उत्तराखण्ड
जो भ्रष्टाचार उजागर करे वही कटघरे में खड़ा हो, तो फिर किसके लिए है शासन, आरटीआई कार्यकर्ता हैरान
जो भ्रष्टाचार उजागर करे वही कटघरे में खड़ा हो, तो फिर किसके लिए है शासन, आरटीआई कार्यकर्ता हैरान
सीएन, नैनीताल। आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर जोशी की भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग अब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक पहुंच गई है। लेकिन उत्तराखंड के सिस्टम को सच्चाई से अब भी परहेज़ है। आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर जोशी ने कहा है कि उत्तराखंड के चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशालय में भ्रष्टाचार उजागर करने पर उनसे एफिडेविट मांगा जा रहा है। मैं एफिडेविट नहीं, जनता की आवाज़ लेकर आया हूं।
अगर सच्चाई को दबाया जाएगा, तो यह आवाज़ और ऊंची होगी। उत्तराखंड के चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशालय में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्टिविस्ट चंद्रशेखर जोशी ने विजिलेंस विभाग को दस्तावेजों सहित ठोस शिकायत भेजी थी। उम्मीद थी कि त्वरित कार्रवाई होगी, लेकिन हकीकत ने हैरान कर दिया। विजिलेंस ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया और महानिदेशक को स्पष्ट निर्देश दिए कि शिकायत का संज्ञान लें, नियमानुसार आवश्यक कार्रवाई करें, यदि कोई तथ्य सतर्कता जांच के योग्य हो, तो औचित्यपूर्ण प्रस्ताव शासन को भेजा जाए। लेकिन महानिदेशक ने क्या किया, न तो कोई जांच की, न कोई औचित्यपूर्ण प्रस्ताव भेजा, बल्कि शिकायत को सिरे से खारिज कर दिया और शिकायतकर्ता से ही एफिडेविट की मांग कर दी। ऐसा प्रतीत होता है जैसे अब सिस्टम की अघोषित नीति बन गई हो। महानिदेशक ने कहा हम तो बिना एफिडेविट लिए भ्रष्टाचार की जांच नहीं करेंगे। श्री जोशी ने विजिलेंस विभाग से सूचना के अधिकार के तहत पांच सीधे प्रश्न पूछे। 1.एफिडेविट की कानूनी अनिवार्यता किस आदेश पर आधारित है,.क्या यह नियम सभी शिकायतों पर समान रूप से लागू होता है। अब तक कितनी शिकायतों में ऐसा एफिडेविट मांगा गया है। शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता तय करना प्रशासन का दायित्व है या नागरिक का। क्या विजिलेंस विभाग का प्रचार भ्रष्टाचार मुक्त भारत और व्यवहार एफिडेविट आधारित चुप्पी एक विरोधाभास नहीं है। अब यह मामला केवल राज्य का नहीं रहा। चंद्रशेखर जोशी ने जब देखा कि राज्य स्तर पर कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं हो रही, तो उन्होंने यह पूरा प्रकरण राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय और उत्तराखंड के महामहिम राज्यपाल को दस्तावेजों सहित भेज दिया। जब राज्य व्यवस्था मौन हो जाए, तब लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनता की अदालत ही सर्वोच्च होती है। अब यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, हर जागरूक नागरिक की आवाज़ है,जो चाहता है कि भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई होजो चाहता है कि शिकायतकर्ता को डर नहीं सम्मान और संरक्षण मिले।
