जन मुद्दे
भारत मे शाम 4.29 बजे से दिखना शुरू होगा सूर्यग्रहण
आर्यभट्ट की सही व सच बात को ज्योतिषियों ने भी नहीं माना*
सीएन, नैनीताल। हमारे देश मे ब्रहाण्ड के ग्रहों-उपग्रहों तारो- नक्षत्रों की कल्पनाओं के उल्लेख को विशेष महत्व दिया गया है। महत्व है भी पर वर्तमान दौर मे इन्हीं कोरी कल्पनाओ को तोड़-मरोड़ कर दुष्परिणामो को ही अधिक महत्व दिया गया है स्वच्छ वास्तविकता व महत्व अभी भी धुंधले प्रकाश तक ही पहुँच पाया है जबकि 2022 मे विज्ञान आज दूसरी दुनिया ग्रह मे जीवन तलाशने की ओर नित नए कदम बढ़ा रहा है। ब्रह्मांड की अधिकतर कल्पनाएं व जानकरी अभी भी अंधेरी गुफाओं मे ही गुमराह रह कर रोशनी की राह तकता आया है, और हम वहॉ झाँकने से कतराते आये हैं। ग्रहों सूर्य चाँद तारो सहित अंतरिक्ष की पुरानी कहावतों को अन्य ही अर्थो मे बदल दिया गया है। सौर परिवार के हमारे सबसे महत्वपूर्ण सदस्य चाँद व सूर्य (प्राचीनकाल मे इन्हें भी ग्रह माना गया है) तब उस जमाने मे इन्हें कोरी आंखों से ही देखा गया, रात को खुले आसमान मे सो कर चाँद को निहारा गया और किस्से गढ़ दिए गए, अधिकतर इन्ही के बारे मे सोचा गया और कोरी कल्पनाओ के किस्से कहानियों मे मढ़ दिया गया। वैदिक काल मे सोचा गया था कि कोई स्वर्भानु (राहु) नाम का राक्षस जब सूर्य को ग्रास लेता है, तब सूर्य-ग्रहण होता है। मगर खगोल विज्ञान साक्ष्यों के साथ सच्चाई बयान करता है। महान खगोलविद आर्यभट्ट ने अपने आर्यभट्टीय ग्रन्थ 499 ई मे साफ-साफ लिखा है कि- छादयति शशी सूर्य शशिनं महति च भूच्छाया* यानि (सूर्यग्रहण मे) चन्द्रमा सूर्य को ढक लेता है और (चंद्र-ग्रहण मे) पृथ्वी की बड़ी छाया चन्द्रमा को ढक लेती है। किसी राहु या केतु द्वारा सूर्य या चन्द्र को निगल जाने( ग्रसने) की बातें गलत हैं। फिर भी सूर्य-ग्रहण व चंद्रग्रहण के समय हमारे देश मे बहुत से लोग अन्धविश्ववासियो की बताई कोरी बातों पर विश्वाश कर अंतरिक्ष के अनछुए पहलुओं से दूर होते रहे है। जबकि आर्यभट्ट पहले ऐसे भारतीय गणितज्ञ व खगोलविद थे जिन्होंने सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण की सही जानकारी के साथ स्पष्ट कहा था कि था पृथ्वी अपनी धुरी मे पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है इसलिए तारे पश्चिम को जाते नजर आते हैं और उनकी इस सही व सच बात को उनके बाद भी भारतीय ज्योतिषीयो ने स्वीकार नहीं किया। क्योंकि प्राचीन काल मे माना जाता था पृथ्वी अचल है और ब्रह्मांड के केंद्र मे स्थित है। जबकि आज हम खगोलविदों के अथक मेहनत के शोधों की बदौलत अंतरिक्ष की अधिकतर जानकारी व हकीकत से रुबरु हो चुके हैं ।