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अल्मोड़ा

पार्थिव पूजन जागेश्वर से कराने का विधान, 14 साल बाद करते हैं उद्यापन

सीएन, जागेश्वर धाम। श्रावण मास में पार्थिव पूजा (शिवार्चन) का बेहद धार्मिक महत्व है। कहा जाता है भगवान शिव के लिंग रूप में पूजा की शुरुआत ही जागेश्वर धाम से हुई थी। यही वजह है खासतौर पर कुमाऊं के लोग पार्थिव पूजा की शुरुआत को जागेश्वर पहुंचते हैं। कई भक्त उसके बाद श्रावण या अन्य पावन महीनों में पार्थिव पूजन अपने घर में ही संपन्न कराते हैं। उनमें से अधिकतर लोग उद्यापन की पार्थिव पूजा भी जागेश्वर में कराने पहुंचते हैं। जागेश्वर धाम में हरेला पर्व से श्रावण मास के तहत विभिन्न अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं। इस पावन माह में पार्थिव पूजन को विशेष धार्मिक महत्व है। इसे देखते हुए महीने भर चलने वाले मेले के दौरान जागेश्वर धाम में पार्थिव पूजा कराने पहुंचते हैं। मंदिर परिसर के चारों ओर पुजारियों के पंडाल लग जाते हैं। उन पांडालों में बैठकर भक्तजन शिवार्चन करवाते हैं। इस धाम में ज्योर्तिलिंग जागेश्वर, महामृत्युंजय, पुष्टि माता, केदारनाथ, लकुलीश, हवन कुंड, नीलकंठ समेत कई मंदिरों के आसपास पांडालों में भक्तजन पार्थिव पूजा करवाते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न कराने के लिए भक्त पार्थिव पूजा करते हैं। कई श्रद्धालु लगातार 14 साल तक पार्थिव पूजा करवाते हैं।
श्रावण मास सावन सोमवार व्रत कथा एवं महत्व
यह महीना शिव जी का अत्यंत प्रिय महीना हैं. पुरे माह धार्मिक रीति रिवाजों का ताता लगा रहता हैं. कई विशेष त्यौहार श्रावण के इस महीने में मनाये जाते हैं. हमारे देश की परम्परायें हमें हमेशा ईश्वर से जोड़ती हैं, फिर उसमें एक दिन का त्यौहार हो या महीने भर का जश्न. सभी का अपना एक महत्व हैं. यहाँ ऋतुओं को भी पूजा जाता हैं. उनका आभार अपने तरीके से व्यक्त किया जाता हैं. कहा जाता हैं श्रावण भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता हैं. इसके पीछे की मान्यता यह हैं कि दक्ष पुत्री माता सति ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जिया. उसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया. पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पुरे श्रावण महीने में कठोरतप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की. अपनी भार्या से पुनः मिलाप के कारण भगवान् शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय हैं. यही कारण हैं कि इस महीने कुमारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव जी से प्रार्थना करती हैं. यही मान्यता हैं कि श्रावण के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था, जहाँ अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया हैं. धार्मिक मान्यतानुसार श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था, जिसमे निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया, जिस कारण उन्हें नील कंठ का नाम मिला और इस प्रकार उन्होंने श्रृष्टि को इस विष से बचाया, और सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष स्थान हैं. वर्षा ऋतू के चौमासा में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस वक्त पूरी श्रृष्टि भगवान शिव के आधीन हो जाती हैं. अतः चौमासा में भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु मनुष्य जाति कई प्रकार के धार्मिक कार्य, दान, उपवास करती हैं.

बैल पत्र का महत्व
शिव उपासना में बैल पत्र का विशेष महत्व हैं. कहा जाता हैं एक डाकू अपने जीवन व्यापन के लिए राहगीरों को लुटता हैं. एक बार वो रात्रि के समय एक पेड़ पर बैठ कर अपने शिकार का इंतजार करता हैं लेकिन समय बितता जाता हैं कोई नहीं आता. तभी डाकू के हृदय में अपनी करनी को लेकर पश्चाताप का भाव उत्पन्न होता हैं और वो खुद को कोसता हुआ उस पेड़ के पत्तो को तोड़- तोड़ कर नीचे फेकता रहता हैं. वह वृक्ष बैल पत्र का होता हैं और उसके नीचे शिव लिंग स्थापित होता हैं. डाकू के द्वारा फेका गया पत्ता शिव लिंग पर गिरता हैं और उसके करुण भाव के कारण उसमें एक सच्ची श्रद्धा का संचार होता हैं, जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ उसे दर्शन देते हैं और उसकी पीढ़ा को समाप्त कर उसे सही राह पर लाते हैं. इस प्रकार बैल पत्र का विशेष महत्व होता हैं.

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