राजनीति
बीजेपी के खिलाफ वसुंधरा का आखिरी दांव बाकी है, 10 सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती हैं राजे
बीजेपी के खिलाफ वसुंधरा का आखिरी दांव बाकी है, 10 सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती हैं राजे
सीएन, जयपुर। भाजपा आला कमान ने राजस्थान के लिए जारी पहली सूची से दो बातें साफ़ कर दी हैं। एक, आलाकमान को वसुंधरा राजे की न तो ज़रूरत है और न ही वह वसुंधरा के संभावित विद्रोह से डर। दूसरी बात, वसुंधरा समर्थक का टिकट काटकर सबसे सुरक्षित सीट से सांसद राजकुमारी दीया कुमारी को विधानसभा चुनाव लड़ाया जा रहा है। इसका मतलब कि पार्टी दीया कुमारी में वसुंधरा का विकल्प तलाश रही है। तो क्या राजकुमारी दीया को मुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है,
जानकारों का कहना है कि वसुंधरा के पास संयम से घर बैठकर सही मौके का इंतज़ार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। आलाकमान ने इशारा कर दिया है कि आगे भी वसुंधरा समर्थकों के टिकट काटे जा सकते हैं। हो सकता है कि माहौल ऐसा बनाया जाए, जिससे तंग होकर वसुंधरा राजे ख़ुद ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दें। जिनके टिकट काटे गए हैं, उनमें से कुछ ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है। जानकारों का कहना है कि बीजेपी विधानसभा चुनाव बिना वसुंधरा के भी जीत रही है। ऐसे में वसुंधरा के लिए समझदारी यही है कि वह इस मौके पर चुप रहें। आलाकमान का साथ देती नज़र आएं और पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों की तारीफ करें। अगर बीजेपी साधारण बहुमत ही लाने में कामयाब होती है, तो वह विधायक दल की बैठक में अपने लिए संभावना तलाश सकती हैं। अगर वहां भी तीर नहीं चलता, तो उनको लोकसभा चुनाव तक का इंतज़ार करना चाहिए। चूंकि मोदी को 2023 से ज़्यादा 2024 के लोकसभा चुनावों की चिंता है, लिहाजा तब वह ज़रूर राज्य की सभी 25 सीटों पर तगड़ी जीत चाहेंगे। यहां वसुंधरा अगर आठ से 10 सीटों पर मोदी को नुकसान पहुंचाने में कामयाब होती हैं, तो यह सियासी चोट होगी। कुछ महीने पहले वसुंधरा के जन्मदिन के मौके पर राज्य के आठ सांसद मौजूद थे, जो यह बताने के लिए काफी है कि वसुंधरा लोकसभा चुनावों में मोदी को कितना नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती हैं। चूंकि विधानसभा चुनाव के बाद पूरी तरह साफ़ हो जाएगा कि आलाकमान की नज़र में वसुंधरा राजे की हैसियत क्या है, ऐसे में लोकसभा चुनाव में नहले पर दहला मारना ज़्यादा मुफीद रहेगा। शीर्वाद हासिल है, लेकिन क्या वह खुलकर इन बागियों के पक्ष में आएंगी, जयपुर के महाराजा मानसिंह की पोती और महारानी गायत्री देवी की भी पोती, जयपुर राजघराने की राजकुमारी दीया सब तरफ चर्चा में हैं। राजनीति भी क्या रंग दिखाती है! वसुंधरा राजे 2013 में ख़ुद राजकुमारी दीया को राजनीति में ले कर आईं और सवाई माधोपुर से विधानसभा चुनाव लड़वाया। अब उन्हीं की कुर्सी के आड़े दीया आ गई हैं। जानकारों के अनुसार, बीजेपी आलाकमान को राजकुमारी दीया में संभावना दिख रही है। वैसे वह भी वसुंधरा की तरह राजपूत हैं, शाही घराने से हैं, महिला हैं, जनता के बीच अपील है उनकी और उभरता हुआ युवा चेहरा हैं। वसुंधरा खेमे का कहना है कि 2003 में प्रदेश की राजनीति में आने से पहले वसुंधरा चार बार सांसद और एक बार अटल सरकार में मंत्री रह चुकी थीं। इस हिसाब से राजकुमारी दीया सियासी रंगरूट ही हैं। राजकुमारी दिया टिकट मिलने के बाद वसुंधरा राजे से आशीर्वाद मांगने नहीं गई हैं। यह अपने में साबित करता है कि दीया 2016 नहीं भूलींए जब राजघराने के एक हेरिटेज होटल पर ताला जड़ दिया गया था और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजकुमारी दीया की मां महारानी पद्मिनी देवी की पुकार भी अनसुनी कर दी थी। यूं वसुंधरा ने प्रदेश के नेताओं की बैठक में समर्पित कार्यकर्ताओं को महत्व नहीं दिए जाने पर अपना रोष ज़रूर व्यक्त किया, लेकिन उन्हें भी पता है कि उनकी आवाज़ आलाकमान के नक्कारखाने में तूती ही है। बैठक में बागियों और दूसरे दलों से आए नेताओं को भी टिकट नहीं देने की बात कही गईए लेकिन बगावत पर उतरे नेताओं को मनाने का काम करने से वसुंधरा ने आनाकानी की। साफ़ है, वसुंधरा ने भी जता दिया है कि उनका मान नहीं रखा जाताए तो उनसे भी कोई उम्मीद नहीं की जाए। वैसे भी जब सब कुछ आलाकमान ही तय कर रहा हैए तो अलग से टेंशन क्या पालना। बकौल गालिब…फिक्रे दुनिया में सर खपाता हूं, मैं कहां और ये बवाल कहां….प्रादेशिक नेताओं की बेरुखी क्या रंग लाएगी, देखना दिलचस्प रहेगा।