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दलाही कुंड : जहां ताली बजाते ही बाहर आ जाता है पानी? दूर-दूर से आते हैं टूरिस्ट

दलाही कुंड : जहां ताली बजाते ही बाहर आ जाता है पानी? दूर-दूर से आते हैं टूरिस्ट
सीएन, बोकारो।
झारखंड में स्थित दलाही कुंड का रहस्य अब भी अनसुलझा है. बताया जाता है कि वैज्ञानिक भी अभी तक यह पता नहीं लगा पाये हैं कि आखिर इस कुंड में पानी कहां से आता है.  दरअसल, इस कुंड को श्रद्धालु पवित्र मानते हैं और दूर-दूर से टूरिस्ट यहां जाते हैं. कुंड के करीब ही स्थानीय लोक देवता दलाही गोसाईं का स्थान है, जहां हर रविवार पूजा होती है. मकर संक्रांति के दिन कुंड पर बड़ा मेला लगता है. आस्था की जगह होने के कारण कुंड में स्नान कर लोग मन्नत मांगते हैं और यह भी मान्यता है कि ऐसा करने से श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होती है. इस कुंड में ताली बजाते ही पानी बाहर आ जाता है.  यह कुंड झारखंड के बोकारो जिले में है. ताली बजाते ही कुंड से बाहर पानी आने के कारण यह जगह पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी रहती है. इसे देखने के लिए काफी सैलानी आते हैं. जहां सैलानियों के लिए यह रहस्य है वहीं स्थानीय लोग इस  कुंड को पवित्र मानते हैं और यहां पूजा करते हैं. इस कुंड में सल्फर और हीलियम गैस है. इस कारण यहां का पानी सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा रहता है. मान्यता है कि इस कुंड के पानी में नहाने से चर्म रोग ठीक होते हैं. यहां कुंड के पास ताली बजाने से पानी के बुलबुले ऊपर आ जाते हैं. ऐसा क्यों होता है इसकी गुत्थी वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाये हैं. ताली बजाते ही कुंड का पानी ऊपर ऐसे उठता है जैसे किसी बर्तन में उबल रहा हो.  बोकारो शहर से यह कुंड  27 किमी दूर है. अगर आपने भी अभी तक यह जगह नहीं देखी तो आप यहां सैर के लिए जा सकते हैं. मान्यता है कि इस कुंड के जल से स्नान करने पर चर्म रोग समेत अन्य कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। इस कारण यहां हर वर्ष काफी संख्या में लोग आते हैं। बताया जाता है कि वर्ष 1981 से प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति मेला भी लगता है। स्थानीय निवासी भीम कुमार साव, तुलसी साहू, माथुर हजाम, अशोक साहू, धीरेन कपरदार, दुर्गा प्रसाद महतो, गोपाल साहू के अनुसार यह स्थल पूर्वजों के समय से ही धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। हाल के दिनों में इसे विकसित करने के लिए सरकारी स्तर पर कई काम हुए हैं। कुंड को चारों ओर से घेर के सुरक्षित कर दिया गया है। चारदीवारी, शेड, शौचालय आदि का निर्माण भी हुआ है। गांव से वहां तक जाने के लिए पक्की सड़क भी निर्माणाधीन है। जैनामोड़- चिलगड्डा मार्ग से लगभग दस किलोमीटर की दूरी चलकर यहां तक पहुंचा जा सकता है।

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