उत्तराखण्ड
उत्तराखंड के जंगलों में वन गुर्जरों की बसावट, तो हो रहा डेमोग्राफी बदलाव, वन विभाग ने कहा हो रही जांच
सीएन, देहरादून। उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में रहने वाले वन गुर्जर समुदाय को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सामाजिक संगठनों और कुछ स्थानीय लोगों का आरोप है कि राज्य के जंगलों में बाहरी राज्यों से आए वन गुर्जरों की संख्या में असामान्य वृद्धि हुई है, जिससे डेमोग्राफी परिवर्तन, वन भूमि पर अतिक्रमण और वन्यजीव संरक्षण को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कश्मीर क्षेत्र से आए कुछ परिवारों ने उत्तराखंड के तराई और पहाड़ी वन क्षेत्रों में अस्थायी डेरों को स्थायी बसावट में बदल लिया है। दावा किया जा रहा है कि वन विभाग की प्रशासनिक खामियों का लाभ उठाकर सरकारी वन भूमि पर कब्जे किए गए हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से विस्थापन प्रक्रिया के दौरान परिवारों की संख्या को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि जहां 1998 के सर्वे में सीमित संख्या में परिवार दर्ज थे, वहीं विस्थापन के समय यह संख्या कई गुना बढ़ गई। कुछ मामलों में विस्थापन पैकेज के तहत मिली भूमि और धनराशि को बाहरी लोगों को बेचने के आरोप भी सामने आए हैं। वन विभाग के पूर्व अधिकारियों के कार्यकाल में सामने आए कुछ मामलों का हवाला देते हुए आरोप लगाया गया है कि कुछ व्यक्तियों की संलिप्तता हाथी दांत, बाघ की खाल और अन्य वन्यजीव अंगों की तस्करी में पाई गई थी। हालांकि ये मामले व्यक्तिगत हैं और पूरे समुदाय पर लागू नहीं होते, फिर भी इससे वन्यजीव सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ी है। यह भी आरोप है कि कुछ वन गुर्जर परिवार अपने पशुओं के साथ संवेदनशील और सीमावर्ती वन क्षेत्रों तक पहुंच रहे हैं, जहां जैव विविधता और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पहलू महत्वपूर्ण हैं। वन विभाग के अनुसार, ऐसे क्षेत्रों में प्रवेश को लेकर पूर्व में प्रतिबंध लगाए गए थे, जिनका पालन सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। हिमाचल से सटी टोंस और यमुना घाटी में कुछ संगठनों ने दावा किया है कि वन गुर्जर परिवारों के नाम स्थानीय मतदाता सूचियों में दर्ज हो गए हैं, जिससे जनजातीय क्षेत्रों की सामाजिक संरचना प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। इस संबंध में जनजागरण अभियानों की भी बात कही जा रही है। वन विभाग में अतिक्रमण हटाओ अभियान के नोडल अधिकारी और मुख्य वन संरक्षक डॉ. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि सभी वन प्रभागों से रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है।
उन्होंने कहा—वैध और अवैध कब्जेदारों का सत्यापन किया जा रहा है। यदि किसी परिवार के पास निर्धारित सीमा से अधिक भूमि पाई जाती है या अवैध खरीद-बिक्री के प्रमाण मिलते हैं, तो वन अधिनियम के तहत सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।” वन विभाग का कहना है कि जीपीएस और सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से अतिक्रमण की पहचान की जा रही है और कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।


























































