जन मुद्दे
फरवरी में 28 दिन और लीप वर्ष में 29 दिन क्यों होते हैं
फरवरी में 28 दिन और लीप वर्ष में 29 दिन क्यों होते हैं
सीएन, नई दिल्ली। कैलेंडर का इतिहास बहुत उलझा हुआ है। इसकी शुरुआत रोमन काल में हुई थी। रोमन कैलेंडर में मूलतः केवल 10 महीने होते थे और साल का पहला दिन 1 मार्च को होता था। (यही कारण है कि “सितंबर” को “7 (सप्त)”, “अक्टूबर” को 8 (अष्ठ), “नवंबर” को 9 (नव), और “दिसंबर” को 10 (दश) के कारण अंतिम महीना माना जाता था)। दिसंबर के बाद लगभग 60 दिनों का खालीपन था जिसका कोई नाम नहीं था, और उसे महीनों में बदलने के बारे में किसी ने भी नहीं सोचा। सबसे शुरुआती कैलेंडरों में हर महीने में शायद 29 दिन होते थे जो चंद्रमा की तिथियों पर आधारित होते थे। बाद में इनमें कुछ दिन जुड़ते-जुड़ते 30 और 31 दिन तक हो गए। लगभग 713 ईसा पूर्व के आसपास कैलेंडर में जनवरी और फरवरी महीने जोड़े गए। उन दिनों केवल फरवरी ही ऐसा अकेला महीना होता था जिसमें दिनों की संख्या सम अर्थात 28 दिन थी। शेष सभी महीनों में दिनों की संख्या 29 या 31 होती थी। उन दिनों सम संख्या को अशुभ माना जाता था। लेकिन किसी एक महीने को सम संख्या देना ज़रूरी था इसीलिए इस महीने को सबसे छोटा रखा गया ताकि अशुभ महीना जल्दी बीत जाए। (क्योंकि 12 विषम संख्याओं का योग सम संख्या होता है, फिर भी वर्ष में दिनों की संख्या विषम ही रहती है)। कैलेंडर अपने इसी स्वरूप में जूलियस सीज़र के जमाने तक चलता रहा। जूलियस सीज़र ने लीप महीने हटा दिए क्योंकि यहूदी कैलेंडर में लीप महीने नहीं होते थे। लेकिन किसी एक महीने को लीप महीना बनाना ज़रूरी था ताकि कैलेंडर सौर वर्ष के अनुरूप उपयोगी बना रहे। इसलिए फरवरी में लीप वर्ष में 1 दिन जोड़ने के बारे में सोचा गया। अब कैलेंडर बहुत कुछ अपने आधुनिक रूप में तैयार हो चुका था और अगले 1500 वर्षों तक बाकी महीनों के दिनों मे 1 दिन की घट-बढ़ होती रही लेकिन फरवरी को और अधिक दिन वाला महीना बनाने के बारे में किसी ने नहीं सोचा। यही कारण है कि फरवरी में अभी भी 28 दिन होते हैं।