उत्तरकाशी
मैं नागों में अनंत शेष नाग हूं-भगवान श्रीकृष्ण
लोकेंद्र सिंह बिष्ट, उत्तरकाशी। कौन हैं और किसके रूप हैं नागराजा? आज आपको लिए चलते हैं आराध्य देव भगवान श्री नागराजा जी के धाम उत्तराखंड में। अपने उत्तराखंड को देव भूमि यूं ही नहीं कहते हैं। यहां कण कण में ईश्वर विराजते हैं। जिस पत्थर को भी उठाओ उसी में एक देव। जिस मिट्टी को भी छुओ उसमे भी एक देवी। जिस पेड़ को भी देखो उसके नीचे भी देवों का वास। श्रुति ये है कि भगवान श्री नागराजा जी कृष्ण का ही रूप हैं और श्रीकृष्ण जी भगवान विष्णु के 8 वें अवतार थे।भगवान विष्णु के दस अवतारों को संयुक्त रूप को ‘दशावतार’ कहा जाता है.10 प्रमुख अवतारों में से 9 अवतार वे ले चुके हैं और कलयुग में दसवां अवतार होना अभी बाकी है। भगवान विष्णु हिन्दू त्रिदेवों में से एक हैं। निर्माण की योजना के अनुसार, वे ब्रह्माण्ड के निर्माण के बाद, उसके विघटन तक उसका संरक्षण करते हैं। भगवान विष्णु के सात अवतारों में मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम, श्री राम अवतार एवम श्री कृष्ण भी विष्णु के आठवें अवतार थे। बुद्ध अवतार यानी भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का 9 वां अवतार माना जाता है। दसवें कल्कि अवतार होंगे। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु कलयुग के अंत में कल्कि अवतार लेंगे और वह 64 कलाओं में निपुण होंगे। वह घोड़े पर सवार होकर पापियों का संहार करेंगे और धर्म की दोबारा स्थापना करेंगे। इसके बाद सतयुग का प्रारंभ होगा। इससे पहले कल्कि अवतार लें आपको फिर से लिए चलते हैं अपनी देवभूमि उत्तराखंड में भगवान श्री नागराजा जी की कथा की ओर। ये भी मान्यता है कि कालिया नाग को हराने के बाद कालिया नाग कृष्णभक्त हो गए तब श्री कृष्ण जी ने उन्हे आशीर्वाद दिया कि कलयुग में एक ऐसा क्षेत्र विशेष होगा जहां मेरी पूजा के साथ तुम्हारी भी पूजा होगी और वह क्षेत्र उत्तराखंड है। पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत पाक-बांग्लादेश सहित के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे। नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव ‘नाग’ शब्द पर आधारित हैं। एक श्रुति ये भी है कि शक्तिशाली कुषाणों के पतन के पश्चात् मध्यभारत तथा उत्तर प्रदेश के भूक्षेत्र पर शक्तिशाली नागवंशों का उदय हुआ। यह नागवंशी ही थे जिन्होंने गंगाघाटी से कुषाणों के साम्राज्य का विनाश किया था। शक्तिशाली होने के साथ वे अत्याचारी भी थे। नागवंशियों के अत्याचार से बचने के लिए देवभूमि के लोगों ने हर गांव में नागराजा की डोलियां बनाई और इस देव डोली के अंदर भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्ति की स्थापना की जो आज भी कायम है। नागवंशी जब गावों में आते थे तो लोगों की नागराजा के प्रति ग्रामीणों की आस्था को देखकर प्रसन्न होकर वापिस लौट जाते थे। तब ही से देवभूमि के लगभग हर गांव में आराध्य देव श्री नागराजा जी की डोली की पूजा की परंपरा चली आ रही है और इन्हीं भगवान श्री नागराजा जी की देव डोली के अंदर आज भी भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्ति विराजमान होती हैं। आज भी नागराजा जी की डोली में श्री कृष्ण जी को पूजा का सिलसिला बदस्तूर जारी है और गीता उपदेश में भगवान श्री कृष्ण जी ने कहा है कि-मैं नागों में अनंत (शेष नाग) हूं।- श्रीकृष्ण