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हाई कोर्ट गैरसैण को केंद्र मानकर उसके आसपास स्थापित हो : पुष्पेश त्रिपाठी

हाई कोर्ट गैरसैण को केंद्र मानकर उसके आसपास स्थापित हो: पुष्पेश त्रिपाठी
सीएन, नैनीताल।
उक्रांद के पूर्व अध्यक्ष व द्वाराहाट के पूर्व विधायक  पुष्पेश त्रिपाठी का कहना है कि 2002 में जब राज्य की घोषणा हुई तब आनन फानन में दो से तीन दिन पहले  देहरादून और आसपास के इलाकों में कई सौ करोड़ों की जमीनों की रजिस्ट्रियां रातोंरात हो गयी थी, भूमाफिया एक तरह से पूरे देहरादून में नजरे गड़ाए हुए था, उसके बाद उसका पूरा दबाव देहरादून को राजधानी घोषित करने में रहा नतीजन देहरादून राजधानी बना दिया गया और जनभावनाओं के अनुरूप और कौशिक समिति की सिफारिश के बावजूद गैरसैण को भविष्य की राजधानी की किसी भी योजना के बिना, नकार दिया गया। इसी के साथ ही साथ एक तुष्टिकरण के लिए, बिना किसी दूरदर्शिता के नैनीताल में हाई कोर्ट बनाया  गया। 24 वर्षों के बाद हाई कोर्ट को नैनीताल में तमाम परेशानियों के बाद हल्द्वानी में शिफ्ट किये जाने का निर्णय लिया गया था, परन्तु उसपर अब नयी राजनीति शुरू हो गई है। हाई कोर्ट अब जन सुझाव मांग रहा है की कौन सी जगह इसे शिफ्ट किया जाय। जन सुझावों के नाम पर जनता को छलने का यह यह नाटक राज्य बनने के बाद से ही चल रहा है। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट शिफ्ट करने की जो वजहें गिनाई जा रही है वो सारी  वजहें देहरादून ऋषिकेश या अन्य जगहों के साथ पूरे उत्तराखंड पर भी  लागू होती हैं! जैसे पर्यावरण या जमीन सम्बंधित बाध्यतायें। देहरादून, ऋषिकेश के आस पास इस तरह के अनियंत्रित निर्माण कार्य से जो पर्यावरण पर जो दबाव पड़ रहा है।  उसके भी नकारात्मक परिणाम शीध्र दिखने लगेंगे, परन्तु यहाँ के अफसर, सरकार पूरी तरह से असंवेदनशील है न उनके पास उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में विकेन्द्रीकृत विकास के लिए कैसी नीतिया हो उसके लिए कोई इच्छाशक्ति है ना कोई दृष्टिकोण है। कुछ समय पहले यही कोशिश एनआईटी को ऋषिकेश में शिफ्ट करने के लिए की गई थी। हमारा हमेशा मानना रहा है गैरसैण को केंद्र राजधानी मानकर एक व्यवस्थित और विकेन्द्रीकृत विकास का रोडमैप बनाया जाना जरूरी है जिसमे विकास के संस्थानों को जैसे विश्वविद्यालय, सरकारी ऑफिस, हॉस्पिटल्स, सचिवालय व अन्य संस्थान जरूरत, योग्यता, ऐतिहासिक महत्व, विकास की प्राथमिकता के आधार पर चयनित किया जाय। जिससे की आस.पास के क्षेत्रों में विकास को गति मिले और यह भी सुनिश्चित हो कि पहाड़ के दूरस्थ स्थानों को भी इसका लाभ मिले। साथ ही साथ इंन्फ्रास्ट्रक्टर निर्माण पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से और पर्वतीय वास्तुकला और यहाँ की भौगौलिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए किया जाय और सिर्फ एक जगह पर अत्यधिक निर्माण से वहाँ जरूरत से ज्यादा  मानव दबाव, पर्यावरण व अन्य तरह का संकट न पैदा हो। त्रिपाठी ने कहा कि विकास के विकेन्द्रीकरण के लिए सामाजिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक नजरिये  के साथ संतुलित आर्थिक विकास के लिए प्रभावी वैज्ञानिक दृष्टिकोण, पर्यावरण संवेदनशीलता, सामुदायिक भागीदारी और दूरदर्शी मानव केंद्रित विकास का नजरिया जरूरी  है। इसलिए हाई कोर्ट को गैरसैण को केंद्र मानकर आसपास की उचित नजदीकी जगह को चयनित कर स्थापित होना चाहिए, जो की भारी भरकम कंक्रीट निर्माण से मुक्त हो, इससे न केवल उत्तराखंड के दूरस्थ इलाकों तक कानूनी सेवाओं की पहुंच बनेगी बल्कि विकेन्द्रीकृत विकास और अन्य विकास  योजनाओ को आगे बढ़ाने का मार्ग भी प्रशस्त होगा। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है की हाई कोर्ट को शिफ्ट करने के लिए पर्यावरण की जो बाध्यताएं गिनाई जा रही है, इन्ही तरह की बाध्यताओं, अन्य विकास की योजनाओं के लिए, के आधार पर कहीं  सरकार और ब्यूरोक्रेसी भविष्य में जमीन और संसाधनों की कमी को आधार बनाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिस्सों को उत्तराखंड में मिलाने की सिफारिश न कर दे, इससे पहले भी सरकार के कई नुमाइंदे ऐसे नैरेटिव बनाने की साजिश करते रहे हैं।

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