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उत्तराखण्ड

तो क्या उत्तराखंड में आ रही कांग्रेस की सरकार

जी न्यूज ने भारत के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा ओपिनियन पोल
नई दिल्ली।
जी न्यूज ने भारत के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा ओपिनियन पोल किया है, जिसमें हमने चुनाव में जाने वाले पांच राज्यों की 690 विधान सभा सीटों पर 12 लाख से ज्यादा लोगों की राय जानने की कोशिश की है कि वो इन राज्यों में किसकी सरकार बनाना चाहते हैं. इस बार उत्तराखंड में कौन जीत रहा है. वैसे आपके लिए हिंट ये है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए खबर बहुत अच्छी नहीं है और हरीश रावत का चेहरा खिल उठेगा. सबसे पहले हम आपको इस ओपिनियन पोल के बारे में कुछ जरूरी बातें बताते हैं. इस ओपिनियन पोल में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा की 690 विधान सभा सीटों पर 12 लाख से ज्यादा लोगों की राय ली गई है.
पोल के लिए 40 हजार सैंपल साइज
सैंपल साइज के मामले में ये अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा ओपिनियन पोल है. हम आपको हर रोज एक एक करके सभी राज्यों के अनुमानित नतीजों के बारे में बताएंगे और उनका आपके लिए विश्लेषण करेंगे. आज हम आपको ये बताएंगे कि उत्तराखंड के ओपिनियन पोल के नतीजे क्या कहते हैं. इसके बाद 18 जनवरी को पंजाब, 19 जनवरी को उत्तर प्रदेश और 20 जनवरी को मणिपुर और गोवा का ओपिनियन पोल हम आपको दिखाएंगे. इसलिए आप चाहें तो ये तारीख नोट भी कर सकते हैं. इस सीरीज की शुरुआत हम उत्तराखंड से कर रहे हैं, जहां हमने सभी 70 सीटों पर जाकर वोटर्स से बात की है. उत्तराखंड में हमारा सैंपल साइज 40 हजार है और कुल 60 लाख वोटर्स हैं. यानी इस हिसाब से हमने हर 150 में से एक व्यक्ति से बात की है कि वो इस बार किस पार्टी की सरकार चाहता है. सबसे पहले हम आपको ये बताते हैं कि इस बार उत्तराखंड के लोग किस नेता को मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहते हैं.
मुख्यमंत्री के लिए पहली पसंद कौन?
सबसे ज्यादा 41 प्रतिशत लोग कांग्रेस नेता हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहते हैं. हरीश रावत 2014 से 2017 के बीच तीन बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. हालांकि कांग्रेस में टिकट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर संगठन में उनके खिलाफ एक गुट भी बन चुका है. लेकिन इसके बावजूद हमारे ओपिनियन पोल में वो मुख्यमंत्री की पहली पसंद बनकर उभरे हैं. मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस सूची में दूसरे नम्बर पर हैं. मुख्यमंत्री पद के लिए वो 27 प्रतिशत लोगों की पसन्द हैं. पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बने अभी 6 महीने ही हुए हैं. लेकिन जो बात नोट करने वाली है, वो ये कि पुष्कर सिंह धामी बीजेपी सरकार में मुखिया हैं. लेकिन लोकप्रियता और मुख्यमंत्री की पहली पसंद के मामले में वो हरीश रावत से काफी पीछे हैं.
बीजेपी को मुख्यमंत्री बदलने से हुआ नुकसान
तीसरे स्थान पर 15 प्रतिशत लोगों की पसंद के साथ बीजेपी के अनिल बलूनी हैं. आम आदमी पार्टी के कर्नल अजय कोठियाल मुख्यमंत्री पद के लिए 9 प्रतिशत लोगों की पसंद हैं. 2017 के चुनाव में बीजेपी को उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत मिला था. लेकिन इसके बावजूद पार्टी स्थिर सरकार नहीं बना सकी. 2017 से 2022 के बीच यानी पांच वर्षों में बीजेपी ने उत्तराखंड में कुल तीन बार मुख्यमंत्री बदले. पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. फिर उनकी जगह तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बने. लेकिन तीन महीने बाद उन्हें भी हटा दिया गया और पुष्कर सिंह धामी ने ये जिम्मेदारी सम्भाली. ऐसा लगता है कि बार-बार मुख्यमंत्री बदलने से बीजेपी को थोड़ा नुकसान हुआ है. हमारे ओपिनियन पोल में हरीश रावत की लोकप्रियता, मौजूदा मुख्यमंत्री से ज्यादा होना यही दिखाता है.
किन मुद्दों पर वोट करेगी जनता?
अब हम आपको ये बताते हैं कि उत्तराखंड में इस बार लोग किन मुद्दों के आधार पर अपना वोट डालेंगे. ओपिनियन पोल के मुताबिक इस बार चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी होगा. 23 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वो जब मतदान केन्द्रों पर वोट डालने जाएंगे तो वो ये देखेंगे कि कौन सी पार्टी बेरोजगारी कम कर सकती है. उत्तराखंड बेरोजगारी के मामले में देश के 28 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों की सूची में 10वें स्थान पर है. इसके अलावा एक सर्वे कहता है कि उत्तराखंड में हर तीसरा युवा बेरोजगार है. इसलिए इस मुद्दे को कोई भी पार्टी नजरअन्दाज नहीं कर सकती. 21 प्रतिशत लोगों के लिए बिजली, पानी और सड़क बड़ा मुद्दा होगा. जबकि 14 प्रतिशत लोगों के लिए भूमि कानून एक बड़ा मुद्दा रहेगा. 2018 में जब त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने राज्य के भूमि कानून में संशोधन किया था, जिसके तहत दूसरे राज्यों के कारोबारियों के लिए उत्तराखंड में जमीन खरीद कर व्यापार करना आसान हो गया है. हमारा ओपिनियन पोल कहता है कि कुछ लोगों में इस कानून को लेकर नाराजगी है और वो इस मुद्दे को आधार बना कर वोट डाल सकते हैं.
पलायन भी एक बड़ा मुद्दा
13 प्रतिशत लोगों का कहना है कि इस बार के चुनाव में पलायन पर वोट डाले जाएंगे. उत्तराखंड में पिछले 10 वर्षों में 5 लाख लोग दूसरे राज्यों में काम की तलाश में जा चुके हैं. ये एक बहुत बड़ी संख्या है. इसके अलावा उत्तराखंड में इस समय चार हजार गांव पलायन की वजह से खंडहर हो चुके हैं, क्योंकि यहां अब रहने वाला कोई बचा ही नहीं है. उत्तराखंड का ये हाल वहां के नेताओं और वहां की राजनीति ने किया है. इसलिए ये मुद्दा भी इस बार के चुनाव में वहां काफी असर डालेगा. हालांकि 10 प्रतिशत लोगों का मानना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में जो कमियां हैं, वो भी इस चुनाव में बड़ा और प्रभावी मुद्दा रहेंगी.

किस जाति के लोग किसके साथ?
इसके अलावा ठाकुर समुदाय का झुकाव भी बीजेपी की तरफ रहेगा. ठाकुर समुदाय के 60 प्रतिशत वोटर बीजेपी को वोट कर सकते हैं. जबकि कांग्रेस को 40 प्रतिशत वोटर्स का समर्थन मिल सकता है. इसी तरह 67 प्रतिशत OBC मतदाता, यानी पिछड़ी जातियों के वोटर बीजेपी का समर्थन कर सकते हैं जबकि कांग्रेस को 33 प्रतिशत ओबीसी वोट मिल सकता है. उत्तराखंड में ओबीसी वोटर्स को निर्णायक माना जाता है. 2017 में बीजेपी को मिली जीत में ओबीसी वोटर्स का बहुत बड़ा योगदान था और इस बार भी ओबीसी वोटर्स के बीच बीजेपी पहली पसन्द है. हालांकि अगर मुस्लिम मतदाताओं की बात करें तो कांग्रेस को 84 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिल सकते हैं, जबकि बीजेपी को 16 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिलने का अनुमान है. ओपिनियन पोल के मुताबिक, 6 से 7 सीटों पर मुस्लिम वोटर्स काफी प्रभावी हैं और इसका कांग्रेस को सीधा फायदा मिल सकता है. इसके अलावा कांग्रेस को सबसे ज्यादा 62 प्रतिशत दलित समुदाय के वोट भी मिल सकते हैं जबकि बीजेपी को दलितों के 38 प्रतिशत वोट मिलने का ही अनुमान है.
मुख्यमंत्री धामी हार रहे अपनी सीट
अब बात करते हैं उत्तराखंड की वीआईपी सीटों की. आपको बताते हैं कि टॉप 5 वीआईपी सीटों पर कौन जीत रहे हैं और कौन हार रहे हैं. उत्तराखंड की खटीमा सीट से मौजूदा विधायक और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हमारे ओपिनियन पोल के मुताबिक अपनी सीट हार सकते हैं. उत्तराखंड की श्रीनगर सीट से बीजेपी के मौजूदा विधायक धन सिंह रावत भी अपनी सीट गंवा सकते हैं. उत्तराखंड की डोईवाला सीट से बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हमारे ओपिनियन पोल के मुताबिक चुनाव हार सकते हैं. हालांकि डोईवाला सीट से त्रिवेंद्र सिंह रावत के लड़ने की संभावना कम है. कांग्रेस के प्रीतम सिंह उत्तराखंड की चकराता सीट से जीत सकते हैं. मसूरी सीट से बीजेपी के मौजूदा विधायक गणेश जोशी जीत सकते हैं.
गढ़वाल में कौन मारेगा बाजी?
उत्तराखंड दो रीजन यानी दो क्षेत्रों में बंटा हुआ है. गढ़वाल और कुमाऊं. इसलिए आपको उत्तराखंड की फाइनल टैली जानने के लिए पहले ये देखना होगा कि इन दोनों क्षेत्रों में कौन सी पार्टी बाजी मार सकती है. सबसे पहले हम आपको गढ़वाल क्षेत्र के बारे में बताते हैं, जहां कुल 7 जिलों में 41 सीटें हैं. इनमें देहरादून और हरिद्वार जैसे प्रसिद्ध शहर भी शामिल हैं. 2017 में गढ़वाल में बीजेपी का वोट शेयर सबसे ज्यादा था, बीजेपी का वोट शेयर 46.41 प्रतिशत था. कांग्रेस का 31.62 प्रतिशत था. अन्य के हिस्से में 21.97 प्रतिशत वोट आए थे. लेकिन हमारे ओपिनियन पोल के मुताबिक ये तस्वीर अब बदल सकती है. बीजेपी को इस क्षेत्र में लगभग साढ़े तीन प्रतिशत वोट शेयर का नुकसान हो सकता है.
गढ़वाल की 41 सीटों परबीजेपी का वोटर शेयर साढ़े 46 प्रतिशत से घटकर 43 प्रतिशत पर आ सकता है. यानी सीधे तौर पर बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है. हालांकि इस रीजन में बीजेपी नंबर 1 पार्टी बनी रहेगी.
सीटों के मामले में कौन आगे?
2017 के मुकाबले कांग्रेस का वोट शेयर लगभग 7 प्रतिशत बढ़ सकता है. कांग्रेस को गढ़वाल में 38 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. इसके अलावा आम आदमी पार्टी भी गढ़वाल में बीजेपी और कांग्रेस को कई सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है. ओपिनियन पोल में आम आदमी पार्टी को 14 प्रतिशत वोट मिलते दिख रहे हैं. ये आंकड़ा इसलिए बड़ा है, क्योंकि पिछली बार आम आदमी पार्टी यहां लड़ाई में ही नहीं थी. अब आपको सीटों का गणित बताते हैं कि इस क्षेत्र में किस पार्टी को कितनी सीट मिल सकती हैं. 2017 में गढ़वाल की 41 सीटों में बीजेपी ने 34 सीटें जीती थीं. कांग्रेस ने 6 सीटें जीती थीं. जबकि अन्य के हिस्से में 1 सीट आई थी. लेकिन ओपिनियन पोल के मुताबिक इस बार बीजेपी को 41 की जगह 22 से 24 सीटें मिल सकती हैं. यानी सीधे तौर पर गढ़वाल में बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है. हालांकि नंबर 1 पर अभी भी बीजेपी बनी हुई है. कांग्रेस को 15-17 सीट मिल रही हैं यानी सीधे तौर पर कांग्रेस को गढ़वाल में बड़ा फायदा होता दिख रहा है. आम आदमी पार्टी के हिस्से शून्य से 1 सीट तक आ सकती है.
कुमाऊं में क्या है लोगों की राय?
अब आपको कुमाऊं रीजन के ओपिनियन पोल के नतीजे बताते हैं. कुमाऊं रीजन में नैनीताल और अल्मोड़ा को मिला कर कुल 6 जिले हैं और कुल 29 सीटें हैं. 2017 में यहां सबसे ज्यादा वोट शेयर बीजेपी का था. BJP को 46.65 प्रतिशत वोट मिले थे. कांग्रेस को 31.08 प्रतिशत वोट और अन्य को 17.27 प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन ओपिनियन पोल के नतीजे कहते हैं कि इस बार कहानी बदल सकती है. 2017 के मुकाबले BJP का वोट शेयर 8 प्रतिशत तक कम होकर 38 प्रतिशत हो सकता है. यानी सीधे तौर पर बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है और वो नंबर 2 पर खिसक रही है. कांग्रेस को 42 फीसदी वोट शेयर मिला है यानी सीधे तौर पर कांग्रेस को बड़ा फायदा होता दिख रहा है और वो नंबर 1 पर आ गई है. आम आदमी पार्टी को कुमाऊं में 10 फीसदी वोट मिल सकते हैं. पिछले चुनाव में यहां आम आदमी पार्टी लड़ाई में नहीं थी. ऐसे में 10 प्रतिशत वोट शेयर का अनुमान काफी ऐतिहासिक है. इसके अलावा अन्य के हिस्से में 10 फीसदी वोट शेयर है.
कांग्रेस को मिल रहा फायदा
इस तरह की खबरें हैं कि मौजूदा बीजेपी सरकार पर कुमाऊं क्षेत्र की अनदेखी के आरोप हैं जिसकी वजह से यहां बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है. कुल मिला कर कहानी ये है कि बीजेपी को 2017 के मुकाबले 8.65 प्रतिशत कम वोट शेयर मिल रहा है. कांग्रेस की बात करें तो उसे फायदा होता दिख रहा है. कांग्रेस को 10.92 प्रतिशत ज्यादा वोट शेयर मिल रहा है. यानी सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है. जबकि आम आदमी पार्टी पहली बार मुकाबला कर रही और 10 प्रतिशत वोटों का फायदा हो रहा है. 2017 में कुमाऊं की 29 सीटों में सबसे ज्यादा बीजेपी को 23 सीटें मिली थीं. कांग्रेस ने पांच सीटें जीती थीं. जबकि अन्य के हिस्से में 1 सीट आई थी. लेकिन इस बार कुमाऊं, उत्तराखंड के चुनाव को दिलचस्प और कांटे का बना सकता है. ओपिनियन पोल के मुताबिक BJP को 9 से 11 सीटें मिल सकती हैं. यानी सीधे तौर पर कुमाऊं में बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है और बीजेपी नंबर 2 पर खिसक रही है.
साभार जी न्यूज

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