उत्तराखण्ड
लोकपाल हेमकुंड में समय से पहले खिल रहे हैं ब्लू पॉपी एवं ब्रह्म कमल
धीरे.धीरे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी दिखने लगा है जलवायु परिवर्तन का असर
लक्ष्मण सिंह नेगी, उरगम घाटी चमोली। विश्व प्रसिद्ध लोकपाल हेमकुंड साहिब फूलों की घाटी में इस वर्ष समय से पहले ब्लू पॉपी एवं ब्रह्म कमल खिलने लगे हैं। धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन का असर प्रकृति के ऊपर भी दिखने लगा है। कई वर्षों से असमय वर्षा बादल फटने की घटना भूस्खलन की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। उसी तरह प्रकृति में भी कई तरह के बदलाव दिखाई दे रहे हैं। कुछ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से घटनाएं सामने आ रही है। विकास की दौड़ प्रकृति को भी असंतुलित कर दिया है। भादो मास में खिलने वाला ब्रह्म कमल आषाढ़ के महीने में खेलने लगा है। पिछले दिनों हिमालय की एक पड़ताल की गई जिसमें लोकपाल हेमकुंड साहिब सहित एक दर्जन से अधिक बुग्याल का भ्रमण किया गया। लोकपाल में माह जुलाई के प्रथम सप्ताह में ही ब्रह्म कमल खिलने लगा है जबकि ब्रह्म कमल अगस्त से सितंबर के बीच खिलता रहा है। ऐसी ही कई दर्जनों वनस्पतियां जलवायु परिवर्तन के कारण संकट के दौर से गुजर रही है। हिमालय की असंख्य जड़ी बूटियां अपना अस्तित्व खो रही है। अत्यधिक प्रकृति पर दबाव विकास के लिए वनों का विनाश बना अग्नि जैसी घटनाओं ने प्रकृति को असंतुलित कर दिया है। जहां धार्मिक यात्रा एवं तीर्थाटन पर्यटन के नाम पर हजारों लोगों का हुजूम हिमालय की ओर जाता दिख रहा है। उससे प्रकृति पर कुप्रभाव देखे जा रहे हैं चाहे अमरनाथ की बाढ़ की घटना हो केदारनाथ 2013 की त्रासदी। यह भी जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे हैं।बैमौसमी वर्षा के कारण कई ऐसी घटनाएं प्रकृति में देखी जा रही है जिससे कि प्रकृति का नुकसान हो रहा है। उत्तराखंड राज्य का राज्य पुष्प ब्रह्म कमल समय से पहले खिलने के कारण कहीं ऐसा तो नहीं है कुछ समय के बाद यह विलुप्त हो जाए। वैज्ञानिकों को इसके लिए शोध और विश्लेषण की आवश्यकता है जिससे कि इस महत्वपूर्ण पुष्य को बचाया जा सके लोकपाल हेमकुंड में एक पहल अच्छी हुई है कि यहां ईडीसी नाम की सोसाइटी द्वारा जैविक व अजैविक कचरा को इकट्ठा किया जाता है। अजैविक कचरे को इकट्ठा कर वापस रीसाइक्लिंग के लिए उपयोग किया जाता है। सामाजिक संस्था जनदेश के द्वारा फूलों की घाटी कचरा को लेकर शोध पत्र तैयार किया गया था जिसमें क्षेत्र में अजैविक और जैविक कूड़ा फैलने के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई थी। इसे जिला प्रशासन के माध्यम से शासन को भी प्रेषित किया गया था। इस प्रकरण में नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क जोशीमठ के द्वारा इसमें एक पहल की गई जिसमें ईडीसी गठित की गई और जैविक अजैविक कचरे के प्रबंधन के लिए लगातार प्रयास जारी हैं। अब गोविंदघाट से लेकर हेमकुंड लोकपाल तक स्वच्छता के लिए जोरदार ढंग से कार्य किया जा रहे हैं। ईडीसी भ्यूँडार के द्वारा भी इसमें अहम भूमिका निभाई जाती हैं इसी तरह ब्रह्म कमल को बचाने के लिए एक पहल की आवश्यकता है। इस प्रकरण पर नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के डीएफओ नंदा वल्लभ शर्मा से जब दूरभाष से बात की गई उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण वनस्पतियां समय से पहले में फूल आने की प्रक्रिया जल्दी प्रारंभ हो रही है।
ब्रह्म कमल हिमालय का ताज
ब्रह्म कमल हिमालय का ताज है और हिमालय वासियों की आराध्य देवी नंदा का सबसे प्रिय पुष्प है। मान्यता है कि जब पार्वती कैलाश से अपने मायके की ओर आती है तो वह शिव स्वरूप ब्रह्म कमल को अपने साथ लेकर अपने मायके आती है। आज भी विश्व की सबसे बड़ी राज जात यात्रा के समय भी हिमालय से ब्रह्म कमल लाने की परंपरा रही है। उत्तराखंड के चमोली जिले में कई लोग जात यात्राएं हिमालय में ब्रह्म कमल लेने के लिए जाते हैं और नंदा को बुलाकर गांव की ओर लाते हैं साथ में ब्रह्म कमल छतोलियो और कन्डियो में लाने की परंपरा रही है।
ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प
ब्रह्मकमल उत्तराखंड राज्य का पुष्प है। केदार नाथ से 2 किलोमीटर ऊपर वासुकी ताल के समीप तथा ब्रह्मकमल नामक तीर्थ पर ब्रह्मकमल सर्वाधिक उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त फूलों की घाटी एवं पिंडारी ग्लेशियर रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी में यह पुष्प बहुतायत पाया जाता है इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है। महाभारत के वन पर्व में इसे सौगंधिक पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णुजी ने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर 1008 शिव नामों से 1008 ब्रह्मकमल पुष्पों से शिवार्चन किया और वे, कमलनयन कहलाये। यही इन्हें सुदर्शन चक्र वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था। केदारनाथ शिवलिंग को अर्पित कर प्रसाद के रूप में दर्शनार्थियों को बांटा जाता है। ब्रह्मकमल पुष्प की कोई जड़ नहीं होती यह पत्तो से ही पनपता है यानी इसके पत्तों को बोया जाता है। इसे अधिक पानी और गर्मी से बचाना जरूरी है। भारत में ब्रह्म कमल तथा उत्तराखंड में इसे कौल पद्म नाम से जानते हैं। जिसमें ब्रह्मकमल का सर्वोच्च स्थान है। यह एक ऐसा फूल है जिसकी महालक्ष्मी वृद्धि के लिए पूजा की जाती है। शेष पुष्पों से भगवान की पूजा करते हैं। यह कभी पानी में नहीं खिलता। इसका वृक्ष होता है। पत्ते बड़े और मोटे होते हैं। पुष्प सफेद होता है।
ब्रह्म कमल मधुमेह यानि डाइबिटिज की दवा
ब्रह्म कमल फूल में मिश्री पीसकर सुबह खाली पेट लेने से पुराना प्रमेह नष्ट हो जाता है। कमल बीज एवं कमल की पंखुड़ी देशी घी में भूनकर 3 दिन खिलाने से पीलिया जड़ से मिट जाता है। कमल पुष्प का रस एवं क्वाथ का उपयोग करने से शरीर के विषैले तत्व दूर होते हैं। यह इम्युनिटी बूस्टर भी होता है। इसका एक चम्मच रस का शर्बत पीने से त्वचा में निखार आता है। ब्रह्म कमल पुष्प यौन स्वास्थ्य या सेक्सुअल पावर बढ़ाने में कारगर है। उत्तराखंड में इस पुष्प को पीसकर मिश्री मिलाकर दूध के साथ पिलाते हैं, जिससे वीर्य गाढ़ा होने लगता है। ब्रह्म कमल जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के चार स्ट्रेन और फंगस के तीन स्ट्रेन के खिलाफ रोगाणुरोधी गुण रखता है। महिलाओं के लिए ब्रह्म कमल एक सर्वश्रेष्ठ ओषधि है। यह एक बेहतरीन गर्भस्थापक है। ब्रह्म कमल के सेवन से गर्भस्त्राव रुकता है। गर्भाशय की विकृति में हितकर है। खड़कर सोमरोग या पीसीओडी स्त्री विकारों में अत्यन्त हितकारी है।