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शरद पवार के इस्तीफे के मायने: सुप्रिया या अजित, कौन होगा अगला अध्यक्ष

शरद पवार के इस्तीफे के मायने: सुप्रिया या अजित, कौन होगा अगला अध्यक्ष
सीएन, नईदिल्ली।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का एलान किया है। शरद पवार ने अपने इस्तीफे में कई भावनात्मक बातें भी कही हैं। पवार ने कुछ दिनों पहले इसको लेकर इशारा भी किया था। पवार ने यह एलान पार्टी की बैठक के दौरान किया। उनके एलान करते ही पार्टी के नेताओं ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया। सभी नेता शरद पवार को मनाने में भी जुट गए हैं। मेरे साथियो! मैं एनसीपी के अध्यक्ष का पद छोड़ रहा हूं, लेकिन सामाजिक जीवन से रिटायर नहीं हो रहा हूं। लगातार यात्रा मेरी जिंदगी का अटूट हिस्सा बन गया है। मैं पब्लिक मीटिंग और कार्यक्रमों में शामिल होता रहूंगा। मैं पुणे, बारामती, मुंबई, दिल्ली या भारत के किसी भी हिस्से में हूं, आप लोगों के लिए हमेशा की तरह उपलब्ध रहूंगा। लोगों की समस्याएं सुलझाने के लिए मैं हर वक्त काम करता रहूंगा। लोगों का प्यार और भरोसा मेरी सांसें हैं। जनता से मेरा कोई अलगाव नहीं हो रहा है। मैं आपके साथ था और आखिरी सांस तक रहूंगा। तो हम लोग मिलते रहेंगे। पवार ने आगे कहा मुझे लंबे समय तक पार्टी के नेतृत्व का मौका मिला। मैंने अध्यक्ष पद की कई साल जिम्मेदारी निभाई। मैं चाहता हूं कि कोई और इस जिम्मेदारी को संभाले। अब मैं अध्यक्ष पद से रिटायरमेंट ले रहा हूं। महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक आनंद त्रिपाठी ने कहा महाराष्ट्र की सियासत में ये बड़ा फैसला है। शरद पवार का नाम महाराष्ट्र में काफी बड़ा है। इसके अलावा वह देश के भी बड़े नेता हैं। ऐसे में उनके एनसीपी अध्यक्ष पद छोड़ने का एलान करना बड़ा सियासी संदेश भी है। पवार के अध्यक्ष पद छोड़ने के पीछे तीन कारण बताते हैं। पार्टी के अंदर उठ रहे थे विरोध के सुर 2019 में ही पार्टी के कई नेता चाहते थे कि भाजपा और एनसीपी मिलकर सरकार बनाए। हालांकि शरद पवार ने ऐसा नहीं किया। इसके बाद उनके भतीजे अजित पवार ने पार्टी के फैसले से अलग हटकर देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार भी बना ली थी। तब अजित डिप्टी सीएम बने थे। हालांकि, एक दिन बाद ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद शरद पवार के कहने पर कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने मिलकर महाविकास अघाड़ी का गठन किया था। तब एनसीपी के कई नेताओं ने इसको लेकर नाराजगी जताई थी। हाल के दिनों में भी पार्टी के कई नेताओं ने भाजपा के साथ आने के लिए सलाह दी थी। ये भी संभव है कि पार्टी के अंदर उठ रहे विरोध और बार.बार भतीजे अजित पवार की बगावती सुर के बीच शरद पवार अपनी ताकत परखना चाहते हों। वह यह देखना चाहते हों कि आखिर जिस पार्टी को उन्होंने खड़ा किया था, आज उसमें उनके साथ कितने लोग खड़े हैं। इसका असर भी देखने को मिलने लगा है। बड़ी संख्या में एनसीपी के नेता उन्हें मनाने में जुट गए हैं। सभी एक स्वर में बोल रहे हैं कि वह पार्टी का अध्यक्ष बने रहें। कुछ ऐसा ही दो बार शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे ने भी किया था। बाला साहेब ठाकरे ने भी शिवसेना प्रमुख का पद दो बार छोड़ा था और बाद में पार्टी के नेताओं के आग्रह पर फिर से पद संभाल लिया था। एनसीपी पर प्रभुत्व को लेकर पवार के घर में ही लड़ाई चल रही है। एक तरफ शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले हैं तो दूसरी ओर उनके भतीजे अजित पवार। ऐसे में पार्टी में पॉवर को लेकर परिवार में घमासान है। संभव है कि शरद पवार अपने इस फैसले के जरिए परिवार के विवाद को खत्म करने की कोशिश कर रहे हों। अजित पवार शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजित पवार का नाम इसमें सबसे पहले है। अजित पार्टी प्रमुख के लिए सबसे बड़े दावेदार हैं। पार्टी में उनकी हुकूमत भी चलती है। पार्टी पर उनका काफी प्रभाव है। यही कारण है कि जहां शरद पवार खुद नहीं होते हैं, वहां अजित को भेजा जाता है। अजित ने पार्टी के फैसले के खिलाफ जाकर 2019 में देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर शपथ ले ली थी। बगावत के बावजूद जब वापस अजित शरद पवार के साथ गए तो महाविकास अघाड़ी की सरकार में भी उन्हें ही डिप्टी सीएम बनाया गया। इसके बाद जब उद्धव ठाकरे की सरकार गिरी तो भी शरद पवार ने अजित को ही नेता प्रतिपक्ष बनाया। अजित के साथ सबसे बड़ी ताकत पवार नाम की है। अजित के साथ पवार शब्द जुड़ा हुआ है। ऐसे में संभव है कि पार्टी की बागडोर अजित पवार को ही मिल जाए। सुप्रिया सुले पवार की बेटी और एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले अध्यक्ष पद की दूसरी सबसे बड़ी दावेदार हैं। सुप्रिया तेज तर्रार नेता हैं और बोलने में काफी माहिर हैं। उनकी वाक शैली से लोग उनके कायल हो जाते हैं। सुप्रिया ने राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान बना रखी है। ऐसे में संभव है कि पार्टी की कमान आगे सुप्रिया को ही मिल जाए। अगर अजित पवार और सुप्रिया सुले के बीच पारिवारिक लड़ाई जारी रहती है तो संभव है कि पार्टी की कमान शरद किसी अपने विश्वसनीय नेता को दे सकते हैं। इसके जरिए वह परिवारवाद के आरोपों को भी गलत साबित करने की कोशिश कर सकते हैं। जैसा की अभी कांग्रेस में भी हुआ है। कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष बनाया है। हालांकि, पार्टी की शक्ति अभी भी गांधी परिवार के पास ही है।

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