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मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन का 73 की उम्र में निधन, विदेश में ली अंतिम सांस

मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन का 73 की उम्र में निधन, विदेश में ली अंतिम सांस
सीएन, नईदिल्ली
। तबला वादक जाकिर हुसैन का सोमवार को सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में निधन हो गया। उनके परिवार की तरफ से इस दुखद खबर की पुष्टि कर दी गई है। वो 73 साल के थे। इससे पहले 15 दिसंबर की रात को फैमिली ने मौत की खबरों का खंडन किया था। उनकी बहन खुर्शीद ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा था कि उनकी सांसें चल रही हैं, लेकिन हालत नाजुक है। उनकी सेहत के लिए दुआ करें। पर 16 दिसंबर की सुबह जाकिर हुसैन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 15 दिसंबर की देर रात को खबर फैल गई कि जाकिर हुसैन अब नहीं रहे। इसके बाद श्रद्धांजलि देने वाले पोस्ट की सोशल मीडिया पर बाढ़ आ गई। फिल्म इंडस्ट्री से लेकर स्पोर्ट्स और कई नेताओं ने भी एक्स पर दुख व्यक्त किया। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पोस्ट किया, महान तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन जी के निधन की खबर बेहद दुखद है। उनका निधन संगीत जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है। दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और फैंस के साथ हैं। उस्ताद जाकिर हुसैन जी अपनी कला की ऐसी विरासत छोड़ गए हैं, जो हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहेगी। असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा ने भी एक्स पर दुख जताया। संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने भी सोशल मीडिया पर दुख व्यक्त किया।
कौन थे जाकिर हुसैन
उस्ताद जाकिर हुसैन का का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। जाकिर हुसैन मशहूर तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे हैं। 12 साल की उम्र से ही जाकिर हुसैन ने संगीत की दुनिया में अपने तबले की आवाज से सबका दिल जीतना शुरू कर दिया था। प्रारंभिक शिक्षा और कॉलेज के बाद जाकिर हुसैन ने कला के क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना शुरू कर दिया। 1973 में उनका पहला एलबम लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड आया था। इसके बाद 1979 से लेकर 2007 तक जाकिर हुसैन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में अपने तबले का दम दिखाते रहे। जाकिर हुसैन भारत में तो बहुत ही प्रसिद्ध हैं साथ ही साथ विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण सम्मान भी मिल चुका है। शुरुआती दिनों में तबला के उस्ताद जाकिर हुसैन के पास पैसों की कमी थी। उस वक्त वे ट्रेनों के जनरल डिब्बों पर सफर करते थे। जब उन्हें ट्रेन में सीट नहीं मिलती थी तो वे फर्श पर ही अखबार बिछाकर सो जाते थे। जाकिर हुसैन अपनी कला और तबले को सब कुछ मानते थे। वे तबले को अपनी गोद में रखकर सोते थे ताकि किसी व्यक्ति का पैर उस पर न पड़ जाए।

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