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आज ही के दिन नैनीताल की महिलाओं ने गांधी जी को सौंप दिये अपने गहने


1929 व 1931 में महात्मा गांधी के कुमाऊं दौरे के बाद ही आन्दोलनों में आई धार
नैनीताल में गर्वनर सर हैली से मुलाकात कर जनता की समस्याओं का निराकरण कराया
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटिश सम्राज्य के खिलाफ कुमाऊं में स्वतन्त्रता आदोलन के की पे्ररणा महात्मा गांधी ने दी थी। सन् 1929 में नैनीताल सहित कुमाऊं का दौरा किया। इस दौरान उनके आह्वान पर नैनीताल ही नही बल्कि कुमाऊं भर में आजादी के लिए अपने जेवर तक दान कर दिये। गांधी जी ने इसके बाद 1931 में नैनीताल में पांच दिन के प्रवास पर रहे। इस दौरान उन्होंने तत्कालीन गर्वनर सर मालकम हैली से मुलाकात कर जनता की समस्याओं का निराकरण भी करवाया। लोग अपनी समस्याओं के लिए कुमाऊं भर से नैनीताल पहुंचते थे। ताकुला आश्रम नैनीताल में इस दौरान पूरा वातावरण गांधीमय हो जाता था। गांधी जी के इन दो दौरों के बाद पूरे कुमाऊं में आजादी के लिए आंदोलन का वातावरण बन चुका था। इस कुमाऊं के दौरे के बाद ही सालम व सल्ट में बड़े आन्दोलन हुए। यहां कई लोग शहीद हो गये। गांधी ने देश में जो भी आंदोलन चलाये उसका कुमाऊं में व्यापक असर रहा। संयुक्त प्रान्त का कुमाऊं का दौरा गांधी जी ने 11 जून 1929 को अहमदाबाद से चल कर शुरू किया था। 13 जून को वह बरेली पहुंचे यहां एक बड़ी सभा में उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता व खादी का संदेश दिया। 14 को वह हल्द्वानी पहुंचे तथा एक सभा की 14 जून को वह नैनीताल के ताकुला ग्राम पहुंचे। यहां वह स्वंय गोविन्द लाल साह के मोती भवन में ठहरे। 15 जून को नैनीताल में सभा की। 15 जून को अल्मोड़ा रवाना हाने के दौरान भवाली में उनका लोगों ने जोरदार स्वागत किया। इस दौरान उन्होंने लोगों को खादी अपनाने का संदेश दिया। 22 जून को कुली उतार आन्दोलन में अग्रणी रहे बागेश्वर का भ्रमण किया। यहां स्वतंत्रता सेनानी शान्ति लाल त्रिवेद्धी, बद्रीदत्त पाण्डे, देवदास गांधी, देवकीनंदन पांडे व मोहन जोशी से मंत्रणा की। 15 दिन प्रयास के दौरान उन्होंने कौसानी में गीता का अनुवाद भी किया। गांधी जी दूसरे बार 18 जून 1931 को नैनीताल पहुंचे और पांच दिन के प्रवास के दौरान उन्होंने कई सभाएं की। इस दौरान उन्होंने संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर मालकम हैली से राजभवन में मुलाकात कर जनता की समस्याओं का निराकरण कराया। उनसे प्रांत के जमीदार व ताल्लुकेदारों ने भी मुलाकात की और गांधी के समक्ष अपना पक्ष रखा। इस यात्रा के बाद उत्तर प्रदेश व कुमाऊं में आन्दोलन तेज हो गया।

गांधी ने कुमाऊं के लोगों से कहा था कष्टों उपाय है आत्मशुद्धि
नैनीताल।
गांधी ने अपने पहले कुमाऊं दौरे के दौरान नैनीताल में आयोजित सभा को संबोधित कर कहा था कि मैंने आप लोगों के कष्टों की गाथा यहां आने से पहले से सुन रखी थी। किन्तु उसका उपाय तो आप लोगों के हाथ में है। यह उपाय है आत्मशुद्धि। यह भाषण उन्होंने ताड़ीखेत में भी दिया था। उन्होंने अपनी सभाओं में पर्वतीय अचलों के गरीबी व खादी के बावत भाषण दिये। नैनीताल प्रवास के दौरान उन्होंने ताकुला में गांधी मंदिर की स्थापना की। 15 जून को उन्होंने भवाली में सभा कर खादी अपनाने पर जोर दिया। 16 जून को वह ताड़ीखेत में प्रेम विद्यालय पहुंचे वहां एक बड़ी सभा में आत्मशुद्धि व खादी का संदेश दिया। 18 जून को वह अल्मोड़ा पहुचे जहां नगर पालिका की ओर से उन्हें सम्मान पत्र दिया गया। इसके बाद उन्होंने 15 दिन कौसानी में बिताये कौसानी की खूबसूरती से मुग्ध होकर उसे भारत का स्वीट्जरलैड नाम दिया।
ताकुला गांव में नही बनेगा बहुद्देशीय गांधी स्टेडी सेंटर  
नैनीताल।
वर्ष 1929 व 1931 में नैनीताल में प्रवास पर रहे गांधी जी के प्रिय ताकुला ग्राम में बहुउद्देशीय गांधी स्टेडी सेंटर बनाया जाना था लेकिन एडीबी ने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। एशियन डवलपमेंट बैंक द्वारा गांधी मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही यहां गांधी सेंटर के निर्माण के लिए 1.50 करोड़ की धनराशि खर्च की जानी थी। सैंटर के लिए विभिन्न संस्थाओं से राय मांगी गई थी लेकिन संस्थाओं द्वारा इसे औचित्यहीन बताया। जिसके बाद सैंटर निर्माण की योजना रद कर दी गई। एडीबी पर्यटन के मुताबिक ताकुला के गांधी मंदिर क्षेत्र में एडीबी पर्यटन द्वारा ऐतिहासिक गांधी मंदिर के जीर्णोद्धार, मोटर मार्ग से गांधी मंदिर तक पहुंच मार्ग तथा परिसर का सौन्दर्यकरण किया गया है।
26 स्थानों पर भाषण, स्वावलंबन पर रहा जोर
नैनीताल।
कुमाऊं की पहली यात्रा में महात्मा गांधी ने 26 स्थानों पर भाषण दिए। सभी में स्वदेशी, स्वावलंबन, आत्मशुद्धि खादी प्रचार व समाज में व्याप्त कुरीतियों को त्यागने पर जोर दिया। कुमाऊं भ्रमण में उनके साथ प्रमुख रूप से बद्री दत्त पांडे, गोबिंद बल्लभ पंत, हीरा बल्लभ पांडे, मोहन सिंह मेहता, विक्टर मोहन जोशी, रुद्रदत्त भट्ट भी मौजूद रहे।
बागेश्वरी चरखे ने आगे बढ़ाया स्वदेशी आंदोलन
नैनीताल।
बागेश्वर प्रवास के दौरान जीत सिंह टंगडिय़ा ने बापू को स्वनिॢमत चरखा भेंट किया। चरखे की विशेषता थी कि वह कम समय में ज्यादा ऊन कात लेता था। उसी चरखे को देखकर तब गांधीजी ने कहा था कि यह स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाने में मदद करेगा। वर्धा पहुंचने के बाद बापू ने विक्टर मोहन जोशी को पत्र लिखकर एक और चरखा मंगाया, जिसे नाम दिया बागेश्वरी चरखा। जीत सिंह ने बाद में उस चरखे में और बदलाव किया, जो कताई के साथ ही बटाई भी कर लेता था। 1934 में तो उन्होंने घर में चरखा आश्रम की ही स्थापना कर दी।
फोटोलाईन: नैनीताल से 11 किमी दूर भवाली में अल्मोड़ा जाते समय गांधी जी का स्वागत करते लोग।

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