उत्तराखण्ड
आखिर कैसे एक छोटा सा देश ड्रैगन की निकाल रहा है सारी हेकड़ी
आखिर कैसे एक छोटा सा देश ड्रैगन की निकाल रहा है सारी हेकड़ी
सीएन, नई दिल्ली। चीन से तनाव पर ताइवान की निर्भयता को देख रही दुनिया को यह भी जानना चाहिए कि आखिर कैसे एक छोटा सा देश ड्रैगन की सारी हेकड़ी निकाल रहा है। 2022 में बेहद निडर दिख रहे ताइवान का रुख पहले ऐसा नहीं था। पूर्व में ताइवान चीन के साथ बहुचर्चित ‘1992 कॉन्सेंसस’ समझौता भी कर चुका है, जिसमें चीन की वन चाइना नीति को बल मिलता है। तो आखिर कौन है वो शख्स? जिसने ताइवान को निडर बना दिया है। दरअसल यह कोई और नहीं, बल्कि ताइवान की मौजूदा राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन हैं। त्साई इंग-वेन ताइवान की पहली महिला राष्ट्रपति तब बनी थीं, जब वह 2016 में अपना पहला चुनाव जीत कर आईं। वेन को उनके कड़क लहजे के लिए जाना जाता हैं, जिन्होंने एक बार चीनी राष्ट्रपति के पत्र को कूड़ेदान में डाल दिया था। त्साई इंग-वेन का जन्म 1956 में ताइवान की राजधानी ताइपे में हुआ था। वह अपने 11 भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। वेन के पिता ऑटो रिपेयर की दुकान चलाते थे। वेन ताइवान यूनिवर्सिटी से स्नातक स्तर की पढ़ाई करने के बाद लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में कानून की पढ़ाई करने ब्रिटेन चली गईं। राजनीति में कदम रखने से पहले वेन ने ताइपे में ही कानून के प्रोफेसर के रूप में नौकरी की थी। राष्ट्रवादी पार्टी से जुड़ने के पहले वेन को साल 2000 में मेनलैंड अफेयर्स कौंसिल के अध्यक्ष की हाई-प्रोफाइल नियुक्ति दी गई थी। मेनलैंड अफेयर्स कौंसिल ही चीन-ताइवान के बीच संबंधों को देखती है। वेन ने अपनी राष्ट्रवादी सोच के चलते वर्ष 2004 में पहली बार डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। बाद में उन्हें डीपीपी द्वारा 2004 के विधायी चुनाव में एक उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया था, जहां वह बड़े अंतर से विजय हुई। वेन के काम से प्रभावित होकर 2006 में उन्हें संसद का उपाध्यक्ष बना दिया गया था। उपाध्यक्ष बनने के महज दो साल बाद ही वह डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की पहली महिला अध्यक्ष निर्वाचित हुई थी। त्साई इंग-वेन को पार्टी द्वारा 2015 में पहली बार राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया था। चुनावी प्रचार के दौरान वेन ने जमकर चीन को कोसना शुरू किया था। परिणामस्वरूप वेन 2016 में बड़े अंतर से जीतकर देश की पहली महिला राष्ट्रपति बन गईं। चुनाव जीतने के बाद, टाइम पत्रिका ने उन्हें अपनी मैगज़ीन में नामित किया था। तब से अब तक त्साई इंग-वेन का राजनीति में कद बढ़ा है। न सिर्फ ताइवान बल्कि विश्वभर में अब उन्हें ग्लोबल लीडर के रूप में देखा जा रहा है। 2016 में सत्ता संभालते ही वेन ने अमेरिका से अपने संबंधो को मजबूत कर चीन को संदेश देना शुरू कर दिया था। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कार्यकाल के कुछ ही दिनों में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति से टेलीफोन पर वार्ता की। यह 1979 के बाद से पहला मौका था, जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ ताइवान के राष्ट्रपति ने सीधे फोन पर वार्ता की हो। इस वार्ता के बाद चीन ने ताइवान पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। ताइवान और चीन के मध्य संबंधों को क्रॉस स्ट्रेट रिलेशन्स कहा जाता है। यह नाम दोनों के मध्य पड़ने वाले ताइवान स्ट्रेट के नाम से आया है। क्रॉस स्ट्रेट रिलेशन्स के तहत ही ताइवान और चीन ने 1992 में ‘1992 कॉन्सेंसस’ समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। चीन के अनुसार इस समझौते में ‘वन चाइना टू सिस्टम’ की बातें कही गई हैं. हालांकि DPP पार्टी इस समझौते को हमेशा नकारती आई है। चीन हमेशा से ही ताइवान को अपना हिस्सा बताता आया है, जिसे एक न एक दिन ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना’ में मिलना ही है। इसी क्रम में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जनवरी 2019 में उन्हें एक पत्र लिखा था। इस पत्र में जिनपिंग ने ताइवान के लिए ‘वन चाइना टू सिस्टम’ का प्रस्ताव दिया। हालांकि न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार वेन ने जिनपिंग के इस पत्र को सीधे नकारते हुए कह दिया था कि ताइवान का चीन में मिलना असंभव है। यहां से चीन और ताइवान में दूरिया बढ़नी शुरू हो गई थीं, जिसके बाद चीन ने ताइवान को सेना का डर दिखा कर धमकाना शुरू कर दिया था। त्साई इंग-वेन को हांगकांग की आज़ादी का समर्थक माना जाता है। उन्होंने कई मौके पर हांगकांग के प्रो डेमोक्रेसी कार्यकर्ताओं का खुला समर्थन किया है, जिसके बाद हांगकांग में महीनों से चल रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों का ताइवान के लोगों ने समर्थन करना शुरू कर दिया। रॉयटर्स के मुताबिक वेन ने एक चुनावी जनसभा के दौरान लोगों को चेतावनी दी थी कि अगर वह चुनाव नहीं जीती तो ताइवान का हाल भी हांगकांग जैसा ही होगा, जिसके बाद 2020 में आये परिणामों में 50 प्रतिशत से अधिक वोटों से वेन दूसरी बार राष्ट्रपति चुनी गईं।