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उत्तराखण्ड

डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट करनाल के कुलपति को बनाया पंतनगर विवि का नया कुलपति

पौड़ी के यमकेश्वर के जामल गांव निवासी हैं डा. चौहान, क्लोनिंग के क्षेत्र में एक बड़ा नाम
सीएन, देहरादून।
कुलपति नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट करनाल हरियाणा डॉ मनमोहन सिंह चौहान को गोविंद बल्लभ पंत, पंतनगर विश्वविद्यालय का नया कुलपति बनाया गया है इनकी नियुक्ति कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर जो भी पहले हो तक की अवधि के लिए आज की गई है। पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने आज 15 अगस्त को आदेश जारी करते हुए नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट करनाल के कुलसचिव डॉ मनमोहन सिंह चौहान को पंतनगर विश्वविद्यालय का नया कुलपति बनाया है।
पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर के जामल गांव निवासी हैं डा. चौहान
डा. मनमोहन सिंह चौहान का जन्म 5 जनवरी, 1960 को पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर के जामल गांव में हुआ। जयहरीखाल से हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और बीएससी करने के बाद डा. चौहान ने 1981 में श्रीनगर, गढ़वाल से एमएससी की। पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी जाकर पीएचडी का थीसिस लिखा। मनमोहन सिंह चौहान को 1986 में पीएचडी की डिग्री मिली।
चौहान भारत में जानवरों की क्लोनिंग के क्षेत्र में एक बड़ा नाम
आईसीएआर–केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. मनमोहन सिंह चौहान भारत में जानवरों की क्लोनिंग के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हैं। डा. चौहान राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल में प्रधान वैज्ञानिक (पशु जैव प्रौद्योगिकी) के पद पर कार्यरत रहे। गाय, भैंस, याक एवं बकरी से जुड़े अनुसंधान के क्षेत्र में डा. चौहान को काफी ख्याति हासिल है। उन्होंने अनुसंधान के 32 वर्षों में पशुधन कार्यकुशलता के लिए अनेक क्षमतावान जनन जैव प्रौद्योगिकी विकसित की हैं। डा. चौहान ने गाय, भैंस, बकरी एवं याक जानवरों में टेस्ट ट्यूब बेबी की तकनीकी के (इनविट्रो भ्रूण) महत्वपूर्ण एवं आसान तरीके विकसित किए हैं। डा. चौहान के नाम विश्व में सबसे पहले भैंस की कटिया का क्लोन ‘गरिमा 2’ तैयार करने का रिकॉर्ड है। उन्होंने एम्ब्रयोनिक स्टेम सेल से यह उपलब्धि हासिल की। उन्होंने भैंस के कान के टुकड़े से 14 भैंस तैयार की। उनके नाम भारत में पहला ओपीयू-आईवीएफ साहीवाल बछड़ा तैयार करने का भी रिकॉर्ड है। डा. मनमोहन सिंह चौहान कई पुरूस्कार मिल चुके हैं जिनमें आईसीएआर की ओर से 2015 में रफी अहमद किदवई पुरस्कार, एनएएएस द्वारा डा. पी. भट्टाचार्य मेमोरियल अवार्ड 2020, आईएआरआई द्वारा राव बहादुर बी विश्वनाथ पुरस्कार 2019, कृषि विज्ञान में वासविक औद्योगिक पुरस्कार 2015, पशु विज्ञान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-टीम पुरस्कार 2014, आईएसएसआरएफ द्वारा डा. लाभसेटवार पुरस्कार-2016, डीबीटी बायोटेक्नोलॉजी ओवरसीज फेलोशिप अवार्ड 1997, वर्जीनिया टेक यूएसए द्वारा डेयरी साइंस में अनुकरणीय अनुसंधान पुरस्कार 1999 तथा 2009 में जर्मनी का दौरा करने वाले वैज्ञानिक, 2009 में यूरोपीय इरास्मस मुंडस छात्रवृत्ति पुरस्कार और 2021 में एनएएएस अकादमी के कार्यकारी परिषद सदस्य के रूप में सम्मान मिला है। डा. चौहान ने अब तक 125 शोध पत्र, 2 पुस्तक, 90 वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रकाशन प्रकाशित किए है। उत्तराखंड के मूल निवासी होने के कारण डा. चौहान का यहां के गरीब किसानों के उत्थान के लिए विशेष ध्यान रहता है। उनके निर्देशन में उत्तराखंड में बकरी उत्थान के लिए कई कैंप लगाए जा चुके हैं।

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