राष्ट्रीय
ब्रिटिश राज के दौरान विरोध के बावजूद पद्म विभूषण जीडी बिड़ला ने फहराया भारतीय उद्योग का परचम
ब्रिटिश राज के दौरान विरोध के बावजूद पद्म विभूषण जीडी बिड़ला ने फहराया भारतीय उद्योग का परचम
सीएन, नईदिल्ली। आज के समय में हम भारत में कई अमीर घरों को देखते हैं। जैसे टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि। ये सभी घराने कई साझीदारों से लेकर बिजनेस के क्षेत्र में मेहनत करते आ रहे हैं तब ये जहां-जहां हैं, वहां पहुंच गए हैं। टाटा और अंबानी परिवार के बारे में तो काफी लोग जानते हैं लेकिन बिड़ला फैमिली के बारे में लोग कम ही जानते हैं।जीडी बिड़ला यानी घनश्याम दास बिड़ला वह पहले भारतीय उद्योगपति रहे हैं। उन्होंने बिड़ला ग्रुप की नींव रखी और इसे कई क्षेत्रों में फैलाया। ब्रिटिश राज के दौरान, बिड़ला को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि अंग्रेज उनका व्यवसाय बंद करवाना चाहते थे। लेकिन अपने उद्यमशीलता के जज्बे और लगन से उन्होंने न सिर्फ़ अपना व्यवसाय बचाए रखा, बल्कि एक विशाल साम्राज्य भी खड़ा किया। भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनाने में बिड़ला की बहुत बड़ी भूमिका रही। घनश्याम दास बिड़ला का जन्म 10 अप्रैल 1894 को पिलानी, राजस्थान में हुआ था। अपने पारिवारिक व्यवसाय को विरासत में पाने के बाद, उन्होंने इसे विविध क्षेत्रों में फैलाने का फैसला किया। बिड़ला पारिवारिक ट्रेडिंग बिजनेस को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ले जाना चाहते थे। इसलिए वे पिलानी से मुंबई गए। लेकिन वहां उनका धंधा जमा नहीं। इसके बाद वह कलकत्ता चले गए। जिस समय वह कलकत्ता गए थे वह शहर भारत की राजधानी थी। उस समय बंगाल यानी बंगलादेश समेत दुनिया का सबसे बड़ा पटसन उत्पादक क्षेत्र था। उन्होंने 1911 में कलकत्ता में जीएम बिरला कम्पनी की स्थापना की जो जूट की ब्रोकिंग करती थी। कुछ साल बाद ही 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हो गई। उस समय जूट की बोरी की डिमांड खूब बढ़ी थी। बस उन्होंने यही बनवा कर सप्लाई शुरू कर दी। इसकी बदौलत ही उन्होंने महज कुछ साल में अपने कारोबार को 2 मिलियन डॉलर से 8 मिलियन डॉलर तक पहुंचा दिया। पैसा आया तो साल 1918 में जीडी बिड़ला ने बिड़ला जूट मिल्स की स्थापना की। उस समय वह पहले भारतीय थे जिनकी अपनी जूट की फैक्ट्री या जूट मिल था। हालांकि तब कई यूरोपीय और ब्रिटिश व्यापारियों ने मिल के निर्माण का विरोध किया था। वह नहीं चाहते थे कि कोई भारतीय मिल खोल कर उनके साथ बैठने की हिम्मत करे। लेकिन वह अपने कौशल से यूरोपियनों की मंशा सफल नहीं होने दी। एक बार फैक्ट्री लगा ली तो इसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। साल 1919 में उन्हें 50 लाख रुपये का निवेश मिला और बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड की स्थापना हुई। फिर अगले कुछ साल में कुछ कॉटन मिल का अधिग्रहण किया। इसके बाद कुछ चीनी मिलें शुरू की। 1943 में कोलकाता में हिन्दुस्तान मोटर्स की स्थापना हुई जहां एम्बेसेडर कार बनती थी। देश की आजादी के बाद 1947 में उन्होंने ग्वालियर रेयॉन सिल्क मैन्यूफैक्चरिंग की स्थापना की जिसे पहले लोग ग्वालियर सूटिंग के नाम से जानते थे। साल 1958 में उन्होंने हिन्दुस्तान अल्यूमिनियम कंपनी की स्थापना की। वह एक सफल व्यापारी होने के अलावा राजनीतिक मामलों में भी सक्रिय थे। 1926 में वे ब्रिटिश भारत की केंद्रीय विधान सभा के लिए चुने गए। बिड़ला महात्मा गांधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ के संस्थापक अध्यक्ष भी थे। साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जीडी बिड़ला ने भारतीय पूंजी से एक वाणिज्यिक बैंक बनाने का सुझाव दिया। इसके परिणामस्वरूप यूनाइटेड कमर्शियल बैंक की स्थापना हुई। इसका मुख्यालय कोलकाता में बना। यही बैंक आज यूको बैंक के नाम से जाना जाता है, जिसे सरकार ने अधिगृहित कर लिया है। यह आज देश के प्रमुख और सबसे पुराने वाणिज्यिक बैंकों में से एक है। अपने गृहनगर पिलानी के विकास के लिए जीडी बिड़ला ने 1943 में बिड़ला इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की जिसे अब बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस पिलानी के नाम से जाना जाता है। आज यह भारत के शीर्ष और सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक है। इसके अलावा उन्होंने भिवानी में टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्सटाइल्स एंड साइंस की भी स्थापना की। उन्होंने पिलानी में कई शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण करके इसे शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। भारत सरकार ने जीडी बिड़ला को भारत की अर्थव्यवस्था और विकास में उनके योगदान के लिए 1957 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। बिड़ला ग्रुप के वर्तमान अध्यक्ष कुमार मंगलम बिड़ला, उनके परपोते हैं। जीडी बिड़ला देश के ऐसे बिजनेसमैन हैं जिन्होने बिजनेसमैन के समय में अपने बिजनेस का विस्तार किया। इसके साथ ही उन्होंने देश को स्वतंत्र करने के लिए आर्थिक योगदान भी दिया। युवाओं को शिक्षित करने के लिए कॉलेज बनाएं, देश को राजदूत बनाएं जैसी गाड़ी दी। उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें देश का दूसरा महत्वपूर्ण सम्मान पद्म विभूषण से वर्ष 1957 में नवाजा था। 11 जून 1983 को 83 वर्ष की आयु में जीडी बिड़ला का निधन हो गया था। लेकिन उनकी स्मृति आज भी जीवित है।
