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मणिपुर में हालात इतने खराब कैसे हुए, क्या है नागा-कुकी और मैतेई विवाद

मणिपुर में हालात इतने खराब कैसे हुए, क्या है नागा-कुकी और मैतेई विवाद
सीएन, इंफ़ाल।
मेइती समुदाय द्वारा एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ आदिवासी समूहों के विरोध प्रदर्शन के दौरान 3 मई को मणिपुर में कई जगहों पर हिंसा भड़क गई। राज्य के विभिन्न स्थानों पर आदिवासी समूहों द्वारा विरोध हिंसक हो गया, जहां बड़े पैमाने पर आगजनी हुई। मणिपुर एक बार फिर से हिंसा की आग में जल रहा है। मणिपुर की सरकार ने बेहद विषम परिस्थिति में हिंसा करने वालों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया है। तीन मई को मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद से पूरा राज्य हिंसा की आग में समा गया है। हिंसा की वजह से अब तक 9000 लोग विस्थापित हुए हैं। राज्य सरकार अभी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि हिंसा में कितने लोगों की जान गई है और कितने लोग ज़ख़्मी हैं। मणिपुर में हिंसा भड़कने की वजह क्या है। अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू ने इसी सवाल को हेडलाइन बनाते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। मणिपुर में बीजेपी की अगुआई वाली सरकार ने फ़रवरी महीने में संरक्षित इलाक़ों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया था, तभी से तनाव था। लोग सरकार के इस रुख़ का विरोध कर रहे थे, लेकिन हालात बेक़ाबू तीन मई को मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश से हुआ। हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफ़ारिश को लागू करे जिसमें ग़ैर.जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी। मणिपुर की भौगोलिक संरचना में ही कई तरह की समस्याएं निहित हैं। मणिपुर एक फ़ुटबॉल स्टेडियम की तरह हैं इसमें इंफ़ाल वैली बिल्कुल सेंटर में प्लेफ़ील्ड है और बाक़ी चारों तरफ़ के पहाड़ी इलाक़े गैलरी की तरह हैं। चार हाइवे हैं, जिनमें दो प्रदेश की लाइफ़लाइन हैं। ये दो हाइवे मणिपुर को बाक़ी दुनिया से जोड़ते हैं। मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग पर ग़ैर.जनजाति मैतेई समुदाय का दबदबा है। मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी 64 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक इसी समुदाय से हैं। 90 प्रतिशत पहाड़ी भौगोलिक क्षेत्र में प्रदेश की 35 फ़ीसदी मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। लेकिन इन जनजातियों से केवल 20 विधायक ही विधानसभा पहुँचते हैं। मैतेई समुदाय का बड़ा हिस्सा हिन्दू है और बाक़ी मुस्लिम। जिन 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है, वे नगा और कुकी जनजाति के रूप में जाने जाते हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफ़ारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफ़ारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने मई 2013 में जनजाति मंत्रालय के एक पत्र का हवाला दिया था। इस पत्र में मणिपुर की सरकार से सामाजिक और आर्थिक सर्वे के साथ जातीय रिपोर्ट के लिए कहा गया था। शिड्यूल ट्राइब डिमांड कमिटी ऑफ़ मणिपुर यानी एसटीडीसीएम 2012 से ही मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा था। याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में बताया कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ, उससे पहले मैतेई को यहाँ जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। इनकी दलील थी कि मैतेई को जनजाति का दर्जा इस समुदाय, उसके पूर्वजों की ज़मीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए ज़रूरी है। एसटीडीसीएम ने यह भी कहा था कि मैतेई को बाहरियों के अतिक्रमण से बचाने के लिए संवैधानिक कवच की ज़रूरत है। इनका कहना है कि मैतेई को पहाड़ों से अलग किया जा रहा है जबकि जिन्हें जनजाति का दर्जा मिला हुआ है, वे सिकुड़ते इंफ़ाल वैली में ज़मीन ख़रीद सकते हैं। मणिपुर के मौजूदा जनजाति समूहों का कहना है कि मैतेई का जनसांख्यिकी और सियासी दबदबा है। इसके अलावा ये पढ़ने.लिखने के साथ अन्य मामलों में भी आगे हैं। यहाँ के जनजाति समूहों को लगता है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों के अवसर कम हो जाएंगे और वे पहाड़ों पर भी ज़मीन ख़रीदना शुरू कर देंगे। ऐसे में वे और हाशिए पर चले जाएंगे। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ मणिपुर का कहना है कि मैतेई समुदाय की भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है और इनमें से कइयों को अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन यानी ईडब्ल्यूएस का फ़ायदा मिल रहा है। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के लेक्चरर थोंगखोलाल हाओकिप ने द पॉलिटिक्स ऑफ़ शिड्यूल ट्राइब स्टेटस इन मणिपुर में लिखा है। प्रदेश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की मांग एक सियासी खेल है। मणिपुर में सरकार समर्थक समूहों का कहना है कि जनजाति समूह अपने हितों को साधने के लिए मुख्यमंत्री नोंगथोंबन बीरेन सिंह को सत्ता से हटाना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने ड्रग्स के ख़िलाफ़ जंग छेड़ रखी है। रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रदेश में बीरेन सिंह की सरकार अफ़ीम की खेती को नष्ट कर रही है और कहा जा रहा है कि इसकी मार म्यांमार के अवैध प्रवासियों पर भी पड़ रही है। जिन्हें म्यांमार से जुड़ा अवैध प्रवासी बताया जा रहा है। वे मणिपुर के कुकी.ज़ोमी जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। कहा जा रहा है कि सरकार इन्हें सरकारी ज़मीन पर अफ़ीम की खेती करने से रोक रही है। पहला हिंसक विरोध प्रदर्शन 10 मार्च को हुआ था, जब कुकी गाँव से अवैध प्रवासियों को निकाला गया था।

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