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जन मुद्दे

इस वर्ष शीतकाल में होगा भारी हिमपात व शीतकालीन वर्षा

मौसम परिवर्तन पर जर्मनी के साथ शोध कर रहे वैज्ञानिक कोटलिया ने की भविष्यवाणी
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
बीते कुछ वर्षो से अनियमित मौसम के बाद शीतकाल में नैनीताल सहित उत्तराखंड के कई हिस्सों में हिमपात व वर्षा नहीं होने से सूखे की स्थिति बनी रही। लेकिन इस बार शीतकाल में भारी हिमपात व वर्षा होगी। बीते वर्षों की तरह मौसम बेरूखा नही रहेगा। शीतकाल में मध्य हिमालयी क्षेत्र व उच्च हिमालयी क्षेत्र में हिमपात व वर्षा के कारण उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र कड़ाके की ठंड से प्रभावित रहेंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार बीते शीतकाल में अलनिनों के कारण मौसम प्रभावित रहा। शीतकाल में भारी वर्षा व हिमपात होने की पूरी सम्भावना है। उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में पहले हिमपात होना इस बात के संकेत है कि इस बार उत्तराखंड के कई हिस्सों में हिमपात व वर्षा होगी। जर्मनी के वैज्ञानिकों के साथ गुफा लिंगों के माध्यम से मौसम परिवर्तन पर जर्मनी के वैज्ञानिकों के साथ लम्बा शोध कर रहे यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि ग्लोबल वार्मिग के कारण पूरे विश्व के मौसम में अप्रत्याशित बदलाव आया है। इसका प्रभाव उत्तर भारत सहित हिमालयी राज्यों में भी देखने को मिला है। बीते कुछ वर्षों से शीतकाल में नैनीताल सहित उत्तराखंड के कई हिस्सों में सूखे की स्थिति बनी रही। इस बार सामान्यतया उत्तराखंड मे ठीक ठाक वर्षा भी हुई है। अतिवृष्टि की घटनाएं अधिक नहीं हुई। मौसम चक्र में सुधार आया है। शीतकाल में कई स्थानों में भारी हिमपात व कई स्थानों में सामान्य हिमपात के साथ ही अच्छी वर्षा के आसार हैं। डा. कोटलिया का कहना है कि इस वर्ष मौसम परिवर्तन के कारण भारत वर्ष के उन स्थानों में भी भारी वर्षा हुई जहां लम्बे समय से सूखा पड़ रहा था। अच्छी वर्षा के बाद मौसम चक्र में सुधार आया है। पिछले वर्षो के उलट इस बार शीतकालीन वर्षा व हिमपात संतोषजनक रहेगा। डा. कोटलिया का कहना है कि मौसम परिवर्तन का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है। इसके लिए पुरा विश्व समुदाय चितिंत है। हिमालय क्षेत्रों में जिस तरह से वनों का विनाश विकास के नाम पर हो रहा है उसके परिणाम जल्दी ही दिखाई देंगे। हिमालयी क्षेत्रों में विपरित मौसम का प्रभाव पूरे उत्तर भारतें पडे़गा।
अनियमित मौसम से नैनी झील भी है प्रभावित: कोटलिया
नैनीताल।
मौसम परिवर्तन पर शोध कर रहे यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बहादुर सिंह कोटलिया ने कहा है कि बीते कुछ वर्षो से अनियमित मौसम के बाद शीतकाल में नैनीताल में कम हिमपात व पर्याप्त वर्षा नहीं होने से नैनी झील भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। नैनी झील 40 प्रतिशत वर्षा व 60 प्रतिशत भूमिगत जल से रिचार्ज होती है। बरसात के मौसम में झील अब गाद के कारण कम जल संग्रहण की वजह से लबालब हो जाती है। लेकिन बरसात के बाद तेजी से जलस्तर कम हो जाता है। शीतकाल में पर्याप्त वर्षा व हिमपात होना आवश्यक है। इसी से भूमिगत जल की आपूर्ति बनी रहती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से नैनीताल के निचले हिस्सों में कम हिमपात हो रहा है। इससे भूमिगत जल में कमी आई है। जिससे नैनी झील प्रभावित हो रही है। इसके साथ ही बीते वर्षों में देखा गया कि नैनीताल में स्नो लाईन भी बदल चुकी है। नैनीताल में जो भी हिमपात हुआ वह नैनीताल की चोटियों तक ही सीमित रहा। निचले हिस्सों में कभी दो फिट से अधिक हिमपात होता था। लेकिन अब यह नैनीताल की चाटियों तक सीमित हो गया है।

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