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उत्तरकाशी

बर्फबारी हिमालय के पर्यावरण, सौंदर्य व मां गंगा के लिए वरदान

लोकेन्द्र सिंह बिष्ट, गंगोत्री, उत्तरकाशी। गंगाओं का प्रदेश है अपना उत्तराखंड, बर्फ ही हिमालय का आभूषण है और मां गगा का श्रृंगार भी। जी हां आज बात करते हैं हिमालयी राज्यों में अभी हाल में हुई भारी बर्फबारी की। बर्फ हिमालय के पर्यावरण के लिए, हिमालय के सौंदर्य के लिए और मां गंगा के लिए भी वरदान है। बर्फ ही हिमालय का सौंदर्य भी है और आभूषण भी और मां गंगा का शृंगार भी। अभी 25 दिसंबर 2022 को गंगा मां के उद्गम गंगोत्री गया जहां मां गंगा के दिव्य आलौकिक रूपों के दर्शन हुए। यूं तो मां गंगा के एक नहीं असंख्य रूप होते हैं। गंगा मां सदा बहती है और सदा बदलती भी है फिर भी सदा वही मां गंगा होती हैं। इन्ही असंख्य रूपों में से एक रूप आजकल ये है गंगा मां का। जिसे खासतौर पर आप सब शुभचिंतकों व दोस्तों के लिए प्रस्तुत है। समुद्रतल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर गंगोत्री में आजकल गंगा मां शांत, निश्चल, निर्मल, अविरल, कोमल स्वच्छ , सुंदर रूप में कल कल करती बह रही है। तापमान इतना कम है कि मां गंगा ने स्वयं भी शीत से बचने के लिए जब कोई वस्त्र नहीं मिले तो बर्फ को ही ओढ़ लिया है।। मां गंगा के इन अद्भुत रूपों के दर्शन से सुधी पाठक भी अभिभूत होंगे। पर्यावरण के लिए, हिमालय के लिए, हिमालय में विद्यमान ग्लेशियरों, हिमनदों, नदियों, झरनों, तालाबों, प्राकृतिक जलस्रोतों, जल, जंगलों, जड़ी , बूटियों ,फल ,फूलों, बुगयालों और यहां की फसलों के लिए वरदान है नवंबर दिसंबर में होने वाली बर्फवारी। देश के प्रतिष्ठित खबरिया चैनल भी हिमालयी राज्यो में हुई भारी बर्फवारी को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं, जो कि उनकी पर्यावरण को लेकर उनकी चिंता को भी दर्शाती है। हिमालयी राज्यों में खासकर बर्फवारी वाले इलाकों में लोग आदि अनादि काल से जीवन यापन कर रहे हैं। इन इलाकों में रहने वाले लोग जानते हैं कि बर्फवारी के दौरान जीवन यापन कैसे करना है। इन लोगों ने मौसम के हिसाब से इन स्थानों में जीवन गुजर बसर करने की तकनीक ईजाद कर रखी है। 6 महीनों तक भारी बर्फवारी के दौरान माइनस डिग्री को झेलने व बर्फीली हवाओं को मात देने के लिये घरों का निर्माण भी उसी के अनुरूप निर्माण की तकनीकी ईजाद कर रखी है। स्वयं के लिए राशन, खाने पीने, दवा दारू व मवेशियों के लिए चारे पत्ती की माकूल ब्यवस्था की हुई रहती है। इतना जरूर है कि उनका आवागमन भले ही बंद हो जाता है लेकिन इसके लिए वे मानसिक तौर पर भी तैयार रहते हैं। दरअसल पिछले डेढ़ दशक से समूचे विश्व का ऋतुचक्र डगमगा गया है। हिमालयी राज्यों में बर्फवारी जनवरी से लेकर मार्च तक हो रही थी जो हिमालय ओर उसके पर्यावरण के लिए घातक शाबित हो रही थी। हिमालय में तेज़ी से बर्फ पिघलने का दौर जारी है,, यहां विधमान ग्लेशियर तेज़ी के साथ पिघल रहे हैं, जिनमे मां गंगा का उद्गम श्रोत गौमुख यानी गंगोत्री ग्लेशियर सबसे तेजी के साथ पिघल रहा है। समूचे हिमालय में जगह जगह धरती निकल आयी है, दरअसल वर्षभर हिमाच्छादित रहने वाले हिमालय में बर्फ पिघलने की रफ्तार बढ़ गई है, जिसके चलते समूचे हिमालय में जगह जगह जमीन दिखायी देने लग गई है। जनवरी में सूर्य मकर रेखा पर आने से मौसम में गर्माहट आ जाती है उसके बाद फरवरी से लेकर मार्च तक कि बर्फवारी हिमालय के लिए घातक शाबित होती है। इस दौरान की बर्फवारी पहले से ही हिमालय में मौजूद बर्फ के लिए घातक होती है।
इस दौरान की बर्फवारी पहले से मौजूद बर्फ को भी तेज़ी से पिघलने पिघलाने में सहायक बनती है। हिमालय में विद्यमान ग्लेशियरों, हिमनदों के लिए भी जनवरी से लेकर मार्च की बर्फवारी अभिशाप बनकर आती है। अभी नवम्बर से लेकर दिसंबर की बर्फवारी हिमालय में विद्यमान बर्फ व ग्लेशियरों के लिए कवच का काम करती है।। आजकल की ही बर्फवारी से समूचे हिमालय व उसके ग्लेशियरों, हिमनदों पर बर्फ की परतें चढ़ाती हैं। आजकल की बर्फवारी से ही ग्लेशियरों में एक के बाद एक परत बिछती जाती है। बर्फ की इन्हीं परत दर परतों से ही ग्लेशियरों का निर्माण होता है, और इन्हीं बर्फ की 2 से लेकर 12 फ़ीट मोटाई तक कि मोटी मोटी परतें हिमालय और उसके ग्लेशियरों को मई जून से लेकर सितम्बर तक सुरक्षित रखती हैं। पिछले डेढ़ दशक से नंबर दिसंबर में बर्फवारी न होने के चलते हिमालय में विद्यमान बर्फ पिघलती रही और परिणाम ये हुवा कि हिमालय जगह जगह बर्फ से वीरान हो गया। वर्षभर बर्फ की चादर से ढके हिमालय में जगह जगह धरती आसमान को झांकने लगी।। समूचे हिमालय में बर्फ की ये मजबूत और मोटी मोटी चादरें फट ही नहीं रही हैं बल्कि उधड़ रहीं हैं। आपको बताते चलें कि फटने का इलाज तो प्रकृति के पास भी है और मानव के पास भी। लेकन उधड़ने का इलाज न प्रकृति के पास है न मानव के पास।

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