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उत्तराखण्ड

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवसः जंग और औरत जात के सवालात !

सुसंस्कृति परिहार, दिल्ली। हालिया रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान एक मेडीकल छात्रा ने रोते हुए यह बताया कि यहां युद्ध चल रहा है हम बंकरों में है लेकिन हमारे साथ की दो लड़कियों को घसीटकर सैनिक ले गए हैं।वे कहां और किस हालत में होंगी सोचकर सहम जाती हूं। चौबीस घंटे डर के साए में गुज़र रहे हैं।यह वीडियो उसके बाद कहीं दिखाई नहीं दिया ना ही किसी ने यह जानने की कोशिश की वे कहां और किस हाल में हैं।लगता है ये जंग में ज़रुरत का सामान की तरह का मामला है। इसीलिए शायद कहा गया है कि वार और प्यार में सब जायज है।

अफ़सोसनाक यह है कि यह मार्च में हो रहा है जबकि इस माह का प्रथम सप्ताह जो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च तक चलेगा इसमें युद्ध की विभीषिका में औरत के साथ होने वाले जुल्म के सवालातों पर शायद ही कहीं चर्चा हो। इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022 की थीम ‘जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो’ यानी ‘एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता’ है।इस खास मौके पर महिलाओं को सम्मान देना, उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देना, उन्हें धन्यवाद कहने और जीवन में उनके महत्व को समझते हुए उनकी सराहना करने का सिलसिला जारी है ।

दूसरी ओर उधर युद्ध की विभीषिका में लैंगिक समानता का समूचा विचार धराशाई हो रहा है। चोंग ओके सन (Chong Ok-sun) का एक बयान,जो सन 1996 में यूनाइटेड नेशन्स की रिपोर्ट में छपा था।इस बात की ताकीद करता है हालांकि यह द्वितीय विश्व युद्ध की त्रासदी के समय की बात करता है।वे कहते हैं—“जंग सीमाओं पर नहीं, औरतों के शरीरों पर भी लड़ी जाती है ताकि मर्द अपनी हार का गुस्सा या जीत का जश्न मना सकें! —–

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“13 साल की थी, जब खेत पर जाते हुए जापानी सैनिकों ने, मुझे उठा लिया और लॉरी में डालकर मुंह में मोजे ठूंस दिए, बदबूदार- ग्रीस और कीचड़ से सने हुए. फिर बारी-बारी से सबने मेरा रेप किया. कितनों ने, नहीं पता. मैं बेहोश हो चुकी थी…. औरतें युद्ध की वो कहानी हैं, जो कभी नहीं कही जाएंगी; या कही भी जाएंगी तो खुसफुसाकर, जैसे किसी शर्म को ढंका जा रहा हो!

होश आया तो जापान के किसी हिस्से में थी. एक लंबे कमरे में तीन संकरे रोशनदान थे, जहां लगभग 400 कोरियन लड़कियां थीं.*
*उसी रात पता लगा कि हमें 5 हजार से ज्यादा जापानी सैनिकों को ‘खुश करना’ है. यानी एक कोरियन लड़की को रोज 40 से ज्यादा मर्दों का रेप सहना है!”

जंग में मिट्टी के बाद जिसे सबसे ज्यादा रौंदा-कुचला गया, वो है औरत!
विश्व युद्धों के अलावा छिटपुट लड़ाइयों में भी औरतें यौन गुलाम बनती रहीं.
अमेरिकी जर्नल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन ड्रग एब्यूज में जिक्र है कि कैसे छोटी-छोटी लड़कियों का यौन शोषण हुआ.

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सात-आठ साल की बच्चियां, जिनके गुदगुदे गाल देखकर प्यार करने को दिल चाहते है, उन बच्चियों को ड्रग्स दिए गए ताकि उनकी देह भर जाए और वे सैनिकों को औरत की तरह सुख दे सकें!

वियतनाम युद्ध में ताकतवर अमेरिकी आर्मी के जाने के बाद देश में बेबी बूम हुआ! एक साथ पचासों हजार बच्चे जन्मे, जिनमें बहुतेरे अपाहिज थे.
बहुतेरों की नाबालिक मांओं ने उन यादों से नफरत के चलते जन्म देते ही शिशुओं को सड़क पर फेंक दिया.इन बच्चों को वियतनामी में बुई दोई यानी Dirt of life कहा गया. ये वो बच्चे थे, जिन्हें उनकी मांएं कलेजे से लगाते हुए डरती थीं.

साल 2018 में कांगो के पुरुष गायनेकोलॉजिस्ट डेनिस मुकवेज को “नोबेल पुरस्कार” मिला- उन औरतों का वजाइना रिपेयर करने के लिए, जो युद्ध में सेक्स स्लेव की तरह इस्तेमाल हुई थीं.एक सवाल ये भी उठता है कि सर्जरी करने वाले को नोबेल जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार देने की बजाय, क्या उन स्त्रियों को दुलराया नहीं जाना चाहिए, जो युद्ध के बाद की तकलीफ से जूझ रही थीं?क्या वजाइना रिपेयरिंग की बजाय कोई ऐसी चीज नहीं होनी चाहिए थी, जो औरतों की चिथड़ा-चिथड़ा आत्मा को सिल सके?

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प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इस विषय पर भी खुलकर बात होनी चाहिए। महिला के अवदान के लिए धन्यवाद और गिफ्ट देकर उसका मान बढ़ाने से ज्यादा आज औरत जात के साथ सदियों से जारी इस लैंगिक असमानता की बात सोचनी होगी लेकिन आज दुनिया में जिस तेजी से पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच गहरी खाई खोद रखी है उसमें युद्धों की विभीषिका अपरिहार्य हो चुकी है। इसलिए पहली जिम्मेदारी यही है कि इस खाई को पाटा जाए मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाया जाए उसमें भी स्त्री के प्रदि ज़्यादा संवेदनशील होना आवश्यक होगा ।तभी लैंगिक असमानता के मुद्दे हल होंगे तथा तभी जंग में स्त्री की स्थिति सुदृढ़ होगी। जहां औरत बराबरी के साथ खड़ी हुई है वहां इस तरह के सवाल ना के बराबर है। इसलिए महिला दिवस मनाने से पहले स्त्री को बराबरी का मानने का सबक सीखना होगा।वह कमज़ोर नहीं है हर मोर्चे पर कामयाब हुई है उसका सम्मान ज़रूरी है उसकी शक्ति और ताकत का सम्मान आज की दुनिया की बेहतरी के लिए बेहद जरूरी है।

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