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अल्मोड़ा

उत्तराखण्ड में सुप्रा ग्लेशियर झीलें ला सकती हैं भीषण आपदाएं, अपने शोध में प्रो. नौटियाल ने चिंता जताई

सीएन, अल्मोड़ा। इसरो समेत अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड में करीब 13 सौ ग्लेशियर झीलें होने का आंकलन किया है।-पर्यावरण को लेकर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहा जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल अल्मोड़ा, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संस्थान ( बेंगलुरू), पर्यावरण विभाग, गढ़वाल विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के शोध में यह सामने आया है की चमोली जिले में 41 प्रतिशत झीलें पांच से छह हजार मीटर ऊंचाई पर स्थित हैं। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में बताया है कि 46 सौ मीटर से ऊपर स्थित कई ग्लेशियर झीलों के आकार और प्रकार में निरन्तर बदलाव हो रहा है। तापमान बढ़ने या हलचल होने से सुप्रा ग्लेसियर यदि फटे तो उत्तराखंड में भीषण तबाही होगी। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल ने अपने ग्लेसियर झीलों पर किये अध्ययनों में बताया है कि उत्तराखंड में ग्लेशियर झीलें अपना आकार और प्रकार बदल रही हैं। जो चिंता का कारण हैं। वैज्ञानिक प्रो नौटियाल का मानना है कि जलवायु परिवर्तन या भूकंप जैसे परिस्थितियों में ये झीलें फटी तो भीषण तबाही उत्पन्न कर सकती हैं। इसरो जैसे संस्थान समेत देश के तमाम वैज्ञानिक इन सुप्रा ग्लेसियरों पर नजरें बनाए हुए हैं। इसरो और अन्य संस्थान के वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड में करीब 12 सौ से 13 सौ ग्लेसियर झीलें चिह्नित की हैं। हिमालय में 46 सौ मीटर से अधिक ऊंचाई पर अनकनेक्टेड झीलों को सुप्रा ग्लेशियर कहा जाता है। ये ग्लेशियर 46 सौ मीटर से अधिक ऊंचाई में प्रायः पाए जाते हैं। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संस्थान, बेंगलुरू, पर्यावरण विभाग, गढ़वाल विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के शोध में यह सामने आया है कि उत्तराखंड में लगभग 41 फीसद ग्लेसियर झीलें पांच हजार से छह हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। इन ऊंचाइयों में बहुत भारी संख्या में सुप्रा ग्लेशियर झीलें हैं। पर्यावरणीय हलचलों के कारण इन झीलों के आकार और प्रकार में बदलाव हो रहा है। जबकि यह हिमालयी क्षेत्र भूकंप आदि को लेकर बहुत संवेदनशील है। प्रो नौटियाल ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों में लगातार तापमान में बढ़ोत्तरी हो रही है। जिसपर पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक नजर बनाये हुए हैं। बर्फ के भार में परिवर्तन से सुप्रा ग्लेशियर झीलों का फटने का संभावना बढ़ जाती है । जलवायु परिवर्तन से झीलों के बर्फ पर भारी प्रभाव पड़ता है जो आपदा को जन्म दे सकता है और झीलें फटने पर पानी के साथ भारी मात्रा में बर्फ को अपने साथ बहा ले जा सकती हैं। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के निदेशक सुनील नौटियाल ने चमोली के ग्लेशियर झीलों पर शोध कार्य किया है। केवल चमोली जिले में करीब पांच सौ ग्लेसियर झीलें उन्होंने पायी। दूसरी ओर इसरो और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड में 12-13 सौ ग्लेसियर झीलें हैं।
ऋषिगंगा में आपदा
गढ़वाल मंडल के नीति घाटी में रैणी गांव के शीर्ष भाग में ऋषिगंगा के मुहाने पर पिछले साल ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर ऋषिगंगा में गिर गया था। जिससे नदी में भीषण बाढ़ आ गई थी। उस आपदा में कई लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। तब ऋषिगंगा के मुहाने पर स्थित छोटी ग्लेसियर झील फटी थी। इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि सुप्रा ग्लेसियर झील फटने पर कितनी व्यापक आपदा पैदा कर सकती है ।उत्तराखंड में 41 फीसदी ग्लेसियर झीलें समुद्र तल से पांच हजार से छह हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। वहां बड़ी संख्या में सुप्रा ग्लेसियर झीलें भी हैं। तापमान बढ़ने, भूकंप आने आदि से भविष्य में सुप्रा ग्लेसियर झीलें आपदा ला सकती हैं।

प्रो. सुनील नौटियाल
निदेशक जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा

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