उत्तराखण्ड
तालों के सौदर्य में समाहित है शिव की लीला
नैनीताल। देवभूमि उत्तराखण्ड़ का सौंदर्य अतुलनीय है। यहां की पावन धरती पर स्थित ताल सौदर्य की अद्भूत शोभा है। कुमाऊं की वशुंधरा में तमाम तालों के दर्शन मन को सूकून देनें वाले है। पयर्टन की दृष्टि से इनका महत्व बेहद निराला है। आध्यात्म की तमाम गाथाओं को भी यहां के ताल अपनें आंचल में समेटे हुए है। यहां अनेकों ताल है, हर ताल की अपनी कथा है। जनपद नैनीताल के आंचल में स्थित तालों की रमणीयता पूरे विश्व में प्रसिद्व है। नैनीताल के सौदर्य की छटा को निखारने वाला नैनीताल का ताल ही मन को निराली शान्ति देता है। तीन तरफ से घिरे ऊंचे-ऊंचे गगनचुम्बी पर्वतों की तलहटी मे विराजमान इस ताल की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया स्पष्ट ट्टष्टिगोचर होती है। गगन मण्डल पर छाये हुए बादलों का प्रतिबिम्ब जब इस तालाब में झलकता है तो फिजाओं का रंग सौदर्य को निखार देती है। इसकी एक झलक पाने के लिए प्रकृति प्रेमी बरबस ही यहां खिचे चले आते हैं। ताल के पानी की विशेषता यह है कि गर्मियों में इसके पानी का रंग हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में आसमानी नीला हो जाता है। नैनीताल की भांति ही सुन्दर पर्वतमालाओं के आंचल में स्थित भीमताल के ताल का सौदर्य भी लाजबाब है। इस मनभावन ताल के दोनों कोने सड़क से जुड़ें हैं। 449 मी. लम्बे, है 175 मी. चौड़ें तथा 15 से 50 मीटर तक गहरा यह ताल कर्कोटक नाग की गाथा को भी समेटे हुए है। नैनीताल से लगभग 21 किमी की दूरी पर स्थित भीमताल से महाबली भीम की भी गाथा जुड़ी हुई है। ताल के बीचो- बीच में स्थित टापू विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस टापू तक आवागमन का साधन केवल नाव ही हैं। इसके अलावा नौकुचियाताल भी अपने आंचल में सौंदर्य की शानदार फिजाओं को समेटे हुए हैं। नौ कोने होनें के कारण इसे नौकुचियाताल कहते हैं। नीले रंग के पानी को अपने आंचल में समेटे यह ताल जहां पर्यटन का केंद्र है, वही आध्यात्मिकता की भी महान विरासत है। साइबेरियन पक्षियों का कलरव इस ताल में गुंजायमान रहता है। पंचकोणीय ताल के रुप में प्रसिद्व नल दमयंती ताल अपने ऑचल में पुष्कर के राजा नल एवं उनकी महारानी दमयंती की अद्भुत कहानियों को समेटे हुए हैं। कहा जाता है संकट की घड़ी में राजा नल ने यही की भूमि पर भगवान शंकर का पूजन किया। बाद में राजा नल को पाताल भुवनेश्वर में समस्त शिवलोक के दर्शन हुए इसी तरह सातताल जो कि विभिन्न तालों का समूह है राम ताल, सीता ताल लक्ष्मण ताल आदि इस ताल की शोभा है। भीमताल से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर सातताल का अद्वितीय सौंदर्य बरबस ही आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। पाण्डव व कौरवों के गुरु महावीर अश्वथामा के पिता गुरु द्रोणाचार्य की तपोभूमि के नाम से जाना जानें वाला द्रोणताल की महिमां भी अपरम्पार है।
इस ताल के किनारे स्थित गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति इस बात का बखान करती है कि गुरुद्रोण का इस भूमि से गहरा नाता रहा है। काशीपुर क्षेत्र में स्थित यह ताल युगो युगो से पांडव कालीन गाथा को समेटे हुए हैं। कुमाऊं की धरती पर स्थित हरीशताल हालांकि गुमनामी के साए में गुम है, लेकिन इस साल का सौंदर्य भी लाजवाब है कुल मिलाकर कुमाऊं की धरती में अनेकों ताल है जो गुमनामी के साए में गुम है। इसी तरह केदार भूमि गढ़वाल में भी शानदार सौदर्य को समेटे ताल है। जो पहचान के लिए व्याकुल हैं। कुल मिलाकर कुमाऊं की धरती में अनेकों ताल है जो गुमनामी के साए में गुम है इसी तरह केदार भूमि गढ़वाल में भी शानदार सौदर्य को समेटे ताल है। जो पहचान के लिए व्याकुल हैं खुर्पाताल, झिलमिलताल, गिरी ताल, श्यामला ताल, सहित अनेकों तालों का सौन्दर्यीकरण व रखरखाव किया जाए तो यह तमाम ताल पर्यटकों के आकर्षण का विशेष केंद्र बंन सकते हैं। उत्तराखंड की धरती में स्थित तमाम ताल किसी न किसी रूप में शिव गाथाओं को अपने आप में समेटे हुए हैं। शैलशक्ति से साभार