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अल्मोड़ा

एसएसजे विवि के हरेला पीठ आजादी के अमृत महोत्सव के तहत पौधरोपण एवं ऑनलाइन जनजागरूकता अभियान आयोजित

सीएन, अल्मोड़ा। सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय,अल्मोडा के हरेला पीठ द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के तहत और यू सर्क के सहयोग से 16 से 22 जुलाई तक हरेला महोत्सव मनाया जा रहा है। इसी क्रम में हरेला महोत्सव के चौथे दिन परिसर एवं कुलपति आवास के आसपास फलदार वृक्षों का रोपण किया गया। कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह भंडारी, संजना भंडारी, डॉ. नवीन भट्ट, सौरभ, गौरव, संजय बिष्ट, डॉ. ललित जोशी ने पौधारोपण कर उन्हें एक वृक्ष बनने तक देखरेख करने का संदेश दिया। योग विज्ञान विभाग में विभागाध्यक्ष डॉ. नवीन भट्ट के संयोजन में नमामि गंगे सेल्फी विद ट्री कार्यक्रम के तहत सांख्यिकी, योग विज्ञान, गणित विभाग के पास 40 फलदार पौधों का रोपण किया। हरेला महोत्सव के दौरान नमामि गंगे सेल्फी विद ट्री अभियान में योग विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों ने पौध रोप कर उसके साथ सेल्फी खींची ताकि भविष्य में विद्यार्थी उन्हीं रोप गए पौधों की देखरेख छः माह तक करेंगे। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ. नवीन भट्ट, लल्लन सिंह, गिरीश अधिकारी, रजनीश जोशी के साथ विभाग के दर्जनों छात्र छात्राओं ने पौध रोपे। डॉ. भट्ट ने बताया कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत विद्यार्थियों ने फलदार पौधे रोपे। पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग ने हरेला महोत्सव के तहत ऑनलाइन हरेला जागरूकता अभियान का ऑनलाइन पटल पर संचालन किया
आजादी के अमृत महोत्सव के तहत सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के हरेला पीठ द्वारा इन दिनों हरेला महोत्सव मनाया जा रहा है। विश्वविद्यालय का पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विद्यार्थियों ने भी लोक पर्व की महत्ता को समझाने के लिए ‘ऑनलाइन हरेला जागरूकता अभियान’ का संचालन किया है। हरेला पीठ के निदेशक प्रो.जगत सिंह बिष्ट के संरक्षण और पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रभारी डॉ. ललित जोशी के संयोजन में विद्यार्थी ऑनलाइन हरेला जागरूकता अभियान का संचालन कर रहे हैं। जनता को अपने पर्यावरण से जुड़ने के लिए पोस्टर श्रृंखला प्रसारित कर रहे हैं।
हरेला पर्व मनाकर शुभ सावन मास की शुरुआत होती है। यह पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है। ऐसा कहा जाता है कि उत्तराखंड में देवों के देव महादेव का वास है और इस​लिए हरेला का महत्व और भी बढ़ जाता है। अभियान के निर्देशक डॉ. ललित चन्द्र जोशी ने कहा कि हरेला का पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने की खुशी में मनाया जाता है। इस पर्व के 9 दिन पहले घर के मंदिर में सात प्रकार के अन्न रोपे जाते हैं। उत्तराखंड की कला एवं संस्कृति दुनिया भर में प्रसिद्ध है। प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण राज्य उत्तराखंड की कला एवं संस्कृति दुनिया भर में प्रसिद्ध है. इसे देवों की भूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहां की संस्कृति में विविधताएं देखने को मिलती है। जिसके कारण यहां पर देशी विदेशी पर्यटकों का खूब जमावड़ा लगता है। उत्तराखंड के कुछ प्रमुख पर्व है जिसमें से एक है हरेला, जिसकी चर्चा लोग खूब करते हैं। यह पर्व देव भूमि में धूम धाम से मनाया जा रहा है। आपको बता दें कि उत्तराखंड में इस पर्व के बाद ही सावन की शुरूआत होती है।पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की छात्रा शैली मंसूरी का कहना है कि कुमाउनी संस्कृति और वहां के त्यौहारों की बात ही निराली होती है। उत्तराखंड में सुख-समृद्धि, पर्यावरण संरक्षण और प्रेम का प्रतीक हरेला लोक पर्व कुमाऊं क्षेत्र में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। हमें पर्यावरण को बचाने के लिए काम करना होगा। छात्रा स्वाति तिवारी ने कहा उत्तराखंड के लोगों के लिए यह दिन बेहद खास होता है और यहां इस दिन से ही सावन की शुरुआत मानी जाती है। जबकि देश के अन्य हिस्सों में सावन माह का आगमन हो चुका है। हरेला हमारी पहचान है। हमें अपनी पहचान को बनाये रखने के लिए आगे आना होगा।
छात्रा दिव्या नैनवाल का कहना है कि हरेला पर्यावरण के संरक्षण के लिए इशारा करता है। हमें लोकपर्व हरेला के बहाने अपने लोकपर्वों की तरफ देखना और समझना होगा। विभाग की छात्रा ज्योति नैनवाल ने कहा चैत्र माह में बोया/काटा जाने वाला हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है, तो आश्विन माह की नवरात्रि में बोया जाने वाला हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है। जर्नलिज्म की छात्रा रोशनी बिष्ट ने बताया कि उत्तराखंड के लोक पर्व हरेला के दिन कहे जाने वाले आशीर्वचन ‘जी रये जाग रये, य त्यार य मास भेटनै रये.’ में गांव-समाज की सुख-समृद्धि व खुशहाली की कामना कर अनुजोंको आशीर्वाद दिया जाता है। यह समाज को समरसता के भाव से जोड़ता है।

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