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न्यायाधीश फेसबुक का इस्तेमाल करने व अपने फैसलों पर टिप्पणी करने से बचे : जस्टिस नागरत्ना

न्यायाधीश फेसबुक का इस्तेमाल करने व अपने फैसलों पर टिप्पणी करने से बचे : जस्टिस नागरत्ना
सीएन, नईदिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा है कि न्यायाधीशों को फेसबुक का इस्तेमाल करने से और अपने फैसलों पर टिप्पणी करने से भी बचना चाहिए। इस संबंध में उन्होंने स्पष्ट किया है कि न्यायाधीशों का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपस्थित होना न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा 2 महिला न्यायिक अधिकारियों को पदमुक्त करने से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान की है। उन्होंने कहा कि यह अवलोकन किया गया है कि न्यायाधीशों को सोशल मीडिया के उपयोग से परहेज करना चाहिए और विशेष रूप से, उन्हें सोशल मीडिया पर फैसले के बारे में कोई भी राय व्यक्त नहीं करनी चाहिए। एक महिला अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि न्यायाधीशों को अपने आचरण में सावधानी बरतनी चाहिए और सोशल मीडिया पर निष्पक्षता और न्याय की छवि को बनाये रखने की आवश्यकता है। उनका बयान ऐसे समय में आया है, जब न्यायाधीशों की भूमिका और जिम्मेदारियों पर बहस चल रही है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने न्यायाधीशों को आचार संहिता का पालन करने और अपने कार्यों को सही तरीके से करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को केवल कोर्ट के भीतर सीमित रहना चाहिए और अपने फैसलों के विचारों को सार्वजनिक मंच पर साझा करने से बचना चाहिए।
कौन हैं बैंगलोर वेंकटरमैया नागरत्ना
30 अक्टूबर 1962 को जन्मी बैंगलोर वेंकटरमैया नागरत्ना यानी बीवी नागरत्ना भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं। उन्होंने 2008 से 2021 तक कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया। उनके पिता ईएस वेंकटरमैय्या 1989 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे थे। 2009 में विरोध कर रहे वकीलों के एक समूह द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय परिसर में जबरन हिरासत में लिए जाने के बाद उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने कर्नाटक में वाणिज्यिक और संवैधानिक कानून से संबंधित कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। वह 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बन सकती हैं। बीवी नागरत्ना ने 1987 में कर्नाटक में वकील के रूप में कार्य शुरू किया। अपने वकालत के समय उन्होंने बैंगलोर में संवैधानिक और वाणिज्यिक कानून का अभ्यास किया। 2008 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उन्हें नियुक्त किया गया। उन्हें 17 फरवरी 2010 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। मई 2020 में उनको भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त किये जाने की बात चली। जिससे कई विश्लेषकों ने ये अनुमान लगाया कि इससे वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने के योग्य हो जाएंगी। 26 अगस्त 2021 कोए उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और 31 अगस्त 2021 को उन्होंने शपथ ली। वह वर्ष 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में हैं।

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