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शुद्ध जल ऊर्जा का स्रोत ही नही वरन अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी : प्रो. ललित तिवारी

सीएन, नैनीताल। उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद, पटवाडांगर में क्षेत्रीय जल गुणवत्ता अनुश्रवण तथा प्रबंधन प्रशिक्षण विषय पर आयोजित कार्यशाला में बोलते हुए मुख्य अतिथि एवं कुमाऊं विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता शोध प्रोफेसर ललित तिवारी ने शुद्ध जल को अच्छे स्वास्थ्य एवं सबसे बड़ी ऊर्जा का परिचायक बताया। उन्होंने जनमानस को निरोगी रहने के लिए जल की सुरक्षा और गुणवत्ता के लिए कटिबद्ध होने का आह्वान किया। प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीएमयू), उत्तराखंड राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद देहरादून तथा उत्तराखंड जल संस्थान देहरादून के संयुक्त तत्वावधान में पटवाडांगर में आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि डॉ. ललित तिवारी, डॉ. वीर सिंह, डॉ. आरके श्रीवास्तव, डॉ. एचजे शिव प्रसाद, डॉ. प्रशांत सिंह, डॉ. सुमित पुरोहित और डॉ. मणिन्द्र मोहन ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। विशिष्ट अतिथि पंत विवि के एमेरिटस प्रोफेसर डॉ. वीर सिंह ने अपने व्याख्यान में जल को जीवन का प्रतीक बताया और कहा कि जहां जल है वहीं जीवन है। इसलिए जीवन को बचाने के लिए जल को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है। सम्मानित अतिथि एवं पन्त विवि के प्राध्यापक व पर्यावरण विभाग प्रमुख डॉ. आरके श्रीवास्तव ने मानवीय हस्तक्षेप को जल प्रदूषण का मुख्य कारण बताया। इसलिए जल प्रदूषण के बढ़ते कारकों को देखते हुए इसको नियंत्रित करने को आज की आवश्यकता बताई। तकनीकी कॉलेज के अंतरराष्ट्रीय मामले के निदेशक प्रोफेसर एचजे शिव प्रसाद ने क्वांटम जीआईएस का उपयोग करते अल्मोड़ा के झीलों और तराई के आर्टिजन कुओं के जल गुणवत्ता की विधिवत जानकारी दी और उधमसिंह नगर के भूगर्भीय जल की गुणवत्ता की स्थिति पर भी प्रतिभागियों से जानकारी साझा की। यूकॉस्ट जिला समन्वयक व प्रोफेसर रसायन विभाग, डीएवी महाविद्यालय, देहरादून के डॉ. प्रशांत सिंह ने बताया कि भौतिक, रासायनिक और जैविक मापदंडों का उपयोग करके किसी विशिष्ट क्षेत्र या विशिष्ट स्रोत की जल गुणवत्ता का आकलन किया जा सकता है। इन मापदंडों के मान परिभाषित सीमा से अधिक होने पर मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसके साथ ही उनके द्वारा उत्तराखंड में जल गुणवत्ता निगरानी और प्रबंधन कार्यक्रम के तहत किए जा रहे कार्यों पर विस्तृत जानकारी दी। बायोटेक विभाग के वैज्ञानिक डॉ. मणिन्द्र मोहन ने कुमाऊं क्षेत्र के विभिन्न जल स्रोतों के माइक्रोबियल संक्रमण के परिणामों की जानकारी युवाओं से साझा किया। बताया कि जल स्रोतों में प्रदूषण के कारकों को जाने से रोक कर जल को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।प्रशिक्षण कार्यशाला के तकनीकी सत्र में उत्तराखण्ड जल संस्थान, रुद्रपुर के कैमिस्ट भुवन कुकरेती व फील्ड मैनेजर रजत मैठाणी द्वारा प्रतिभागियों को फील्ड टेस्टिंग किट के जरिए जल गुणवत्ता जांच की तकनीकियां बताई। इस दौरान 10 रासायनिक व जैवकीय जल गुणवत्ता मानकों की टेस्टिंग सही तरीके से करने पर मौजूद प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया। प्रशिक्षण कार्यशाला में 100 से अधिक प्रतिभागियों द्वारा भाग लिया गया। कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। संचालन वैज्ञानिक डॉ. सुमित पुरोहित और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मणिन्द्र मोहन ने किया।

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