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उत्तराखण्ड

आयुक्त ने 8 किलोमीटर पैदल चलकर बृहस्पति देव मंदिर में पूजा अर्चना की

ओखलकांडा क्षेत्र में स्थित देव गुरु बृहस्पति भगवान का प्रसिद्ध एकमात्र मंदिर
ओखलकांडा/नैनीताल।
कुमाऊँ आयुक्त दीपक रावत ने 8 किलोमीटर पैदल चलकर नवरात्र के छठे दिवस में एशिया के प्रसिद्ध बृहस्पति देव मंदिर में पूजा अर्चना कर जिले व राज्य की सुख शांति की कामना की। आयुक्त ने कहा कि धार्मिक पर्यटन, जिसे आमतौर पर विश्वास पर्यटन के रूप में भी जाना जाता है। हमारे पौराणिक ग्रंथो में उत्तराखंड को देवभूमि कहा गया है व धार्मिक पर्यटन के लिए देश विदेश से तीर्थ यात्री यहाँ आते है। धार्मिक पर्यटन में वृद्धि से जनपद, राज्य व राष्ट्र की आर्थिकी में वृद्धि होगी। मालूम हो कि उत्तराखंड आध्यात्मिक और देवी देवताओं की भूमि है, देवताओं के गुरु बृहस्पति का मंदिर बहुत कम ही आपको दुनिया में कहीं देखने को मिले लेकिन उत्तराखंड के नैनीताल जिले में देव गुरु बृहस्पति का मंदिर है, जो एशिया में काफी विख्यात है। विकासखण्ड ओखलकांडा क्षेत्र में स्थित देव गुरु बृहस्पति भगवान का एकमात्र मंदिर है, जो समूचे हिमालयी भू-भाग में परम पूजनीय है। इस मंदिर की महिमा के बारे में अनेकों दंतकथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि सतयुग में एक बार देवराज इन्द्र ब्रह्म हत्या के पाप से घिर गये थे। पाप से मुक्ति के लिए वे यहां के घने जंगलों की गुफाओं में तपस्या करने लगे। उनके अचानक स्वर्ग छोड़ देने के कारण सभी देवता परेशान हो गए। काफी खोजबीन के बाद भी जब देवराज इन्द्र का पता नहीं चला तो सभी देवगण निराश होकर अपने गुरु बृहस्पति महाराज की शरण में गये। उन्होंने देवगुरु से इन्द्र को खोजने का अनुरोध किया। देवताओं की विनती पर देवगुरु ने इन्द्र की खोज आरम्भ की। वे उन्हें खोजते-खोजते भू-लोक में पहुंचे। एक गुफा में उन्होंने देवराज इन्द्र को भयग्रस्त अवस्था में व्याकुल देखा। देवगुरु ने इन्द्र की व्याकुलता दूर कर उन्हें अभयत्व प्रदान कर वापस भेज दिया। तत्पश्चात इस स्थान के सौंदर्य व पर्वतों की रमणीकता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो तपस्या में लीन हो गए तभी से यह स्थान पृथ्वी पर देवगुरु धाम के नाम से प्रसिद्व हुआ। इस अवसर पर महाराज प्रेमानंद, कमल कफलटिया, देवगुरु जनकल्याण समिति के अध्यक्ष भुवन चन्द्र, उपजिलाधिकारी योगेश मेहरा सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

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