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किसकी गुगली में फंस गए शरद पवार, पुत्री मोह में भतीजे अजित पवार से हुई दूरी

किसकी गुगली में फंस गए शरद पवार, पुत्री मोह में भतीजे अजित पवार से हुई दूरी
सीएन, मुबई।
पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय राजनीति में ‘विद्रोह’, ‘विश्वासघात’ और ‘पक्ष बदलने’ जैसे शब्द विचारधारा-आधारित राजनीति को लगभग खत्म कर रहे हैं। एनसीपी नेता अजित पवार के नेतृत्व में अपने चाचा और पार्टी अध्यक्ष शरद पवार के खिलाफ ताजा विद्रोह एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र के बड़ा असर डाला है। एनसीपी संकट हमें कुछ ऐसी घटनाओं की याद दिलाता है जिसमें राजनेताओं ने सत्ता की खातिर 180 डिग्री का मोड़ ले लिया। बताया जा रहा है कि बगावत करने वाले नेता लगातार शरद पवार से मुलाकात कर रहे थे। उन्हें यह बताने की कोशिश हो रही थी कि पार्टी के ज्यादातर विधायक भाजपा-शिवसेना सरकार से जुड़ना चाहते हैं। अजित पवार भी अपने स्तर से उन्हें कई बार बता चुके थे। हालांकि, शरद पवार इसके पक्ष में बिल्कुल भी नहीं थे। जब से शरद पवार विपक्षी दलों की बैठक में शामिल हुए, उसके बाद से पार्टी में फूट की सुगबुगाहट तेज होने लगी। हाल में ही पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए प्रफुल्ल पटेल ने भी भाजपा खेमे में जाने की ही बैटिंग की थी। उनकी गूगली भी शरद पवार को नहीं उलझा सकी। यही कारण था कि जिन नेताओं ने भाजपा-शिंदे गूट में जाना सही समय है, उसमें प्रफुल्ल पटेल भी शामिल हैं। एनसीपी की 25 वीं वर्षगांठ पर शरद पवार ने अचानक की राजनीति में हलचल बढ़ा दी थी कि वह अब पार्टी के अध्यक्ष नहीं रहेंगे। एक ओर उन्हें मनाने की कोशिश हो रही थी तो दूसरी ओर अजित पवार का दावा था कि शरद पवार नहीं मानेंगे। लेकिन काफी मान मनौव्वल के बाद शरद पवार ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया। इसके साथ ही शरद पवार ने दो कार्यकारी अध्यक्ष के भी नाम का ऐलान कर दिया। शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। इसके बाद अजित पवार के अंदर की चिंगारी और भड़क गई। राजनीति में इस बात पर भी खूब चर्चा हुई कि अजित पवार को हाशिए पर धकेला जा रहा है। हालांकि अजित पवार लगातार सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर अपनी नाराजगी से इनकार करते रहे। राजनीति और खासकर महाराष्ट्र को समझने वाले जितने भी विश्लेषक हैं, आज से कुछ समय पहले तक साफ तौर पर कह रहे थे कि शरद पवार की राजनीतिक विरासत का कोई वारिस होगा तो वह अजित ही होंगे। हालांकि, कुछ दिनों से पार्टी में सुप्रिया सुले का कद लगातार बढ़ रहा था। अजित पवार राज्य के भीतर ही सिमट कर रह गए थे। जबकि सुप्रिया सुले को राष्ट्रीय राजनीति में शरद पवार की ओर से प्रमोट किया जा रहा था। इसके बाद संगठन का कार्यभार की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर सुप्रिया सुले को सौंपी गई। अजित पवार नेता प्रतिपक्ष तो थे लेकिन संगठन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र का प्रभारी की बना दिया गया। यानी कि अजित पवार को भी सुप्रिया सुले को रिपोर्ट करनी होती। राजनीति में सुप्रिया सुले काफी दिनों से सक्रिय हैं। 2009 से वह लगातार बारामती संसदीय क्षेत्र से जीतती आई हैं। संवेदनशील होने के साथ-साथ वह अच्छी वक्ता भी है। हालांकि, जमीन पर अभी भी पिता की विरासत के सहारे ही आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं। राजनीतिक विश्लेषक दावा करते हैं कि सुप्रिया सुले जहां पिता के सहारे राजनीति में आगे बढ़ रही हैं तो वही अजित पवार ने खुद की जमीनी पकड़ बनाई है। अजित पवार की महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी अलग पकड़ है। वह राजनीतिक दांव-पेच को अच्छे तरीके से समझते भी हैं। सुप्रिया सुले इस मामले में थोड़ी पीछे हैं। अगर पार्टी में आज एक धारा विरोध में उतरा है तो कहीं ना कहीं इससे इस बात का भी संकेत गया होगा कि वह धारा सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से खुश नहीं है। सुप्रिया सुले के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। सुप्रिया सुले को आज भी राजनीति में आगे बढ़ने के लिए शरद पवार का हाथ जरूरी है। अजित पवार के साथ ऐसा नहीं है। शरद पवार को राजनीति का चाणक्य माना जाता है। राजनीति के रह दांव-पेंच को वह अच्छे तरीके से समझते हैं। शरद पवार ऐसे मौकों से कई बार खुद को निकाल चुके हैं। उन्होंने राजनीति में लंबी पारी खेली है। ऐसे में इन परिस्थितियों से निपटना उन्हें बेहतर तरीके से आता है। शरद पवार के साथ आज भी संगठन में काम करने वाले कई बड़े नेता खड़े हैं। लोगों के बीच शरद पवार ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। शरद पवार की जमीन पर अपनी पकड़ है। लेकिन शरद पवार के लिए परिस्थितियां पहले इतनी अनुकूल नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण है शरद पवार की उम्र। पार्टी में हुए इस नुकसान की भरपाई के लिए पवार को खूब मेहनत करनी होगी। इस उम्र में शायद उनके लिए यह संभव नहीं है तभी तो उन्होंने पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए दो कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए थे। हालांकि, शरद पवार यह दावा कर रहे हैं 3 महीने में पिक्चर पूरी तरीके से बदल जाएगी। अगर जनता का प्यार और आशीर्वाद उनके साथ रहा तो। हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि पवार आखिर किसकी गुगली में फंस गये। इस फूट को वग भांप क्यों नहीं सके। एनसीपी में टूट के बाद शरद पवार भी जबरदस्त तरीके से भाजपा पर हमलावर है। राजनीतिक विशेषण दावा कर रहे हैं कि भाजपा ने अजित पवार को अपने पाले में करके एक तीर से दो निशाने साध लिए हैं। पहला कि विपक्षी एकता को भाजपा ने बड़ा झटका दिया है। एक ओर जहां विपक्षी एकता को मजबूत करने की बात हो रही है तो वहीं दूसरी ओर भाजपा उसमें सेंधमारी कर रही है। इसके अलावा भाजपा ने एकनाथ शिंदे को भी संदेश दे दिया है। एकनाथ शिंदे राज्य के मुख्यमंत्री हैं और शिवसेना के नेता हैं। शिंदे गुट लगातार भाजपा पर किसी ना किसी बहाने दबाव बनाने की कोशिश करता था। अब भाजपा ने इससे अपना पीछा छुड़ा सकती है। राजनीति तमाशा ना बने, यही राजनेताओं को कोशिश करना चाहिए। सभी राजनीतिक दल अपने को स्वच्छ तो बताते हैं लेकिन इस तरह की चीजों में खुद को सम्मिलित करने से पीछे नहीं हटते हैं। जनता के लिए इस तरह की चीजें कितना फायदेमंद और नुकसानदेह होता है, यह तो जनता को ही तय करना होगा। यही तो प्रजातंत्र है।

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