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उत्तराखण्ड

तेजपत्ता उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हो गया भीमताल का भुजियाघाट

स्वंय सहायता समूह ने मछली पालन व सब्जी उत्पादन भी शुरू किया
कृषि क्षेत्र में तेजपात, क्वैराल से लेकर बुल्गारियन गुलाब की पौंध भी उपलब्ध
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
जिले के भुजियाघाट के काश्तकारों ने कृषि क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य सम्पादित किए है। पिछले दस वर्षों में यहां कृषकों ने आधुनिक व उन्नत तकनीक अपना कर कृषि क्षेत्र में क्रान्ति पैदा कर दी है। यह क्षेत्र तेजपत्ता उत्पादन के लिए प्रसिद्ध ही नही वरन यहां उत्तम किस्म के तेजपत्ता की मांग भी मसाला बाजार में है। भुजियाघाट से लेकर ज्योलीकोट, गांजा, रानीबाग सहित एक दर्जन गांवों में आज तेजपत्ता उत्पादन प्रमुख रूप से होता है। यहां उत्पादित तेजपत्ता में सिनेमलडिहाईड तत्व भी पाये जाते है। लिहाजा यहां उत्पादित तेजपत्ता का उपयोग न केवल मसालों में किया जाता है बल्कि इसका उपयोग आर्युर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है। अब जबकि पहाड़ों में उत्पादित होने वाले तेजपत्ता को चेन्नई स्थित भौगोलिक उपदर्शन रजिस्ट्री कार्यालय ने भी पंजीकृत किया है इससे क्षेत्र के काश्तकारों को लाभ पहुंचेगा। इससे कृषकों को पहले की अपेक्षा इसकी अच्छी कीमत मिल सकेगी। मालूम हो कि भुजियाघाट में तेजपत्ता की अनेक किस्म पाई गई है। शीतोष्ण जलवायु होने के कारण यहां दक्षिण भारत में पाई जाने वाली उत्तम किस्म की तेजपत्ता का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र में सब्जी के लिए प्रयुक्त होने वाले कचनार (क्वैराल) से लेकर कीमती बुल्गारियन गुलाब के पौंध तक यहां नर्सरियों में उपलब्ध है। यहीं नहीं दुग्ध उत्पादन के लिए अच्छी नस्ल के पशु, मछली उत्पादन के लिए फिश पांउड भी काश्तकारों के पास मिल जाएये। यह क्रान्ति स्थानीय कृषकों की कृषि विकासशील स्वंय सहायता समूह के माध्यम से हुई है। समय-समय पर कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा भुजियाघाट का भ्रमण कर कृषकों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अधिकारियों को मंडल के किसानों की शैक्षिक भ्रमण के दौरान भुजियाघाट को भी भ्रमण कार्यक्रम में शामिल करने को कहाहै।
भूमि का कृषि उपयोग तो भुजियाघाट में पुरानी परम्परा
नैनीताल। पिछले एक दशक में भुजियाघाट के कृषकों ने आधुनिक व उन्नत तकनीक अपना कर कृषि क्षेत्र में क्रान्ति पैदा कर दी। तेजपत्ता उत्पादन के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र में आज कृषकों की नर्सरी में तेजपत्ता, कचनार, जामुन, एलोबीरा, आंवला, माल्टा, बड़ा नीबू, रीठा सिक्कम इलाईची, बुल्गारियन गुलाब सहित फूलों की विभिन्न किस्म के पौंध मिल जाएंगे। यहां लगाए गए पाली हाउसों में टमाटर, गोभी, आलू, पालक, मिर्च बैगन, शिमला मिर्च भरपूर मात्रा में मिल जाएंगे। कृषक दुग्ध उत्पादन के साथ कामन कार्प, सिल्वर कार्प व ग्रास कार्प मछली का भी उत्पादन कर रहे हैं। सहायता समूह के अध्यक्ष गोविन्द पलड़िया बताते है कि एक नाली भूमि पर बने एक पालीहाउस में उगाए गए हिमसोना प्रजाति के टमाटर से उन्हें 10 हजार की आय हुई है। वह बताते है कि स्थानीय काश्तकार जहां धान, गेहंू व अन्य फसलों को उगा रहे है वहीं कृषि व उद्यान विशेषज्ञों की राय लेकर नगदी फसल भी पैदा कर रहे हैं।

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