चमोली
सरकार को महंगा पड़ा महिला की पीठ से घास का गट्ठर उतारना
24 जुलाई को हैलंग में जुटेंगे उत्तराखंड राज्य भर की आंदोलनकारी
सीएन, चमोली। सुदूर पहाड़ की एक सीधी-साधी घसियारी की पीठ पर लदा घास का गट्ठर उतारना राज्य सरकार के गले की फांस भी बन सकता है, यह पंद्रह जुलाई को चमोली जिले के हैलंग इलाके में महिला से जोर-जबरदस्ती कर रहे पुलिसकर्मियों ने शायद ही सोचा हो। लेकिन प्रकृति के त्योहार हरेले से एक दिन पूर्व मंदोदरी देवी नाम की इस महिला के साथ हुई पुलिसिया बदसलूकी ने पूरे प्रदेश के लोगों को इतना उद्वलित कर दिया कि यह मामला निकट भविष्य में सरकार के लिए बड़ी परेशानी के रूप में देखा जाने लगा है। इस प्रकरण को लेकर 24 जुलाई को उत्तराखंड राज्य भर के आंदोलनकारी हैलंग में जुटेंगे। इस प्रकरण की पृष्ठभूमि की जानकारी के लिए बताते चलें कि उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ शहर के पास टीएचडीसी की पीपलकोटी विष्णुगाड़ नाम की जल विद्युत परियोजना चल रही है। इसी परियोजना के लिए हैलंग नाम की एक जगह पर सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। परियोजना को संचालित करने वाली कम्पनी के पास इस सुरंग से निकले मलवे को डंप करने के लिए जो स्थान उपलब्ध हैं, वहां मलवे का निपटारा करना खासा महंगा है। इसलिए कम्पनी सुरंग के इस मलवे को अपनी सुविधानुसार सीधे-सीधे अलकनंदा नदी में डंप करने की सोच रही है। लेकिन मलवा खुलेआम नदी के हवाले करने से होने वाले विवाद की वजह से कम्पनी ने बैकडोर का सहारा लेते हुए नदी के किनारे एक स्थान पर इस मलवे को डंप करना शुरू कर दिया जिससे भविष्य में यह मलवा बाढ़ आने पर खुद ही नदी में समा जाए। इस जगह पर गांव वाले अपनी चारागाह होने का दावा करते हैं। उत्तराखण्ड में जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर हजारों हजार नाली नाप भूमि, जंगल, चरागाह की भूमि, पनघट, मरघट, पंचायत की भूमि, कम्पनियों को पहले ही दे दी गयी है। इसके बाद भी कम्पनियों की नीयत लोगों की सामूहिक हक- हकूक की भूमि को भी हड़प लेने की है। इससे आम ग्रामीणों के सम्मुख घास चारा लकड़ी का संकट पैदा हो गया है। यह घटना इसी का परिणाम है। विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना के तहत हेलंग में सुरंग बनाने का कार्य कर रही कम्पनी द्वारा खेल मैदान बनाने के नाम पर जहां डम्पिंग ज़ोन बनाया जा रहा है, वह लोगों के पास चारागाह का अंतिम विकल्प बच गया है, वहां लोगों ने वृक्षारोपण कर इस भूमि को हरा भरा बनाया था। डम्पिंग ज़ोन के नाम पर वहां हरे पेड़ काट दिए गए व चारागाह के इस अंतिम विकल्प को भी खत्म किया जा रहा है। जबकि कम्पनी के पास मलबा डम्पिंग के लिए विकल्प उपलब्ध हैं।