जन मुद्दे
मकर संक्रांति प्रगति, ओजस्विता, स्नान व दान का पर्व
प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल। पौष मास शीत ऋतु में भगवान भास्कर सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष अनुसार सूर्य जब शनि से मिलने जाते है तथा पिता पुत्र के मतभेद को दूर करने के लिए इस दिन शनि की राशि मकर में प्रवेश करते है तो इस संक्रांति को मकर संक्राति के रूप में मनाया जाता है। इससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। सूर्य के उत्तरायण की स्थिति मकर संक्रांति से ही शुरू होती है। इसलिए मकर संक्रांति के पर्व को मनाने और इस दिन स्नान, दान, सूर्य अर्ध्य आदि का प्रावधान तय किया गया और इसे प्रगति व ओजस्विता का पर्व माना जाता है। इसे स्नान और दान का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थों एवं पवित्र नदियों में स्नान का बेहद महत्व है साथ ही तिल, गुड़, खिचड़ी, फल एवं राशि अनुसार दान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य प्रसन्न होते है । ज्योतिष शास्त्र में गोचर का बहुत ही बड़ा महत्व है। नवग्रहों का गोचर जातक के फलित में अहम् भूमिका रखता है। वहीं ग्रह-गोचर के आधार पर कई मुहूर्त व ज्योतिषीय गणनाओं का निर्धारण भी होता है। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों में सूर्य को राजा माना गया है। सूर्य का गोचर कई ज्योतिषीय गणनाओं व मुहूर्त का निर्धारण करता है। सूर्य के गोचर को संक्रान्ति कहा जाता है इसलिए संक्रान्ति प्रतिमाह आती है क्योंकि सूर्य का गोचर प्रतिमाह होता है। इसी प्रकार जब सूर्य मकर राशि में गोचर करते हैं तब इसे मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति सभी सनातन धर्मावलम्बियों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण पर्व है इस दिन नवग्रहों के राजा सूर्य अपनी राशि परिवर्तन कर धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन स्नानादि के बाद भगवान विष्णु का पूजन, भगवान भास्कर का जप, श्री सूक्त का पाठ, तिल घृतादि सहित होम तर्पण ब्राह्मण भोजन एवं अनाज, वस्त्र,फल गुड़ तिल सहित खिचड़ी आदि के दान का विशेष महत्व है। जिस प्रकार पृथ्वी अपनी धुरी पर 23.5 अंश झुकी है जिस कारण सूर्य छः माह पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और छः माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तर दिशा यानी मिथुन राशि की ओर गमन करता है, जिसे उत्तरायण भी कहते हैं। उत्तरायण के शुरू होते ही ठंड का प्रभाव कम होने लगता है। उत्तरायण को ग्रीष्म संक्रांति कहा जाता है। यह लंबे दिनों और छोटी रातों द्वारा चिह्नित है।इसमें बसंत, सर्दी और गर्मी के मौसम शामिल हैं। उत्तराखंड में मकरसंकरण पर घुघुतिया बनाए जाते है तथा काले कोवो तथा घुघुतिया को खिलाए है जो घुघुतिया राजा के विपरीत ग्रह दशा को ठीक करने को लेकर शुरू हुआ लोकपर्व है। इस दिन बच्चों के लिए घुघुतिया की माला बनाते है तथा अगली सुबह काले कव्वा काले घुघुठा बड़ा खाले। ले कावा ढाल मैकू दी जा सोने की थाल आवाज लगाते है। उत्तराखंड में इसके अन्य नाम मकरैण, उत्तरैण, घोल्डा, घ्वौला, चुन्यात्यार, खिचड़ी संक्रांति, खिचड़ी संगरादि भी कहते है। इस दिन पतंग भी उड़ाते है। जैसे मकर संक्रांति पर मकर राशि में सूर्य का तेज बढता है, उसी तरह आपके स्वास्थ्य और समृद्धि की हम कामना करते हैं