उत्तराखण्ड
हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की अलग-अलग राय
हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की अलग-अलग राय
सीएन, नई दिल्ली। हिजाब को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। हिजाब मामले पर दोनों जजों की अलग-अलग राय है। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हमारी राय अलग-अलग है। जस्टिस गुप्ता ने अपील खारिज कर दी है। वहीं दूसरे जज ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसल को गलत बताया। जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की पीठ की अलग- अलग राय सामने आई है। फैसले से पहले कोर्ट रूम खचाखच भरा था। कर्नाटक हाई कोर्ट ने 15 मार्च को राज्य के उडुपी में गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के एक क्लास के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने माना था कि हिजाब इस्लाम धर्म में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। हाई कोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इसके पक्ष और विपक्ष में कई दलीलें दी गई हैं। इस पर लगातार सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, देवदत्त कामत, राजीव धवन समेत कई वकीलों की ओर से दलील पेश की गई। हिजाब के पक्ष में जो दलील दी गई उसमें कहा गया कि आजादी के 75 साल बाद राज्य सरकार ने हिजाब पर प्रतिबंध क्यों लगाया। इसकी क्या जरूरत थी। यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं पेश किया गया है कि सर्कुलर किसी भी उचित कारण या किसी औचित्य पर आधारित था। वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा कि पीएफआई ने स्कूल-कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने को उकसाया है। राज्य सरकार ने हिजाब प्रतिबंध विवाद में किसी भी धार्मिक पहलू को नहीं छुआ है और यह प्रतिबंध केवल क्लास तक सीमित है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें कर्नाटक हाईकोर्ट के राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने के निर्णय को चुनौती दी गई है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 मार्च को उडुपी में ‘गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज’ की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने कक्षाओं के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। अदालत ने कहा था कि यह (हिजाब) इस्लाम धर्म में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।
इसके बाद राज्य सरकार ने पांच फरवरी 2022 को दिए आदेश में स्कूलों तथा कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा पहुंचाने वाले वस्त्रों को पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गईं। इस मामले में बीते दिनों न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कर्नाटक सरकार ने हिजाब संबंधी अपने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में ‘धर्म निरपेक्ष’’ बताया। राज्य सरकार ने अपने आदेश का जोरदार बचाव करते हुए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) को विवाद के लिए दोषी ठहराते हुए दावा किया कि यह एक ‘बड़ी साजिश’ का हिस्सा था। राज्य सरकार ने जोर दिया कि शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने के समर्थन में आंदोलन कुछ लोगों व्यक्तियों द्वारा ‘स्वतःस्फूर्त’ नहीं था और अगर उसने उस तरह से काम नहीं किया होता तो वह ‘संवैधानिक कर्तव्य की अवहेलना’ की दोषी होती। कर्नाटक सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि पीएफआई ने सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू किया था जिसका मकसद ‘लोगों की धार्मिक भावनाओं’ के आधार पर आंदोलन शुरू करना था।