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बंगाल में पड़े अकाल की मार से प्रभावित एम एस स्वामीनाथन को बनाया महान कृषि वैज्ञानिक
बंगाल में पड़े अकाल की मार से प्रभावित एम एस स्वामीनाथन को बनाया महान कृषि वैज्ञानिक
सीएन, नइदिल्ली। भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले एमएस स्वामीनाथन बीते दिनका 28 सितंबर को चेन्नै में निधन हो गया। 1999 में टाइम मैगजीन ने स्वामीनाथन को 20 वीं सदी में एशिया के सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया था। भारत सरकार ने 1967 में स्वामीनाथन को पद्म श्री और 1972 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। एम एस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को हुआ था। .1960 के दशक में जब भारत में अनाज का संकट पैदा हुआ और ऐसा लगा कि कई इलाकों में अकाल की स्थिति बन सकती है। उन दिनों विदेश से गेहूं और दूसरे अनाज आयात करने की नौबत आ गई थी। तब नॉर्मन बोरलाग और दूसरे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एम एस स्वामीनाथन ने गेहूं की ज्यादा उपज देने वाली किस्म तैयार की थी ताकि गेहूं का उत्पादन बढ़ाया जा सके। स्वामीनाथन ने अपने रिसर्च के जरिए गेहूं, चावल और जूट सहित कई फसलों की ज्यादा उपज देने वाली किस्में डिवेलप की थीं। उनके इस योगदान ने भारत में ग्रीन रिवॉल्यूशन की जमीन बनाई। भारत में फसलों के मामले में जेनेटिक्स पर काम तेज हुआ। इस योगदान के चलते स्वामीनाथन को फादर ऑफ ग्रीन रिवॉल्यूशन कहा जाने लगा। .स्वामीनाथन ने जूलॉजी और एग्रीकल्चरल साइंस में बैचलर डिग्री ली थी। उन्होंने 1943 में बंगाल में पड़े अकाल की मार और देश में अनाज की कमी की हालत को देखते हुए एग्रीकल्चर के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया। उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से जेनेटिक्स में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
.स्वामीनाथन 1972 से 1979 तक इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के डायरेक्टर जनरल रहे। 1982 से 1988 तक वह इंटरनैशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट के भी डायरेक्टर जनरल रहे।.1979 में स्वामीनाथन को एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री में प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाया गया। 1988 में स्वामीनाथन इंटरनैशनल यूनियन ऑफ द कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नैचुरल रिसोर्सेज के हेड बने। 1986 में उन्हें अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड अवॉर्ड ऑफ साइंस से सम्मानित किया गया। .डॉ एम एस स्वामीनाथन के रिसर्च वर्क के चलते भारत न केवल अनाज उत्पादनए खासतौर से गेहूं और धान उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ, बल्कि इनका निर्यातक भी बन गया। स्वामीनाथन किसानों के अधिकारों, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना अच्छे तरीके से खेती करने के तरीकों और ग्रामीण विकास के हिमायती थे। उनका मानना था कि छोटे और सीमांत किसानों को सस्ते बीज, उर्वरक और टेक्नॉलजी मुहैया कराए बिना देश में खेती.बाड़ी की तरक्की नहीं हो सकती। स्वामीनाथन का निधन 98 साल की उम्र में हुआ। उन्होंने एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना भी की थी। स्वामीनाथन के परिवार में उनकी तीन बेटियां हैं। डॉ सौम्या स्वामीनाथन तो एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की चेयरपर्सन हैं। दूसरी, डॉ मधुरा स्वामीनाथन इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट में इकनॉमिक्स की प्रफेसर हैं और तीसरी नित्या स्वामीनाथन यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया में जेंडर एनालिसिस एंड डिवेलपमेंट डिपार्टमेंट में लेक्चरर हैं।