चमोली
नन्दा लोकजात यात्रा की हुई विधिवत शुरुआत, 3 सितम्बर तक चलेगी माँ नन्दा की यात्रा
नन्दा लोकजात यात्रा की हुई विधिवत शुरुआत, 3 सितम्बर तक चलेगी माँ नन्दा की यात्रा
सीएन, चमोली। घाट विकासखंड स्थित सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर से मां नंदा देवी की डोली कैलाश के लिए पूजा विधान के साथ विदा हो गयी है , इसके साथ ही हर साल आयोजित होने वाली मां नंदा देवी लोकजात यात्रा की शुरुआत भी हो गयी। कई पड़ावों को पार करने के बाद मां नंदा की डोलियां 3 सितंबर को वेदनी कुंड और बालापाटा बुग्याल पहुंचेगी ,जहां मां नंदा की पूजा अर्चना के बाद नंदा देवी लोकजात यात्रा का समापन होगा। नंदा सप्तमी के दिन कैलाश में मां नंदा देवी की पूजा अर्चना के साथ लोकजात का विधिवत समापन होगा। जिसके बाद नंदा राजराजेश्वरी की देव डोली 6 माह के लिए अपने ननिहाल थराली के देवराडा में निवास करेगी 12 साल के अंतराल पर कुरुड़ मंदिर से ही नंदा देवी राजजात यात्रा का आयोजन होता है ,जबकि, हर साल नंदादेवी लोकजात यात्रा निकलती है । कुरुड़ मां नंदा का मायका है, जहां नंदा देवी का प्राचीन मंदिर है वहां पर पत्थर की शिलामूर्ति माँ के रूप में विराजमान है। 7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से माँ नंदा को हर 12वें वर्ष में मायके से कैलाश भेजने की परंपरा शुरू की थी , राजा कनकपाल ने इस यात्रा को भव्य रूप प्रदान किया । यह परंपरा का निर्वहन गढ़वाल राजा के प्रतिनिधि कांसुवा गांव के राज कुंवर, नौटी गांव के राजगुरु नौटियाल ब्राह्मनों के सहयोग से होता है। कथा कहानियों के अनुसार नंदा के मायके वाले नंदा को कैलाश विदा करने जाते थे और फिर वापस लौटते थे, भगवान शिव नंदा के पति हैं, यह राजजात यात्रा बारह साल में एक बार होती थी, इससे जाहिर होता है कि नंदा अपने मायके हर बारह साल में आती थीं, यह परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है और आज भी पहाड़ के लोग इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। चौसिंगा खाडू (चार सींग वाला काले रंग का भेड़) नंदा राजजात की अगुवाई करता है , मनौती के बाद पैदा हुए चौसिंगा खाड़ू को ही यात्रा में शामिल किया जाता है राजजात के शुभारंभ पर नौटी में विशेष पूजा-अर्चना के साथ इस खाड़ू की पीठ पर पोटली बांधी जाती है, जिसमें मां नंदा की श्रृंगार सामग्री सहित देवी भक्तों की भेंट होती है, यही खाड़ू (भेड़) इस पूरी यात्रा की अगुवाई करता है। सिद्धपीठ नौटी में भगवती नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा के साथ रिंगाल की पवित्र राज छंतोली और चार सींग वाले भेड़ (खाड़ू) की विशेष पूजा की जाती है. कांसुवा के राजवंशी कुंवर यहां यात्रा के शुभारंभ और सफलता का संकल्प लेते हैं। मां भगवती को देवी भक्त आभूषण, वस्त्र, उपहार, मिष्ठान आदि देकर हिमालय के लिए विदा करते हैं। यात्रा का शुभारंभ स्थल नौटी है ,नौटी से शुरू होने वाली नंदादेवी राजजात में 20 पड़ाव हैं, इसमें बाण तक ग्रामीण अंचल शामिल हैं, नौटी से लेकर बाण तक भक्त गांवों की परंपरा से भी अवगत हो सकेंगे, असली यात्रा बाण गांव के बाद होती है, इस गांव के बाद यात्रा घने जंगलों के बीच से निकलती है, यह यात्रा प्राकृतिक सौंदर्य से भी भक्तों को रूबरू करवाती है, नंदादेवी राजजात यात्रा के पड़ावों में वेदनी बुग्याल, वेदनी कुंड, ब्रह्मकमल , मोनाल पक्षी भी श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ।