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उत्तराखण्ड

कला के मर्मज्ञ रमेश चंद्र जोशी की 30 वीं पुण्यतिथि पर परम्परा नैनीताल ने किया याद


कला के मर्मज्ञ रमेश चंद्र जोशी की 30 वीं पुण्यतिथि पर परम्परा नैनीताल ने किया याद

बृजमोहन जोशी, नैनीताल। पण्डित मोतीराम जोशी श्रीमती पार्वती जोशी के घर रमेश चंद्र जोशी का जन्म वर्ष 1942 मे सेलाखोला अल्मोड़ा में हुआ। लक्ष्मण व राम के अभिनय के साथ आपने राम लीलाओं से अपने कला जीवन का श्री गणेश किया।वर्ष 1960 से 1992 तक आपने लोक संस्कृति के विविध पहलुओं को जीवन्ता प्रदान की।‌ और मेरा यह मानना है कि गुरु जी रमेश चंद्र जोशी का महत्व इसलिए भी है कि उन्होंने अपने जीवन पर्यन्त अनेक विभागों अनेक संस्थाओं जैसे. बालकन जी बाड़ी, लोक कलाकार संघ, जन कला केन्द्र, चेतना प्रयास संस्था, हिमानी आर्ट व आयाम मंच नैनीताल आदि के माध्यम से सैकड़ों युवा कलाकारों को लोक संस्कृति के विराट पक्षों की जानकारी दी चाहे वह बैठकी होली हो, रामलीला हो, गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल केन्द्र हो या बिरला विद्या मंदिर नैनीताल ।कुमाऊंनी लोक धुनों के साथ साथ आप शास्त्रीय संगीत पर भी असाधारण प्रतिभा रखते थे आपका संगीत पक्ष गायन के साथ साथ आपका भाव पक्ष भी अद्वितीय था। उनका संगीत आपको उनके साथ जोड़ने वाला होता था।आप अच्छे अच्छे नर्तकों को भी प्रभावित करने की विलक्षण प्रतिभा रखते थे।मेरा मानना है कि आप एक पंच मेल कलाकार थे, संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा आपको अपने पिता पं. मोती राम जोशी मोत्दा से प्राप्त हुई। मोती राम जोशी एक कुशल मंजीरा वादक व संगीतज्ञ थे। आप आकाशवाणी के बीहाई ग्रेड कलाकार थे तथा हिज मास्टर वॉइस ग्रामोफोन कंपनी के द्वारा आपके द्वारा गाये गये लोक गीत पर उत्तराखंड सरकार के द्वारा रिकार्ड निकाला गया। वर्ष 2006 में मेरे द्वारा व्यक्तिगत रूप से आपके कृतित्व व व्यक्तित्व पर किये गये कार्य साक्षात्कारों के आधार पर आपकी स्मृतियों को साझा करते हुए अल्मोड़ा से संगीता चार्य पं. चन्द्रशेखर तिवाड़ी ने बतलाया कि रमेश को सुना। आवाज व सुरों का धनी था। बड़ा ही सधा व मधुर कंठ था। मेरे पास संगीत सीखने आता था।संगीता चार्य शिवचरण पाण्डेय ने कहा कि रमेश से बाल्यकाल से ही मेरा परिचय रहा। होली गायन में तो वो सिद्ध हस्त थे ही रामलीलाओं से भी उनका खूब लगाव रहा। जब भी वो गाते थे तन्मय होकर गाते थे। संगीतज्ञ व वरिष्ठ होल्यार दिनेश चंद्र जोशी कन्नू उस्ताद ने कहा कि .अल्मोड़ा में जहां जहां होली की बैठकें होती थी तो मेरे साथ रमेश ही संगत, तबला वादन करते थे। नैनीताल में जाड़ों के दिनों में तो उनके घर में चालीस दिनों का चिल्ला होता था अर्थात चालीस दिनों तक उनके घर में केवल संगीत गायन वादन के अलावा और कोई कार्य नहीं होता था। मैं लगभग 30-32 वर्षों तक गुरु जी के साथ उनके परिवार के सदस्य के रूप में उनके साथ रहा और कला के संदर्भ में आज मेरा जो भी परिचय है वह गुरु जी का ही आशीर्वाद है। गुरु जी की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वो जब भी किसी कार्य हो अपने हाथ में ले लेते थे तो उसमें पूरी तरह जुट जाते थे चाहे वह उनका व्यक्तिगत कार्य हो या कोई अन्य कार्य। कुमाऊंनी कवि शेर सिंह बिष्ट अनपढ़ ने कहा कि क्या कहूं, क्या क्या कहूं, कहा तक कहूं, गाते वो थे। नृत्य वो करते थे। संगीतकार वो थे। अभिनय वो करते थे।गीत कार वो थे। गायक तो वो ठैरे ही। हारमोनियम वो बजाते थे तबला, सितार, गिटार, हुड़का और भी न जाने कौन कौन से साज वो बजाते थे। प्रमोद प्रसाद साह ने कहा कि .अधिकतर लोग उन्हें एक संगीतकार के रूप में जानते थे, और मैंने उन्हें एक नर्तक के रूप में जाना। महेश चंद्र जोशी जी ने कहा कि, उनकी कम्पोजिशन बहुत ही बढ़िया हुआ करती थी। उनका कंठ भी उतना ही मधुर था उनकी संगीतबद्ध रचना वंदना के रूप में गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल केन्द्र में गायी जाती है। तू दयालु दिन हों, अनिल घिल्डियाल ने कहा कि थियेटर का कोई भी पक्ष रहा हो संगीत हो अभिनय हो, नृत्य हो गायन हो, वादन हो, वो हर चीज में पारंगत थे। कैसे स्टेज बनना है लाइट कैसी होगी, क्या वेश भूषा होगी, कोई आस्पेक्ट नहीं है थियेटर का जो वो न जानते हों।खुद करके दिखाते थे। मेरी नज़र में जोशी जी जैसे बहुत कम लोग हुए हैं जो इतनी सारी विधाओं में पारंगत थे। गुरु जी हमेशा कार्य करने में तल्लीन रहते थे उनका अनुशासन बहुत ही कठोर होता था।वो खुद भी अत्यधिक मेहनत करते थे और हमसे भी उतनी ही मेहनत करवाते थे। प्रदर्शन कलाओं का यह मर्मज्ञ 09 जून 1995 को इस संसार से हमेशा के लिए अनंत में विलीन हो गया पारम्परिक लोक संस्था परंपरा नैनीताल गुरू जी की 30 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है गुरु जी को शत् शत् नमन करता है।आज डोल आश्रम में गुरुजी को शत् शत् नमन करने वालों में रंगकर्मी घनश्याम भट्ट ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि रमेश चंद्र जोशी जी के शिष्य बृजमोहन जोशी द्वारा संकलित, संगीत, परिकल्पना व निर्देशन में प्रस्तुत बारामासा का जो प्रदर्शन कुमाऊं अंचल के विभिन्न भागों में किया गया उसका प्रदर्शन हमारे द्वारा हिंदी साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा आयोजित लोक पर्व वर्ष 2002 में अनवार शीर्षक से किया गया और यहीं से लोक कलाकार के रूप में मुझे एक नयी पहचान मिली।रंगकर्मी मोहन जोशी ने कहा कि गुरु के द्वारा निर्णायक के रूप में अपने संबोधन में हमें लोक विधा के विविध आयामों को जानने समझने की महत्वपूर्ण जानकारी भी प्राप्त होती थी। इस अवसर पर सहायक अभियंता गोविन्द भट्ट श्रीमती कल्पना भट्ट, दिव्यांसी भट्ट, राघव भट्ट तथा कल्याणिका वेद वेदांग संस्कृत विद्यापीठ डोल आश्रम परिवार में संगीत की कार्यशाला में शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों ने भी गुरु जी को श्रद्धांजलि अर्पित की।


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