उत्तराखण्ड
हेलंग की मंदोदरीः मुकाबला करने की विवशता मिटाने की प्रेरणा बनी
रमेश पहाड़ी, चमोली। हेलंग में मंदोदरी जी ने जो ताकत दिखाई है, वह नमन के योग्य है, प्रशंसनीय है और हम सबके लिए एक प्रेरणा-पुंज है। उनके पक्ष में सामाजिक कार्यकर्ताओं और मुख्य रूप से अतुल सती व उनके साथियों ने जो पहल की और उसके बाद पूरे उत्तराखण्ड में जो नाराजगी और प्रतिक्रियायें देखने-पढ़ने को मिलीं, समाज के विभिन्न हिस्सों से उसमें भागीदारी की जो एक संगठित भावना देखने को मिली, उससे एक नई आशा का संचार भी हुआ है। मंदोदरी जी के साहस और विवेकपूर्ण कदम से उन हजारों बहनों-भाइयों का मार्ग कैसे प्रशस्त हो जो रोज वन कार्मिकों, अपने आजू-बाजू के पंचायती जंगलों के चौकीदारों से अपने पशुओं को जिलाये रखने का संघर्ष करतीं हैं। उनके और वनोत्पादों से जीविका चलाने वाले लाखों दस्तकारों के हथियारों की लूट, गालियों, अभद्र संकेतों का मुकाबला करने की विवशता कैसे मिटे, अब यह हम सबके लिए यह अधिक विचारणीय होना चाहिए। अपने पत्रकारिता के कुल जमा 55 में से 40 वर्ष सक्रिय पत्रकारिता और जनांदोलनों को करते, देखते मेरा अपना निष्कर्ष यह है कि स्थानीय मुद्दों पर स्थानीयता को शक्ति देने की बजाय उसके व्यापकीकरण से अधिकतर में आंदोलन के मूल तत्व नष्ट हो जाते हैं और आंदोलन में विखंडन तथा बिखराव का आरम्भ हो जाता है। इस एक उदाहरण से उसे समझा, परखा जा सकता है।
1980 के फरवरी महीने में गढ़़वाल से पहला संसदीय चुनाव जीतने के बाद हेमवती नन्दन बहुगुणा जी जनता को धन्यवाद देने क्षेत्र में आये। कर्णप्रयाग में उनके जनता-मिलन कार्यक्रम में मैं भी पत्रकार के रूप में शामिल हुआ। बंगले में बैठे बहुगुणा जी भीड़ से घिरे थे और मैं (ऊखीमठ मिडिल स्कूल में मेरे बड्डा ससुर जी का शिष्य और ससुर जी का सहपाठी होने के नाते) उनके चरण स्पर्श कर प्रणाम करने का अवसर ढूंढ रहा था कि डुंगरी-पैंतोली के एक सज्जन (बच्ची राम सती) ने उन्हें एक अर्जी देते हुए कहा कि हमारे यहां औरतें चिपको चलाने वाली हैं, आप हमारे बांज के जंगल को कटने से बचाओ। बहुगुणा जी कागज पढ़़ ही रहे थे कि किसी ने (सम्भवतः युवा एडवोकेट हरीश पुजारी जी) पीछे से मुझे इंगित करते हुए उनसे कहा- यहां हैं न चिपको वाले, इनको दो। बहुगुणा जी ने मुझे देखा और कहा- तुमको तो मालूम होगा। इस पर लिखो तो मैं डीएम को लिख देता हूँ। मैंने कहा कि मुझे इसकी जानकारी नहीं है लेकिन आपका आदेश है तो मैं क्षेत्र में जाकर एक सप्ताह के अन्दर आपको रिपोर्ट भेज सकता हूँ। उन्होंने यह ज्यादा ठीक है कहा और कागज मुझे पकड़ा दिया। मैं एक विद्यार्थी साथी (श्री किशन सिंह बिष्ट, गौचर) को लेकर दूसरे ही दिन डुंगरी स्कूल पहुंच गया और अगले दिन कटान वाली जगह पर। बच्ची राम जी को पता चला तो उन्होंने महिलाओं को खबर की। कुछ बहनें वहीं पहुंच गईं और मुझे जबर्दस्ती गांव में ले गईं। मैंने बताया कि मुझे बहुगुणा जी ने भेजा है, मैं अपनी रिपोर्ट उन्हें भेज दूँगा, डीएम को भी लिख दूंगा लेकिन आपका जंगल तब बचेगा, जब आप स्वयं संगठित होकर लड़ेंगी। उन्होंने चिपको आंदोलन का नाम तो सुना था लेकिन होता कैसे है, इसकी उन्हें जानकारी नहीं थी। मैंने उन्हें उसी समय महिला मंगल दल बनाने को कहा, जो उन्होंने मेरे सामने ही बना दिया। उसके बाद मैँने गौचर पहुंच कर बहुगुणा जी, जिलाधिकारी रजत कुमार और चंडीप्रसाद भट्ट को पत्र लिखे और इस पर त्वरित कार्यवाही की आवश्यकता बताई। भट्ट जी ने तुरंत वहां चलने और बहनों को सशक्त बनाने की आवश्यकता बताई और हम कई बार बहनों के समर्थन में वहाँ गए और उसके बाद अधिकारियों का भी आना-जाना होता रहा। बैठकों व पत्राचारों के लंबे सिलसिले के बाद
बहनों की माँग पूरी हुई और आगे जंगल का कटान बंद कर ग्रामीणों को सौंप दिया गया।