उत्तराखण्ड
उत्तराखंड क्रांति दल के साथ सैकड़ों लोगों का हल्द्वानी में मूल निवास और भू कानून को लेकर तांडव रैली
उत्तराखंड क्रांति दल के साथ सैकड़ों लोगों का हल्द्वानी में मूल निवास और भू कानून को लेकर तांडव रैली
सीएन, हल्द्वानी। शनिवार को हल्द्वानी में उत्तराखंड क्रांति दल ने मूल निवास और भू कानून की मांग को लेकर तांडव रैली निकाली। शहर में जुलूस निकालकर प्रदर्शन करते हुए उत्तराखंड क्रांति दल के साथ सैकड़ों लोगों ने उत्तराखंड के लोगों को उनके मूल हक सशक्त भू कानून और मूल निवास बनाए जाने को लेकर सरकार को तत्काल ठोस कदम उठाने की मांग की। यूकेडी नेताओं का कहना है कि राज्य बने 25 साल हो गए लेकिन उत्तराखंड के लोग आज भी अपने मूल अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। पहाड़ों से पलायन हो गया है बाहरी लोगों ने उत्तराखंड के पहाड़ के पहाड़ खरीद लिए हैं ऐसे में देवभूमि की अस्मिता को भी खतरा है इसलिए उत्तराखंड क्रांति दल आम लोगों की आवाज बनकर राज्य में सबसे सख्त भू कानून और उत्तराखंड के लोगों के लिए मूल निवास की मांग कर रहा है। आज निकाली गई रैली में लोग हाथों में चुप न रहेंगे, कुछ न सहेंगे, मूल निवास लेके रहेंगे, बोल पहाड़ी हल्ला बोल, नहीं चाहिए दिल्ली दून, हमें चाहिए भू कानून, हमें चाहिए मूल निवास बैनर पकड़े हुए थे। मालूम हो कि आंदोलनकारी मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू की जाए।. प्रदेश में ठोस भू.कानून लागू हो। शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। जमीन उसी को दी जाय, जो 25 साल से उत्तराखंड में सेवाएं दे रहा हो या रह रहा हो। ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। गैर कृषक द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे। पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे। राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्योरा सार्वजनिक किया जाए। प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्योग, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए। ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित करने की मांग कर रहे है। मालूम हो कि 2002 में पहली चुनी गई कांग्रेस की सरकार ने भू कानून का प्रावधान किया था, लेकिन सदन में उसका विरोध हो गया। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने विजय बहुगुणा के नेतृत्व में उपसमिति बनाई। तब यह कहा गया था कि अन्य राज्य के लोग उत्तराखंड में सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे। 2007 में इसे घटा कर फिर 250 वर्ग मीटर कर दिया गया। साफ था कि किसी अन्य राज्य के व्यक्ति को अगर उत्तराखंड में जमीन खरीदनी है तो वह 250 वर्ग मीटर कृषि जमीन ही खरीद सकता था। 2018 में यह प्रावधान फिर बदल गया। आंदोलनकारियों में यह आग उसी समय से सुलग रही थी और इसे रद्द करने की मांग करते आ रहे हैं। 6 अक्तूबर 2018 में राज्य सरकार नया अध्यादेश लाई, जिसमें उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन का विधायक पारित कराया। इसमें दो धाराएं 143 और धारा 154 जोड़ी गई। इसके तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया। यह फैसला उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में निवेश और उद्योग को बढ़ावा देने के लिए किया था। इससे यह हुआ की किसी भी अन्य राज्य का व्यक्ति उत्तराखंड में जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकता था। आंदोलनकारी अब 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की ओर से लाए गए तीन भू कानून संशोधन को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि अंग्रेजों के समय में आजादी की लड़ाई में भी जमीनों के सवाल हुए। फिर आजादी के बाद 70 के दशक में वन आंदोलन में भी जमीनों के सवाल उठे। फिर यह बात उठी की उत्तराखंड बन जाएगा तो हम अपनी नीतियां बनाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंग्रेजों के जाने के बाद और 1964 के बाद हमारे यहां जमीनों की पैमाइश ही नहीं हो सकी है। अंग्रेजों के समय में 11 बार जमीनों की पैमाइश की जा चुकी थी। हर 40 साल में जमीनों का बंदोबस्त होता है। 2004 में पैमाइश का काम हो जाना चाहिए था। हम तो यह भी मांग कर रहे हैं कि 2018 में जो हमारे पुराने कानूनों में संशोधन कर तीन भू कानून सरकार लाई है उसे तुरंत रद्द किया जाए। उत्तराखंड के पूर्ववर्ती जमीनों की पैमाइश की जाए। फॉरेस्ट में हमारी जमीनें जो सरकार के खाते में गई है, वह सारी जमीनों को मुक्त किया जाए। उत्तराखंड के अंदर अन्य राज्यों के तरह भू कानून बने हैं।
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