उत्तराखण्ड
पलायन रोकने के उपायों पर भी मंथन करने की सख्त जरूरत : रावत
पर्वतीय क्षेत्रों में खेती बाड़ी की सुरक्षा व लैब टू लैंड एप्रोच की ओर भी ध्यान देना होगा
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। पलायन आयोग द्वारा उत्तराखंड से 10 वर्षों में हुए पांच लाख से अधिक लोगों के पलायन पर जारी रिपोर्ट के बाद इसे बेहद चिन्ताजनक माना है। उत्तराखंड से लगातार हो रहे पलायन पर चिन्ता प्रकट करते हुए इतिहासकार व पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत ने कहा कि अब पलायन रोकने लिए उपायों पर भी मंथन करने की सख्त आवश्यकता है। पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक विगत 10 वर्षो में उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों के गावों से लगभग 30 प्रतिशत जनसंख्या का पलायन हुआ है। जिसमें जनपद पौड़ी और अल्मोड़ा में पलायन का प्रतिशत बढ़ा है। उन्होंने कहा कि दूरदराज क्षेत्र में रह रहे लोगों को पलायन से रोकने लिए उपायों पर सरकार को तवरित गति से कार्य करना होगा। उन्होंने सरकार द्वारा गठित पलायन आयोग का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार को पर्वतीय क्षेत्रों में खेती बाड़ी की सुरक्षा व लैब टू लैंड एप्रोच की ओर भी ध्यान देना होगा। आज कृषि के क्षेत्र में उत्तराखंड में कई संस्थान शोध व अनुसंधान कर रहे है। लेकिन लैब टू लैंड एप्रोच का फायदा पर्वतीय क्षेत्र को नही मिल पा रहा है। खेती बाड़ी कम होने से भी पलायन की समस्या बढी है। प्रो. रावत ने कहा कि जो लोग गांव को छोड़कर शहर की ओर जा रहे हैं उससे 10 प्रतिशत भूमि बंजर हो चुकी है। कहा कि पहाड़ में पलायन का मुख्य कारण स्वास्थ्य सुविधाओं का न होना, दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षकों के पद रिक्त होना, जंगली जानवरों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाना, ग्राम स्तर पर योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन न होना, असिंचित क्षेत्र में पानी की कमी, खड़िया आधारित उद्योग स्थापित न होना, यहां पर बहुतायत मात्रा में उत्पादित लीसा के कच्चा माल का स्थानीय स्तर प्रोसेसिंग नही होना भी बताया। उन्होंने कहा कि पलायन का मुख्य कारण युवाओं के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण के साथ रोजगार सृजन के अवसर नही मिलना भी है। उन्होंने पहाड़ से पलायन को रोकने के लिए शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार लाने की आवश्यकता बताई। इसके लिए दूरस्थ क्षेत्रों के विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति होना जरूरी बताया। स्वास्थ्य, शिक्षा को जरूरी बताते हुए यहां दुग्ध उत्पादन क्षेत्र में रोजगार की सम्भावना व न्याय पंचायत स्तर पर फल, सब्जी, दूध के विपणन की व्यवस्था, कच्चा माल के डिहाईडेशन प्लान स्थापित करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि नाशपाती का प्रचुर मात्रा में उत्पादन होता है लेकिन कोल्ड स्टोरेज स्थापित न होने पर किसानों को उसका उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। पर्यटन की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए पर्यटन स्थलों के सुधारीकरण के लिए कार्य करने की आवश्यकता बताई। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक सुख-सुविधाओं की कमी व आजीविका के सीमित संसाधनों का होना, आरामदायक जीवन जीने की लालसा ही पलायन का मुख्य कारण है। इन सभी कारकों के बावत आज तेजी से कार्य करने की जरूरत है। पलायन आयोग की भयावह ही नही वरन उत्तराखंड के भविष्य से भ जुड़ी है। यदि अब भी सरकारों ने ठोस कदम नही उठाये तो वह दिन दूर नही कि पहाड़ खाली हो जायेंगे।
21 सालों से राज्य में रोजगार के नाम पर ठगते आ रहे सियासी दल
नैनीताल। आज राज्य बने 21 साल हो गये अब चुनावी बेला में राजनैतिक दलों द्वाराके नाम पर फिर दिवा स्वप्न दिखाने का कार्य हो शुरू हो गया है। उत्तराखंड राज्य बनाने की अवधारणा के पीछे सबसे बड़ा मुद्दा उत्तराखंड में बढ़ती बेरोजगारी को रोकने व रोजगार अवसर पैदा करना भी था। लेकिन इन 21 सालों में भाजपा व कांग्रेस की सरकारें आई लेकिन रोजगार के अवसर नहीं खुले। हालत यह है कि आज राज्य के 13 जिलों में लाखों बेरोजगार पंजीकृत है। हालत तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अपंजीकृत बेरोजगार मजदूरी के लिए शहरों में भटक रहे है या फिर प्रदेश से बाहर पलायन कर चुके हैं। भारत सरकार के केन्द्रीय श्रम व रोजगार मंत्रालय की 2015-2016 की वार्षिक रोजगार व बेरोजगार सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड में एक हजार की जनसंख्या में 70 लोग बेरोजगार है। इस तरह से इस समय राज्य में लाखों लोग बेरोजगार है। जो अब लगातार पलायन कर रहे है। इसके अलावा कृषि का रकबा लगातार घटने से भी लोग पलायन कर रहे है।