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कल 1 जुलाई से लागू होंगे 3 नए कानून, देश में कहीं भी दर्ज होगा मुकदमा, विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

कल 1 जुलाई से लागू होंगे 3 नए कानून, देश में कहीं भी दर्ज होगा मुकदमा, विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल
सीएन, नईदिल्ली।
देश में 1 जुलाई से लागू होने वाले तीन नए क्रिमिनल कानून अपराध से जुड़ी कई चीजें बदल देंगे। देश में कहीं भी जीरो एफआईआर दर्ज हो सकेगी। इसमें धाराएं भी जुड़ेंगी।  आपराधिक न्याय व्यवस्था से संबंधित तीनों नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 भारतीय न्याय द्वितीय संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य द्वितीय अधिनियम 2023 एक जुलाई से लागू होंगे। गृह मंत्रालय ने इससे जुड़ी अधिसूचना 24 फरवरी को जारी कर दी थी। इन तीनों कानूनों को पहले ही राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी। तब ये तीनों विधेयक कानून बन गए थे। अब इन्हें लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई है। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम अब पुराने भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह ले लेंगे। लेकिन हिट एंड रन से जुड़े प्रावधान के अमल पर रोक रहेगी भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 हिंट एंड रन से जुड़ी है। मोटर ट्रांसपोर्ट यूनियनों ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 पर आपत्ति जताते हुए विरोध प्रदर्शन किया थाए जिसमें हिट एंड रन मामले में 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इस धारा में अगर आप तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाकर किसी की मौत की वजह बनते हैं और पुलिस को सूचना दिए बिना भागते हैं तो सजा का प्रावधान है। ट्रक ड्राइवर्स इस प्रावधान के खिलाफ हैं। सरकार ने कई बैठकों के बाद भरोसा दिया था कि इस धारा को लागू करने का फैसला ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के साथ चर्चा के बाद होगा। भारतीय दंड संहिताए आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम जो अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है उसकी जगह अब यह नए तीनों कानून ले लेंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को कानूनों पर अपनी सहमति दी थी। राज्यसभा में कानूनों के पास होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था संसद में पारित तीनों विधेयक, अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए कानूनों की जगह लेंगे और एक स्वदेशी न्याय प्रणाली का दशकों पुराना सपना साकार होगा। आतंकवाद शब्द को पहली बार भारतीय न्याय संहिता में परिभाषित किया गया है। यह आईपीसी में पहले मौजूद नहीं था। बीएनएस में आतंकवाद को धारा 113 के तहत दंडनीय अपराध बनाया गया है। इस कानून में आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा दी हैए राजद्रोह को अपराध के रूप में समाप्त कर दिया है और राज्य के खिलाफ अपराध नामक एक नया खंड जोड़ा गया है। आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास से दंडनीय बना दिया गया है इसमें पैरोल की सुविधा नहीं होगी। बीएनएस, भारतीय दंड संहिता 1860 के राजद्रोह प्रावधानों को निरस्त करता है। इसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 से बदला गया है, राष्ट्र की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाली सभी धाराएं इसमें जोड़ी गईं हैं। भारतीय न्याय संहिता में यौन अपराधों को संबोधित करने के लिए महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध नामक एक चैप्टर जोड़ा गया है। इसके अलावा संहिता में 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के बलात्कार से संबंधित प्रावधानों में संशोधन की सिफारिश है। 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार से संबंधित मामलों में आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। कानून के मुताबिक बलात्कार के दोषी को कम से कम 10 साल की कठोर कारावास की सजा का प्रावधान है इस सजा को आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा गैंगरेप के मामले में 20 साल की सजा या उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा शादी का बहाना, नौकरी का झांसा और पहचान बदलकर महिलाओं का यौन शोषण करने को अपराध माना जाएगा। भारतीय न्याय संहिता में मॉब लिंचिंग और हेट क्राइम मर्डर के लिए आजीवन कारावास या मौत की सजा का भी प्रावधान किया गया है। यह उन मामलों से संबंधित है जहां पांच या अधिक लोगों की भीड़, जाति, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार के आधार पर हत्या करती है। पहले के बिल में इस अपराध के लिए न्यूनतम सजा सात साल बताई गई थी। नए प्रावधानों को विधेयक की धारा 103 में शामिल किया गया है जो मॉब लिंचिंग और अपराधों से संबंधित अपराधों के लिए हत्या की सजा से संबंधित है। भारतीय साक्ष्य द्वितीय अधिनियम 2023 को भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह लाया गया है। इसके तहत अदालतों में प्रस्तुत और स्वीकार्य साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, कंप्यूटर, स्मार्टफोन, लैपटॉप, एसएमएस, वेबसाइट, ई-मेल और उपकरणों पर संदेश शामिल होंगे।
तीन नए आपराधिक कानूनों का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
1 जुलाई से तीन नए आपराधिक कानूनों को लागू किया जाना है। मगर उससे पहले ही इस पर रोक लगाने की मांग उठ गई है। तीन नए आपराधिक कानून लागू होने से पहले मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई है। जनहित याचिका में तीनों कानूनों के लागू करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में यह मांग की गई है कि तीनों आपराधिक कानूनों को लागू करने से पहले एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया जाए। इस कमेटी से पहले इसका विस्तृत अध्ययन कराया जाए। याचिका में तब तक के लिए ही तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक की मांग की गई है। यहां बताना जरूरी है कि 1 जुलाई से देश में तीनों नए आपराधिक कानून लागू होने हैं। उससे ठीक तीन दिन पहले अंजलि पटेल और छाया मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर यह मांग कर दी है। बता दें कि कांग्रेस भी कुछ ऐसा ही मांग करती आई है। कांग्रेस का कहना है कि तीन नए आपराधिक कानूनों का क्रियान्वयन टाला जाना चाहिए ताकि इन तीनों कानूनों की गृह मामलों से संबंधित संसद की पुनर्गठित स्थायी समिति द्वारा गहन समीक्षा की जा सके।

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