कि इसको किसी भी राज्य देश और अन्य इलाके में बोया जाए तो यह देहरादून जैसी मिठास महक और स्वाद पैदा नहीं कर पाती। इसलिए देहरादून में पैदावार होने वाली बासमती विश्व के किसी कोने में नहीं पाई जाती और अगर इसे किसी हिस्से में बो भी दिया जाता है तो यह देहरादून के बासमती चावलों जैसी खुशबू और स्वाद में लजीज और मनमोहक नहीं हो पाती।

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