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द्रौपदी मुर्मू: संघर्षों से भरी रही जिंदगी, परिवार में एक के बाद एक मौत, लेकिन नहीं मानी हार

द्रौपदी मुर्मू (जन्म : 20 जून 1958) एक भारतीय महिला राजनेत्री हैं। भारत के सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने भारत के अगले राष्ट्रपति के लिये उनको अपना प्रत्याशी घोषित किया हैं। इसके पहले 2015 से 2021 तक वे झारखण्ड की राज्यपाल थीं। उनका जन्म ओड़िशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। आज राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनावों की गिनती शुरू हो गई थी. जिसमें एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की ऐतिहासिक जीत हुई। मुर्मू ने यूपीए के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को बड़े फर्क से शिकस्त दी। तो इस मौके पर हम द्रौपदी मुर्मू से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं।

कच्ची दीवारें और फूंस का छप्पर:
ये तो आम सी बात है कि कोई भी शख्स इतने बड़े पद पर यूं ही नहीं पहुंच जाता, उसने जिंदगी में कई ऐसा मकाम का सामना किया होता है जिनके बारे वही शख्स अगर पीछे मुड़कर देखे तो शायद उसी की रूह कांप जाए. कुछ इसी तरह की परेशानियों सामना करने के बाद मुर्मू भी यहां तक पहुंची हैं. एक खबर के मुताबिक जिस समय द्रौपदी मुर्मू शादी करके ससुराल पहुंची थीं तो उस वक्त उनका घर भी कच्चा था. कच्ची दीवारें और फूंस का छप्पर था.

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4 साल में तीन लोगों की हुई मौत
द्रौपदी मुर्मू ने अपनों को बहुत करीब से बिछड़ते देखा है. दैनिक भास्कर की एक खबर मुताबिक साल 2010 से 2014 तक उनके घर से तीन अर्थियां उठी थीं. इन चार सालों के भीतर उनके दो बेटे और पति की मौत हुई है. बड़े बेटे की मौत आज भी रहस्य बनी हुई है. पता नहीं किस तरह उनके बड़े बेटे की मौत हुई है. बताया जाता है कि उसकी लाश कमरे से मिली थी और वो एक शाम को देर से घर वापस लौटे थे. बड़े बेटे का नाम लक्ष्मण मुर्मू था, उनकी मौत महज़ 25 बरस की उम्र में हुई थी. वहीं छोटे बेटे (बिरंची मुर्मू) की मौत एक सड़क हादसे में हुई थी उस वक्त बिरंची की उम्र 28 साल थी.. वहीं एक अक्टूबर 2014 को उनके पति भी उनका हमेशा के लिए साथ छोड़कर चले गए.
3 साल की बेटी की हो गई थी मौत
वहीं अगर उनके पहले दुख की बात करें तो सबसे पहले दुख उन्हें अपनी शादी कुछ दिन बाद ही मिल गया था. क्योंकि उनकी पहली औलाद भी उन्हें 3 साल की उम्र में छोड़कर चली गई थी. यह घटना साल 1984 की है. मुर्मू की पहली संतान एक बेटी थी. जिंदगी में तमाम दुखों का सामने करने के बावजूद मुर्मू ने हार नहीं मानी. हालांकि वो इस दौरान डिप्रेशन तक का शिकार रही थीं लेकिन उनके फौलादी हौसलों को कोई भी नहीं हिला सका. आज इन्हीं संघर्षों के बल पर वह देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हो गई हैं। वह देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होंगी।

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