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सावन का आखिरी सोमवार : कनखल में है भगवान शिव का ससुराल

सावन का आखिरी सोमवार : कनखल में है भगवान शिव का ससुराल
सीएन, हरिद्वार।
आज सावन का आखिरी सोमवार है। धर्मनगरी हरिद्वार के सभी शिव मंदिरों में सुबह से ही भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जा रहा है. कनखल स्थित भगवान शिव की ससुराल कहे जाने वाले श्री दक्षेश्वर महादेव मंदिरमें भी सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई है। श्रद्धालु लाइनों में लगकर भोलेनाथ का जलाभिषेक कर रहे हैं। मान्यता के अनुसार, भगवान शिव पूरे सावन के महीने दक्षेश्वर महादेव मंदिर में विराजमान रहते हैं और भक्तों का कल्याण करते हैं। ऐसे में सावन के महीने में श्रद्धालु भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। सोमवार के दिन शिव पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इसी वजह से आज सावन के आखिरी सोमवार पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच कर बेलपत्र, भांग, धतूर, दूध-दही, शहद और गंगाजल से जलाभिषेक कर रहे हैं। पूरे सावन के महीने कनखल दक्षेश्वर महादेव में विराजमान रहे भगवान शिव तीन दिन बाद रक्षाबंधन के दिन यहां से कैलाश पर्वत के लिए प्रस्थान कर जाएंगे। दक्षेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के कनखल, हरिद्वार में स्थित है। कनखल को भगवान शिव जी का ससुराल माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष की पुत्री देवी सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था. मान्यता है कि यह वहीं मंदिर है, जहां राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में भगवान शिव के अलावा राजा दक्ष ने सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतों को आमंत्रित किया गया था। माता सती अपने पिता द्वारा पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। मान्यता है कि जिस यज्ञ कुण्ड में माता सती ने प्राण त्याग किए थे. वह आज भी मंदिर में अपने स्थान पर है। कथाओं के अनुसार, जब यह बात महादेव को पता लगी तो उन्होंने गुस्से में राजा दक्ष का सिर काट दिया। देवी-देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को जीवनदान दिया. उस पर बकरे का सिर लगा दिया। वहीं, जब राजा दक्ष को अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी। भोलेनाश ने राजा दक्ष को माफी देते हुए वादा किया कि इस मंदिर का नाम हमेशा उनके नाम से जुड़ा रहेगा। यही वजह है कि इस मंदिर का नाम दक्षेश्वर महादेव मंदिर है। तब भगवान शिव ने घोषणा की थी वे हर साल सावन के महीने में कनखल में ही निवास करेंगे।वहीं अन्य कथाओं के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण रानी धनकौर ने 1810 ई. में करवाया था। जिसके बाद 1962 में इसका पुननिर्माण किया गया। इस मंदिर में भगवान विष्णु के पांव के निशान बने हुए हैं. वहीं, दक्ष महादेव मंदिर के निकट गंगा नदी बहती हैं, जिसके किनारे पर दक्षा घाट है। जहां शिव भक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन करते हैं। दक्षेस्वर महादेव मंदिर के पास गंगा के किनारे पर दक्षा घाट है जहां शिव भक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन कर आंनद को प्राप्त करते है। राजा दक्ष के यज्ञ का विवरण वायु पुराण में दिया गया है।
दक्षेस्वर महादेव मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु देवताओं का भी है स्थल
दक्षेस्वर महादेव मंदिर का प्रबंध श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी धार्मिक संस्था द्वारा किया जाता है। यहां यज्ञ कुण्ड, सती शरीर त्याग स्थल, ब्रह्मा, विष्णु देवताओं का स्थल आदि भी है।
मन्दिर से पूर्व अथर्ववेद मन्दिर है उसके बाद दक्षेश्वर मन्दिर है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर दक्ष यज्ञ कुण्ड लिखा है। सात आठ पौडिय़ां चढऩे पर रेलिंग है, पश्चात् चार खम्भों पर से मन्दिर परिसर का ऊपरी भाग शुरू होता है जो चारों ओर खम्भों पर अवस्थित दिखाई देता है। मन्दिर की सीढिय़ों का फैलाव काफी लंबा-चौड़ा है। मन्दिर की बाहरी दीवार पर श्लोक भी उत्कीर्ण हैं।
मंदिर के ऊपरी हिस्से में छोटी-छोटी गुमटियां दिखाई देती हैं। पहले की गुमटियों के बाद बड़ा गुम्बद है जो खिले फूल जैसे आकार में दिखाई देता हैं पीछे और बड़ा गुम्बद अवस्थित है जो शिखर बंद है। जहां पताकाएं फहरा रही हैं बाहर से जो दृश्य दिखता है उसमें बड़ी गुमटियां भी दृष्टिगत होती हैं। मंदिर में दरवाजे लोहे के जंगलातमय व जालीदार हैं। मंदिर के बाहर घण्टा लटका दिखाई देता है। तस्वीरें व मूर्तियां देखने योग्य है। मंदिर के दाहिनी ओर पीछे की तरफ जालीनुमा स्थिति है जिससे मंदिर के भीतर हवा प्रवेश होती रहती है तथा आने-जाने वाले दिखाई देते रहते हैं। दाहिने भाग में भी बाहर की ओर नांदिये हैं। दक्षेश्वर महादेव मंदिर में जाने से पूर्व हमें अथर्ववेद मंदिर में जाना पड़ता है। अंदर सती कुण्ड है जो संगमरमर का बना है। यह लगभग 2म2 फुट चौड़ा, लंबा व डेढ़ फुट गहरा लगता है। सती कुण्ड की तीन बाहरी स्थितियां दृष्टिगत होती हैं। अंदर मां दुर्गा का मंदिर भी है। इस परिसर में कई तस्वीरें देखी जा सकती हैं।
सतीकुण्ड के पास दो मूर्तियां खड़ी अवस्था में हैं। इस परिसर में प्रवेश करते ही बायीं ओर चढ़ावे की व्यवस्था है। यहां की छत देखने योग्य है जहां देवी रूप चित्रित है। इसके बाद नांदिया का परिसर आता है। नांदिया बड़ा है। लगभग 4 फुट ऊंचाई तथा साढ़े तीन फुट लंबाई वाले नांदिये की मूर्ति देखने योग्य है। दोनों तरफ यहां प्रवेश की व्यवस्था है। इसके बाद उपसभा मण्डप आता है जो एक प्रकार से परिक्रमा गैलरी भी है। गैलरी में चारों ओर मूर्तियां हैं। यहां पर से दो सीढिय़ां चढऩे पर मुख्य परिसर आता है वहां श्री दक्षेश्वर महादेव विराजमान है जो ओंकार स्वरूप में विद्यमान हैं। विग्रह में सर्प तांबे का है तथा अन्य भाग सोने के समान लगता है जो पीतल व अन्य धातु का भी हो सकता है। विग्रह पुष्पों से आच्छादित, सुगांधित परिवेश उपस्थित करता है। लोग यहां शांत भाव से दर्शन करते हैं। आस्था के दृढ़ स्थल पर नीरव शांति का वातावरण भरी भीड़ को सुखद शांति अनुभव कराता है। इत्र की सुगंध, पुष्पों का श्रृंगार महादेव का सुसज्जित परिवेश यह सब आगुन्तक के कुछ देर के लिए पांव ठिठका देता है। आगे दो पौढिय़ां चढऩे पर मंदिर एक छोर से दूसरे छोर पर पूर्ण हो जाता है। इस पूरे परिसर में और भी अन्य आस-पास छोटे-बड़े मंदिर हैं जो दर्शनीय हैं। अथर्ववेद मंदिर के पास सैंकड़ों वर्षों पुराना पेड़ दर्शनीय है जिसको लोग आस्था के साथ पूजते हैं। पास में ही गंगा जी बहती है जहां कनखल स्नान के नाम से लोग स्नान करके पुण्य कमाते हैं।

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